
नई दिल्ली । जम्मू-कश्मीर(Jammu and Kashmir) में करीब 4 हजार अज्ञात कब्रों(Unknown tombs) को लेकर किए जाने वाले दावों को लेकर एक अध्ययन(Study) सामने आया है। 2018 से जारी इस अध्ययन के जरिए सीमावर्ती जिलों बारामूला, कुपवाड़ा और बांदीपोरा तथा मध्य कश्मीर के गंदेरबल में हजारों कब्रों का निरीक्षण किया गया। इसका निष्कर्ष बताते हुए एनजीओ ने जानकारी दी की 4 हजार से ज्यादा अज्ञात कब्रों में से 90 फीसदी से ज्यादा कब्रें विदेशी या स्थानीय आतंकवादियों की हैं, जिन्हें सेना ने एनकाउंटर में मार गिराया था।
‘अनरेवलिंग द ट्रुथ: ए क्रिटिकल स्टडी ऑफ अनमार्क एंड अनआइडेंटिफाइड ग्रेव्स इन कश्मीर’ शीर्षक वाली यह रिपोर्ट कश्मीर स्थित गैर-सरकारी संगठन ‘सेव यूथ सेव फ्यूचर फाउंडेशन’ द्वारा किए गए अध्ययन पर आधारित है। इस स्टडी का नेतृत्व कर रहे वजाहत फारुख भट ने बताया, “लोगों द्वारा वित्तपोषित इस संगठन ने 2018 में अपनी परियोजना को शुरू किया था 2014 में हमारा जमीनी काम पूरा हो गया था। पिछले एक साल से हम विभिन्न सरकारी कार्यालयों के लिए अपनी रिपोर्ट को गहराई से तैयार कर रहे थे। इस रिपोर्ट के जरिए सीमा पार के उस प्रोपेगेंडा को काउंटर करने में मदद मिलेगी, जिसमें कहा जाता है कि इन अज्ञात कब्रों में आम लोगों को मारकर दफ्न किया गया है।”
शोधकर्ताओं के मुताबिक, उनकी पूरी टीम ने 4 हजार से ज्यादा कब्रों का दस्तावेजी करण किया। यह आंकड़ें पिछले किसी भी समूह द्वारा किए गए दावों से भिन्न हैं। इनकी रिपोर्ट के मुताबिक 2,493 कब्रें (लगभग 61.5 प्रतिशत) विदेशी आतंकवादियों की थी, जो सेना द्वारा चलाए गए आतंकवादी रोधी अभियान में मारे गए थे। यह अज्ञात हैं क्योंकि मारे गए ऐसे व्यक्तियों के पास अक्सर कोई पहचान पत्र नहीं होते थे।
इसके अलावा 1208 कब्रें कश्मीर के उन स्थानीय आतंकवादियों की हैं, जो सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में मारे गए थे। इन स्थानीय आतंकवादियों की कब्रों की पहचान मुख्य रूप से साक्ष्यों और उनके परिवारों की स्वीकृति के बाद हुई है। रिपोर्ट के मुताबिक 4 हजार से ज्यादा कब्रों में केवल 9 कब्रें ऐसी मिली हैं, जो कि निश्चित रूप से आम नागरिकों की है।
एनजीओ ने अपनी रिपोर्ट को आधार बताकर कहा कि इससे यह साफ होता है कि तमाम नागरिको समूहों द्वारा जम्मू-कश्मीर में सैन्य बलों की कार्रवाई को बहुत ज्यादा बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जाता है। ऐसा दिखाया जाता है कि जैसे यहां पर आम नागरिकों की हत्या की जाती रही है, जबकि ऐसा नहीं है।
इस स्टडी में 70 ऐसी कब्रें भी मिली हैं, जिनमें 1947 में भारत पर हमला करने के लिए आए कबायली हमलावर दफ्न हैं। भट्ट ने कहा कि मानवीय चिंताओं के समाधान हेतु कुछ कब्रों के आधुनिक डीएनए जांच की आवश्यकता है। जब इनकी फॉरेंसिक जांच होगी, तब यह और विस्तृत रूप से सामने आ पाएगा।
भट्ट के मुताबिक उनकी स्टडी में तमाम बातों का ध्यान रखा गया था। तथ्यों के रूप में क्षेत्रीय जांच, आसपास के समुदाय को साथ लेना, इसके अलावा आप पास के लोगों जैसे- मौलवी और औफाकी मस्जिद समितियों के सदस्य, कब्र खोदने वाले, स्थानीय आतंकवादियों के परिवार, लापता लोगों के परिवार और स्थानीय प्रथाओं की जानकारी रखने वाले लोगों के इंटरव्यू भी शामिल हैं। इसके अलावा ऐसे लोगों से भी बात की गई, जो पहले आतंकवादी रह चुके है।
भट्ट ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से भी इस मुद्दे पर एक तरफा या प्रोपेगेंडा का शिकार होकार नीति न बनाने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि पहले जमीनी हकीकत को पूरी तरह से जान लेना चाहिए। उसके बाद समूहों या संगठनों द्वारा किए जा रहे दावों को सच मानना चाहिए। जमीनी जानकारी के आधार पर तैयार की गई यह रिपोर्ट दशकों से चले आ रहे उस प्रोपेगेंडा को ध्वस्त करती है, जिसमें कहा जा रहा था कि सुरक्षा बल कश्मीर में आम जनता को निशाना बना रहे हैं।
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