
नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कमला नेहरू मेमोरियल ट्रस्ट (KNMT) को सुल्तानपुर (sultanpur) में 125 एकड़ जमीन (125 acres of land) का आवंटन (Allocation) रद्द (Cancel) करने के फैसले को सही ठहराया है. कोर्ट ने उत्तर प्रदेश राज्य औद्योगिक विकास निगम (UPSIDC) के फैसलों को सार्वजनिक हित की रक्षा के लिए जरूरी बताया और कहा कि इतनी बड़ी औद्योगिक भूमि का आवंटन बिना जनहित का आकलन किए किया गया था. यह ट्रस्ट कांग्रेस सांसद राहुल गांधी की परदादी कमला नेहरू के नाम पर है.
जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने ट्रस्ट की अपील को खारिज करते हुए कहा कि वर्ष 2003 में जमीन आवंटित होने के बावजूद ट्रस्ट ने समय पर भुगतान नहीं किया और बार-बार ब्याज माफ करने और बकाया पेमेंट की नई तारीखें तय करने जैसी अनुचित रियायतों की मांग करता रहा. अदालत ने बाद में इसी जमीन को जगदीशपुर पेपर मिल्स को किए गए आवंटन को भी रद्द कर दिया.
‘KNMT पुराना डिफॉल्टर’
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने केएनएमटी को ‘पुराना डिफॉल्टर’ बताते हुए कहा, ‘यूपीएसआईडीसी की तरफ से KNMT को डिफॉल्टर मानना न केवल न्यायसंगत बल्कि ज़रूरी था, ताकि ज़मीन आवंटन की प्रक्रिया की शुचिता बनी रहे. अगर ऐसे जानबूझकर किए गए डिफॉल्ट को नजरअंदाज किया जाए, तो यह समूचे जमीन वितरण तंत्र को कमजोर कर देगा.’
जस्टिस सूर्यकांत ने अपने निर्णय में UPSIDC की आलोचना करते हुए कहा कि उसने सार्वजनिक हित के सिद्धांत का पालन नहीं किया. कोर्ट ने कहा, ‘हालांकि हमने डिफॉल्ट के कारण KNMT का आवंटन रद्द करना सही ठहराया, पर यह भी सामने आया कि मूल आवंटन प्रक्रिया में गंभीर खामियां थीं. KNMT को 2003 में आवेदन के मात्र दो महीने के भीतर जमीन दे दी गई, जो प्रक्रियागत गंभीरता पर सवाल उठाता है.’
न्यायालय ने कहा कि जनहित से जुड़े ऐसे आवंटनों से पहले यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि लाभार्थी की योग्यता, सार्वजनिक हितों की पूर्ति, रोजगार सृजन, पर्यावरणीय स्थिरता और क्षेत्रीय विकास के उद्देश्यों को ठीक से मूल्यांकित किया जाए. अदालत ने स्पष्ट किया कि KNMT और पेपर मिल को दी गई जमीनों में इन बातों का कोई मूल्यांकन नहीं किया गया था, इसलिए दोनों आवंटनों को रद्द किया जाता है.
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि UPSIDC ने पारदर्शिता नहीं अपनाई, जिससे न केवल सरकारी खजाने को संभावित राजस्व की हानि हुई, बल्कि ऐसी व्यवस्था को बढ़ावा मिला जिसमें विशेषाधिकार प्राप्त लोगों को तरजीह दी गई और समान अवसरों की अनदेखी की गई. यह राज्य और उसके नागरिकों के बीच स्थापित विश्वासी रिश्ते के साथ विश्वासघात है.
अंत में अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार और UPSIDC को निर्देश दिया कि भविष्य में सभी भूमि आवंटन पारदर्शी, भेदभावरहित और निष्पक्ष तरीके से किए जाएं और वे अधिकतम राजस्व प्राप्त करें. साथ ही, ये आवंटन औद्योगिक विकास, पर्यावरणीय स्थिरता और क्षेत्रीय आर्थिक लक्ष्यों की पूर्ति सुनिश्चित करें.
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