
संयुक्त राष्ट्र। कोरोना महामारी के दौरान दुनियाभर में क्रिप्टोकरेंसी का इस्तेमाल अभूतपूर्व दर से बढ़ा है। भारत में भी बड़ी संख्या में लोगों ने इस डिजिटल मुद्रा में निवेश किया। 2021 में 7.3 फीसदी भारतीय आबादी के पास क्रिप्टोकरेंसी थी।
संयुक्त राष्ट्र की व्यापार एवं विकास संस्था यूएनसीटीएडी ने एक रिपोर्ट में कहा, क्रिप्टोकरेंसी रखने वाली आबादी की हिस्सेदारी के लिहाज से शीर्ष-20 अर्थव्यवस्थाओं में से 15 विकासशील अर्थव्यवस्थाएं शामिल हैं।
सूची में भारत सातवें स्थान पर है, जबकि पाकिस्तान 4.1 फीसदी के साथ 15वें स्थान पर है। यूएनसीटीएडी का कहना है कि कोरोना काल के दौरान पूरी दुनिया में क्रिप्टोकरेंसी का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है। इसमें विकासशील देश भी शामिल हैं।
महंगाई से लड़ने में हो रहा इस्तेमाल
रिपोर्ट में कहा गया है कि डिजिटल मुद्रा का इस्तेमाल महंगाई से लड़ने के लिए किया जा रहा है। लेकिन, इसमें हालिया गिरावट से पता चलता है कि क्रिप्टो रखने के निजी जोखिम हैं। केंद्रीय बैंक वित्तीय स्थिरता को लेकर कदम उठाता है तो समस्या सार्वजनिक हो जाती है।
देशों की मौद्रिक संप्रभुता पर खतरा
अगर क्रिप्टोकरेंसी भुगतान का व्यापक माध्यम बन जाती है और अनाधिकारिक रूप से घरेलू मुद्रा की जगह ले लेती है तो इससे देशों की मौद्रिक संप्रभुता खतरे में पड़ सकती है। यही वजह है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने भी क्रिप्टोकरेंसी को लेकर पहले ही अपनी चिंता जाहिर कर दी है। क्रिप्टोकरेंसी के खतरे से बचने के लिए यूएनसीटीएडी ने सलाह दी है कि विकासशील देशों को नकदी का प्रवाह बनाए रखना चाहिए। नकदी को जारी करने और इसके वितरण में कोई कोताही नहीं बरती जानी चाहिए।
विकासशील देशों में विस्तार पर अंकुश लगाने की जरूरत
डिजिटल मुद्रा ने कुछ लोगों को फायदा पहुंचाया है। फिर भी इसमें जोखिम ज्यादा है। क्रिप्टो विकासशील देशों में घरेलू संसाधन जुटाने के प्रयासों को कमजोर कर रहा है। कर चोरी को बढ़ावा मिल सकता है। ऐसे में विकासशील देशों में क्रिप्टो के विस्तार पर रोक लगाने की जरूरत है।
©2025 Agnibaan , All Rights Reserved