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दूसरे दलों से आने वालों को तरजीह दिये जाने से बढी पुराने भाजपा कार्यकर्ताओं की चिन्ता  

कोलकाता। पश्चिम बंगाल में अप्रैल महीने में आसन्न विधानसभा चुनाव से पहले सत्तारूढ़ पार्टी टीएमसी और अन्य विपक्षी पार्टियों के अनगिनत नेता और कार्यकर्ता रोज ही भाजपा का दामन थाम रहे हैं। खास बात यह है कि सत्तारूढ़ पार्टी टीएमसी के कई शीर्ष नेता भाजपा में आ चुके हैं जिन्हें गत लोकसभा चुनाव में ना केवल टिकट मिला बल्कि जीतने के बाद पार्टी के कई महत्वपूर्ण पदों पर आसीन हो गए । वैसे ही विधानसभा चुनाव से पहले भी कई बड़े नेताओं के भाजपा में आने के आसार हैं और छोटे स्तर के नेता तो आते ही पार्टी में अहम पद पर आसीन होते जा रहे हैं। इसके अलावा विधानसभा चुनाव के मद्देनजर केंद्रीय नेताओं और राज्य स्तर के शीर्ष नेताओं के बीच भी कथित तौर पर कम्युनिकेशन गैप है जिसके कारण भाजपा के पुराने कार्यकर्ता चिंता में पड़े हुए हैं। कुल मिलाकर कहें तो संवाद हीनता की कमी के कारण सांगठनिक तौर पर पार्टी कई मोर्चे पर उलझन में पड़ी हुई है। भाजपा ने राज्य के पांच क्षेत्रों में पांच केंद्रीय पर्यवेक्षकों की नियुक्ति की थी जिसमें सुनील देवधर को मिदनापुर, यूपी के लोकसभा सांसद विनोद सोनकर को रार, राष्ट्रीय महासचिव दुष्यंत गौतम को कोलकाता, महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री विनोद तावड़े को नबद्वीप, अमित मालवीय को उत्तर बंगाल भेजा गया था। पिछले महीने राज्य का दौरा करने के बाद, नड्डा को पार्टी पर्यवेक्षकों से एक विस्तृत रिपोर्ट मिली थी, जिसके आधार पर जमीन पर काम शुरू हुआ। सूत्रों का कहना है कि जमीनी स्तर के भाजपा कार्यकर्ताओं से मुलाकात के बाद केंद्रीय नेतृत्व को प्रतिक्रिया सौंपी गई है। सूत्रों ने कहा कि भाजपा कार्यकर्ता राज्य नेतृत्व और जमीन पर काम करने वालों के बीच संवाद की कमी को लेकर चिंतित है। हर संभव स्तर पर संवाद शुरू करने की तत्काल जरूरत है। जब से भाजपा ने बंगाल में अपने मिशन की घोषणा की है तब से तृणमूल कांग्रेस और माकपा के कई नेता

बीजेपी में आ चुके हैं। बीजेपी के पुर कार्यकर्ताओं को इस बात का डर सता रहा है कि अन्य पार्टियों से आने वाले नेताओं को पार्टी में उन पर तरजीह मिलने लगेगी। इसके अलावा कार्यकर्ताओं को लगता है कि तृणमूल और वाम दलों की तरह भाजपा भी राजनीतिक हिंसा का हिस्सा बनती जा रही है,म। सूत्रों का कहना है कि अपनी रिपोर्ट में केंद्रीय पर्यवेक्षकों ने नेतृत्व से कहा है कि जमीन पर काम करने वाले राज्य नेतृत्व में बदलाव की लगातार अफवाहों से चिंतित हैं। कथित तौर पर अधिकतर अफवाह उन लोगों ने फैलाई है जो दूसरे दलों से बीजेपी में आए हैं। इन्हीं सबके बीच बीजेपी के कार्यकर्ता उत्साहित हैं और वह ममता बनर्जी के कथित ‘भ्रष्टाचार-ग्रस्त और हिंसक शासन’ समाप्त करने के लिए कड़ी मेहनत करने को तैयार हैं। हालात को भांपते हुए पुराने और समर्पित कार्यकर्ताओं को पार्टी में अहमियत दिलाने की कवायद शुरू करने की सिफारिश की गई है।

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