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Congress की तरह BJP में भी Sindhiya मप्र की राजनीति से बाहर!

April 16, 2021

  • पार्टी बदल गई लेकिन नहीं बदला फॉर्मूला
  • भाजपा ने राज्य में सिंधिया को अब तक नहीं दी कोई बड़ी जिम्मेदारी

भोपाल। करीब एक साल पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) ने कांग्रेस (Congress) छोड़ भाजपा (BJP) का दामन थामा था। कांग्रेस (Congress)  में 18 साल लंबी पारी खेलने के बाद जब अपने समर्थकों के साथ उन्होंने भगवा पार्टी ज्वॉइन की थी तो यही लगा था कि अब वे प्रदेश की राजनीति में ज्यादा सक्रिय भूमिका निभाएंगे। कांग्रेस (Congress) में रहते हुए उन्होंने पहले मुख्यमंत्री (Chief Minister) और फिर प्रदेश अध्यक्ष (State President) पद पर इसीलिए दावा ठोंका था, लेकिन कमलनाथ (Kamalnath) और दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh) की जोड़ी ने उनके इरादे सफल नहीं होने दिए। उनके भाजपा (BJP) में जाने के बाद समर्थकों को उम्मीद थी कि सिंधिया (Sindhiya) अब मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में रहकर अपनी राजनीति को आगे बढ़ाएंगे, लेकिन लगता है भाजपा (BJP) भी उन्हें वैसे ही इस्तेमाल कर रही है, जैसे कांग्रेस (Congress) करती थी। राज्य की राजनीति से दूर रखकर उन्हें केंद्रीय राजनीति (Central politics) में व्यस्त रखने का कांग्रेसी फॉर्मूला (Congress formula) भाजपा भी आजमाती हुई दिख रही है। पिछले साल नवंबर में मप्र में विधानसभा (Vidhan Sabha) की 28 सीटों पर हुए उपचुनाव के बाद से सिंधिया (Sindhiya) मप्र से लगातार दूर हो रहे हैं। उपचुनाव में वे पार्टी के स्टार प्रचारक थे। उनकी अधिकांश चुनावी सभाओं में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chouhan) और भाजपा (BJP) के दूसरे बड़े नेता उनके साथ होते थे। इसका एक बड़ा कारण यह था कि उपचुनाव में अधिकांश सीटों पर उनके समर्थक ही भाजपा (BJP) के उम्मीदवार थे, लेकिन नतीजे आने के बाद से उनका अधिकांश समय दिल्ली में ही गुजरा है। पार्टी की ओर से उन्हें प्रदेश में कोई जिम्मेदारी नहीं दी गई है।

मप्र भाजपा दिग्गजों की भरमान
भाजपा के पास मप्र में नेताओं की भरमार है। शिवराज सिंह चौहान चौथी बार मुख्यमंत्री बने हैं तो कैलाश विजयवर्गीय, नरोत्तम मिश्रा, गोपाल भार्गव, भूपेंद्र सिंह जैसे कई नेता हैं जो आगे चल कर उनके विकल्प बन सकते हैं। भाजपा इनके बीच सिंधिया को उतारकर राज्य में सत्ता संतुलन को अस्थिर नहीं करना चाहती। सिंधिया के राज्य में सक्रिय होते ही भाजपा के इन नेताओं में असंतोष पैदा होने का खतरा है। भाजपा ऐसा कोई खतरा मोल लेने के पक्ष में नहीं है और सिंधिया को इस कारण ही राज्य में बड़ी जिम्मेदारी देने से परहेज कर रही है।

अब तक कोई जिम्मेदारी नहीं
सिंधिया के भाजपा ज्वॉइन करने के बाद उन्हें नरेंद्र मोदी कैबिनेट में मंत्री बनाने की चर्चाएं थीं, लेकिन अब तक ऐसा नहीं हुआ। उनके समर्थकों को भाजपा के प्रदेश संगठन में जगह देने की बात भी हुई, लेकिन प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा की टीम में उनके एक भी समर्थक को शामिल नहीं किया गया। रोचक यह है कि भाजपा ने मप्र के दमोह में 17 अप्रैल को होने वाले उपचुनावों के लिए स्टार प्रचारकों में भी उन्हें रखा है, लेकिन जब पार्टी उम्मीदवार राहुल सिंह ने नामांकन भरा तो इसमें सिंधिया शामिल नहीं थे। राहुल ने सीएम शिवराज की मौजूदगी में नॉमिनेशन किया। यह भाजपा की ओर से एक और संकेत है कि पार्टी उन्हें मप्र से दूर रखने की रणनीति पर काम कर रही है।

दोराहे पर सिंधिया
इस सबके बीच सिंधिया दोराहे पर खड़े हैं। वे कई बार मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने की इच्छा जता चुके हैं। उनके समर्थक भी यह इच्छा जता चुके हैं, लेकिन कांग्रेस में रहते हुए उनकी यह हसरत पूरी नहीं हुई और भाजपा में भी फिलहाल उनकी इच्छा पूरी होती नहीं दिख रही। ऐसे में सवाल उठने लगे हैं कि पिता माधवराव सिंधिया की तरह ज्योतिरादित्य का यह सपना भी कहीं अधूरा तो नहीं रह जाएगा।

सिंधिया की डिमांड, भाजपा की परेशानी
दरअसल सिंधिया का कहना है, कि हाटपिपल्या विधायक मनोज चौधरी, भांडेर विधायक रक्षा संतराम और पंकज चतुर्वेदी को संगठन में सम्माजनक पद पर एडजस्ट किया जाए। महामंत्रियों की नियुक्ति के बाद अब संगठन में सम्मानजनक पद के नाम पर सिर्फ उपाध्यक्ष पद ही रह गया है, जिसके लिए भी भाजपा के दर्जनों दावेदार तैयार बैठे हैं। खबर तो यह भी है, कि मंत्री पद के कई दावेदारों को भी भाजपा उपाध्यक्ष ही बनाएगी, और अगर सिंधिया समर्थक चेहरों को इस पोस्ट पर एडजस्ट किया जाता है, कि तो एक बार फिर भाजपा के खांटी नेता उपेक्षित रह सकते हैं। हालांकि भाजपा इन तीन चेहरों को संगठन में एडजस्ट करने की बात तो मान गई है, लेकिन अब वह उनकी जिम्मेदारियों को लेकर मंथन कर रही है। जिससे पार्टी के अन्य नेता भी सम्मानजनक पद पर काबिज हो सकें। इसके लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया से पार्टी के साथ को-ऑपरेट करने की मांग की गई है।

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