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AIIMS की गाइडलाइंस पर आर्मी डॉक्टर ने गुलेरिया पर किए सवाल खड़े

नई दिल्‍ली। वैश्विक महामारी कोरोना महामारी की दूसरी लहर से पूरा देश अस्पतालों में बेड और ऑक्सीजन की कमी से जूझ रहा था तो वहीं बाजार में रेमडेसिविर (Remedivir) जैसी दवाइयों की कालाबाजारी भी देखने को मिली। इसी दौरान कोविड से बचाव के लिए समय-समय पर एम्स और आईसीएमआर (ICMR) की तरफ से गाइडलाइन जारी की जाती रहीं हैं। देश भर में स्वास्थ्यकर्मियों और आम लोगों की तरफ से इसका पालन किया जाता है, हालांकि एम्स की गाइडलाइंस पर आर्मी के डॉक्टर ने सवाल खड़ा किया है। डॉक्टर ने कहा है कि इससे जान और माल दोनों को नुकसान हो रहा है, क्योंकि शुरुआत में AIIMS की तरफ से जो गाइडलाइन जारी की गईं उसे बाद में यह कहते हुए खारिज कर दिया गया कि इसे कोरोना मरीजों पर बहुत प्रभावी नहीं पाया गया है।

मेजर जनरल (डॉ) वीके सिन्हा (Major General VK Sinha) ने ऐसे ही कुछ महत्वपूर्ण सवाल खड़े करते हुए AIIMS के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया को खत लिखा है। उन्होंने एम्स निदेशक को एक खुला खत लिखकर उनसे सफाई मांगी है। उन्होंने लिखा, मैं एक चिकित्सा विधर्मी हूं, जिसके अंदर सवाल करने की एक खास विशेषता है। मैंने तर्क की कसौटी पर कसने के बाद किसी बात को मानने की प्रवृत्ति, चिकित्सा क्षेत्र के प्रणेताओं से विरासत में पाई है। आप, निश्चय ही आज घर-घर में जाने जाते हैं। आप इसके हकदार भी हैं क्योंकि आप ऐसी मेडिकल इमरजेंसी में भी देश को रास्ता दिखा रहे हैं। लोग डॉक्टरों की ओर देखते हैं और डॉक्टर उत्कृष्ट संस्थानों की ओर. आप अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के निदेशक हैं जो बड़ा ही प्रतिष्ठित पद है और इसका अपना ही आभामंडल है, होना भी चाहिए. आपके शब्दों को देश के आम लोग और पूरी चिकित्सा बिरादरी अटल सत्य के तौर पर देखती है, इसलिए, आपकी जिम्मेदारी बहुत अधिक हो जाती है।

उन्होंने आगे लिखा- ‘मैं आपका ध्यान एम्स के 7 अप्रैल 2021 के दिशा-निर्देशों की ओर दिलाना चाहता हूं। एक पन्ने का दिशा-निर्देश देश भर के विशेषज्ञों से लेकर दूर-दराज के इलाकों में चिकित्सा व्यवस्था की रीढ़ की तरह काम करने वाले झोलाछाप डॉक्टरों के लिए बाइबिल बन गया। एम्स के इस दिशा-निर्देश में हल्के संक्रमण की स्थिति में होम आइसोलेशन के मामले में आइवरमेक्टिन देने की सलाह दी गई थी, लेकिन 7 अप्रैल की तारीख तक कोविड के इलाज में इस दवा की उपयोगिता से कहीं ज्यादा सामग्री उसके खिलाफ ही थी।



मार्च में ही विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा था कि “कोविड-19 के रोगियों के इलाज में आइवरमेक्टिन के इस्तेमाल को लेकर मौजूदा साक्ष्य अनिर्णायक हैं”। वास्तविकता तो यह है कि मेडिकल साक्ष्य व्यवस्था को समझने वाले लोगों के लिहाज से कभी ऐसा कोई साक्ष्य था ही नहीं। इस तरह की किसी भी बात पर आपने ध्यान ही नहीं दिया? आपका ध्यान डब्ल्यूएचओ के दिशा-निर्देशों पर भी नहीं गया या मेडिकल सबूत नहीं होने को आपने गलत समझ लिया, यह असंभव और समझ से परे है। चिकित्सा में क्या सही है और क्या गलत, इस बारे में फैसला सुनाने वाले देश के सबसे बड़े जज होने के नाते आप इस तरह की चूक नहीं कर सकते।

आपने हमें यह बताने में भी तीन हफ्ते से अधिक का समय लगा दिया कि कोविड में इस दवा के उपयोग के पक्ष में कोई साक्ष्य नहीं है। क्या आपको यह बात पता नहीं थी कि भ्रामक दिशा-निर्देश पर इलाज चल रहा था? एक पल्मोनोलॉजिस्ट होने के नाते मेरे पास यह मानने के पर्याप्त कारण हैं कि टैमीफ्लू संबंधी गड़बड़झाले के बारे में आपको भी जानकारी होगी। एक बार फिर यह भी आपकी ही निगरानी में हुआ।



डॉ. गुलेरिया, आपके अधीन एम्स ने एक अस्पष्ट और भ्रामक फ्लो-चार्ट जारी करने की घातक गलती की जिसमें किसी भी समय-सीमा की परवाह किए बिना स्टेरॉयड के उपयोग का सुझाव दिया गया था। दवा लिखने की अपनी बारीकियां होती हैं जो डॉक्टरों के फैसलों से भी जुड़ी होती हैं। महामारी की भयावहता के युद्ध जैसे मौजूदा हालात में यह समझ-बूझ की स्थिति जाती रही।
कोविड से हुई मौतों में स्टेरॉयड के दुरुपयोग से हुई मौतों का अनुपात क्या रहा, इसका पता कभी नहीं चल सकेगा; न ही उन परिवारों की संख्या का पता चल सकेगा जिन्होंने अपनी संपत्ति गिरवी रखकर या अपनी जमीन के छोटे-छोटे टुकड़ों को बेहद महंगे लेकिन बेकार रेमडेसिविर खरीदने के लिए बेच दिया।

दिशा-निर्देशों में दिए गए टॉसिलजुमाब या प्लाज्मा से होने वाले फायदे को लेकर भी मेरी शंकाओं के ऐसे ही कारण हैं क्योंकि ये भी वैज्ञानिक जांच की कसौटी पर खरे नहीं उतरते. मुझे नहीं पता कि हमलोगों को इस नाजुक स्थिति में डालने को लेकर दोषी को आप कठघरे में खड़ा करेंगे या नहीं? मैं तो बस आपको नायक की जिम्मेदारी के सिद्धांत की याद दिलाना चाहता हूं।

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