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आज मनेगा 76वां गणतंत्र दिवस, इंडोनेशिया के राष्ट्रपति होंगे मुख्य अतिथि, जाने कैसे होता है विदेशी मेहमानों का चयन

January 26, 2025

नई दिल्‍ली । भारत (India) अपना 76वां गणतंत्र दिवस (Republic Day) मनाने जा रहा है। भारत ने इस बार इंडोनेशिया (Indonesia) के राष्ट्रपति प्रबोवो सुबियांतो (President Prabowo Subianto) को मुख्य अतिथि के तौर पर न्योता भेजा है। पिछले साल फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों मुख्य अतिथि रहे थे। इससे पहले 2023 में मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतह अल-सिसी हमारे मुख्य अतिथि थे।

आइये जानते हैं कि गणतंत्र दिवस समारोह के लिए मुख्य अतिथि के चयन की प्रक्रिया क्या है? इसमें मुख्य अतिथियों को बुलाने की शुरुआत कब हुई? अब तक कितने राष्ट्राध्यक्षों को न्योता दिया गया है? अबकी बार फ्रांस के राष्ट्रपति क्यों आमंत्रित किए गए?

मुख्य अतिथि के चयन की प्रक्रिया क्या है?
यह प्रक्रिया आयोजन से करीब छह महीने पहले शुरू हो जाती है। इस पूरी प्रक्रिया के दौरान विदेश मंत्रालय शामिल रहता है। किसी भी देश को निमंत्रण देने के लिए सबसे पहले यह है देखा जाता है कि भारत और संबंधित अन्य राष्ट्र के बीच मौजूदा संबंध कितने अच्छे हैं। इसका निर्णय देश के राजनीतिक, आर्थिक, सैन्य और वाणिज्यिक हितों को भी केंद्र में रख कर लिया जाता है।


पहले विदेश मंत्रालय संभावित उम्मीदवारों की एक सूची तैयार करता है और फिर इसे मंजूरी के लिए राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के पास भेजा जाता है। इसके बाद संबंधित मुख्य अतिथि की उपलब्धता देखी जाती है। अगर उनकी उपलब्ध हैं तो भारत आमंत्रित देश के साथ आधिकारिक संचार करता है।

मुख्य अतिथियों को बुलाने की शुरुआत कब हुई?
26 जनवरी 1950 को भारत के पहले गणतंत्र दिवस समारोह से ही इसमें मुख्य अतिथियों को आमंत्रित करने की शुरुआत हुई थी। इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो भारत के पहले गणतंत्र दिवस परेड के पहले मुख्य अतिथि थे।

कौन से देश हमारे मुख्य अतिथि रहे हैं?
इतिहास की तरफ देखें तो 1950-1970 के दशक के दौरान भारत ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन और पूर्वी ब्लॉक से जुड़े कई देशों को अतिथि बनाया। दो बार 1968 और 1974 में ऐसा हुआ जब भारत ने एक ही गणतंत्र दिवस पर दो देशों देशों के मुख्य अतिथि को आमंत्रित किया गया।

11 जनवरी 1966 को ताशकंद में प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के निधन के कारण कोई निमंत्रण नहीं भेजा गया था। इंदिरा गांधी ने गणतंत्र दिवस से केवल दो दिन पहले यानी 24 जनवरी 1966 को शपथ ली थी।

2021 और 2022 में भी भारत में कोरोना महामारी के कारण कोई मुख्य अतिथि नहीं था।

भारत ने सबसे ज्यादा 36 एशिया एशिआई देशों को समारोह में अतिथि बनाया है। इसके बाद यूरोप के 24 देश और अफ्रीका के 12 देश गणतंत्र दिवस में हमारे मेहमान बने हैं। वहीं दक्षिण अमेरिका के पांच देश, उत्तरी अमेरिका के तीन और ओशिनिया क्षेत्र के एकलौते देश का भारत ने आतिथ्य किया है।

गणतंत्र दिवस में अतिथि देश क्यों जरूरी होता है?
गणतंत्र दिवस समारोह में कई आकर्षण के केंद्र होते हैं लेकिन कूटनीतिक दृष्टि से इसमें शामिल होने वाले प्रमुख अतिथि पर भी सबकी नजरें होती हैं। भारत के गणतांत्रिक देश बनने के साथ ही इस समारोह में मुख्य अतिथि को बुलाने की परंपरा रही है। भारत प्रति वर्ष नई दिल्ली में आयोजित होने वाले गणतंत्र दिवस समारोह के लिए सम्माननीय राजकीय अतिथि के रूप में किसी अन्य देश के राष्ट्राध्यक्ष या सरकार के प्रमुख को निमंत्रण देता है।

अतिथि देश का चयन रणनीतिक, आर्थिक और राजनीतिक हितों पर सावधानीपूर्वक विचार करने के बाद ही किया जाता है। यूं कहें कि गणतंत्र दिवस परेड के मुख्य अतिथि का निमंत्रण भारत और आमंत्रित व्यक्ति के देश के बीच मैत्रीपूर्ण सबंधों की मिशाल माना जाता है।

अबकी बार इंडोनेशिया के राष्ट्रपति ही क्यों मेहमान?
राष्ट्रपति के तौर पर प्रबोवो सुबियांतो का यह पहला भारत दौरा होगा। हालांकि, भारत के गणतंत्र दिवस के इतिहास में वे इंडोनेशिया के चौथे राष्ट्रपति हैं, जो मुख्य अतिथि के तौर पर भारत आ रहे हैं। भारत के पहले गणतंत्र दिवस पर इंडोनेशिया के ही राष्ट्रपति सुकर्णो भारत के मुख्य अतिथि थे।

भारत के विदेश मंत्रालय ने सुबियांतो को न्योता भेजने के पीछे की वजह के साथ इंडोनेशिया के साथ अपने बेहतर होते रिश्तों का भी जिक्र कर दिया। MEA ने कहा, “भारत और इंडोनेशिया शताब्दियों से एक-दूसरे से गहरे और दोस्ताना रिश्ते साझा कर रहे हैं। इंडोनेशिया भारत की एक्ट ईस्ट नीति और हिंद-प्रशांत क्षेत्र की हमारे दृष्टि का अहम स्तंभ रहा है।”

विदेश मंत्रालय ने कहा कि प्रबोवो सुबियांतो का दौरा हमारे नेताओं को द्विपक्षीय रिश्तों की विस्तृत समीक्षा का मौका देगा। इसके साथ ही हमें आपसी हितों के क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों को सुलझाने का मौका देगा।

भारत-इंडोनेशिया: करीबी रिश्तों का रहा है इतिहास
भारत और इंडोनेशिया के बीच बीती करीब दो शताब्दियों से करीबी सांस्कृतिक और वाणिज्यिक रिश्ते रहे हैं। हिंदुत्व, बौद्ध धर्म और इस्लाम भारत के तटीय क्षेत्रों से ही इंडोनेशिया पहुंचे। इंडोनेशिया की लोक कला, संस्कृति और नाट्यों में भारत के महाग्रंथों- रामायाण और महाभारत की झलक देखने को मिलती है। इसके अलावा औपनिवेशक इतिहास और स्वतंत्रता के बाद राजनीतिक स्वायत्तता, आर्थिक स्व-निर्भरता और स्वतंत्र विदेश नीति के लक्ष्य दोनों देशों के द्विपक्षीय रिश्तों को गहरा करने में अहम रहे हैं।

भारत और इंडोनेशिया कई एशियाई और अफ्रीकी देशों की स्वतंत्रता के लिए आवाज उठाने वाले प्रमुख देशों में शामिल रहे हैं। इसी साझा आवाज ने 1955 में बांदुंग कॉन्फ्रेंस और 1961 में गुट निरपेश आंदोलन (नॉन एलाइन्ड मूवमेंट) की नींव रखी।

भारत की तरफ से 1991 में लुक ईस्ट नीति ने 2014 में एक्ट ईस्ट नीति का रूप लिया। तब से लेकर अब तक दोनों देशों के बीच राजनीतिक, सुरक्षा, रक्षा, वाणिज्यिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में द्विपक्षीय रिश्ते तेजी से बढ़े हैं। दोनों देशों ने एक साल के अंतर (2022 और 2023 में) पर जी20 की अध्यक्षता भी की है।

आसियान क्षेत्र में इंडोनेशिया, भारत के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार है। दोनों देशों के बीच 2022-23 में द्विपक्षीय व्यापार 38.5 अरब डॉलर तक पहुंच चुका है, जो कि 2021-22 के मुकाबले 48 फीसदी ज्यादा था। जहां भारत की तरफ से निर्यात 10.02 अरब डॉलर का रहा था, वहीं आयात करीब 28.82 अरब डॉलर का रहा था।

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