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शुभेंदु के निर्वाचन को चुनौती देने वाली ममता की याचिका पर अब 24 जून को होगी सुनवाई

कोलकाता। कलकत्ता हाईकोर्ट (Calcutta high court ) की पीठ ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) द्वारा दायर चुनाव याचिका पर सुनवाई 24 जून तक के लिए टाल दी। याचिका में नंदीग्राम निर्वाचन क्षेत्र से उनके करीबी सहयोगी रहे शुभेंदु अधिकारी (Suvendu Adhikari)की जीत को चुनौती दी गई है।

शुक्रवार को जस्टिस कौशिक चंद्र ने ममता की याचिका पर सुनवाई की। कोर्ट ने कहा ‘मामले को अगले गुरुवार को सूचीबद्ध किया जाए।इस बीच रजिस्ट्रार इस अदालत के समक्ष रिपोर्ट दाखिल करेगा कि क्या याचिका जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप दायर की गई है।’

चुनाव आयोग ने नंदीग्राम निर्वाचन क्षेत्र से अधिकारी को विजेता और तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष बनर्जी को उपविजेता घोषित किया था। बता दें बनर्जी ने ईवीएम मशीनों से छेड़छाड़ और चुनाव आयोग के संबंधित अधिकारी द्वारा दोबारा मतगणना की मांग को ठुकराने का आरोप लगाते हुए नतीजों की घोषणा के बाद कहा था कि इस मुद्दे को लेकर अदालत का दरवाजा खटखटाया जाएगा। भाजपा विधायक अधिकारी वर्तमान समय में पश्चिम बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता हैं।


हाल ही में संपन्न हुए चुनाव मेंअधिकारी ने नंदीग्राम सीट 1,956 मतों से जीती थी, जिससे ममता को 32 वर्षों में पहली चुनावी हार का सामना करना पड़ा। अधिकारी पिछले साल भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए थे और अपनी जीत के बाद, बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता बने।

बंगाल चुनाव में प्रचंड जीत के बाद ममता बनर्जी ने लगातार तीसरी बार जीत हासिल की। हालांकि नंदीग्राम में उन्हें खुद एक छोटे अंतर से हार का सामना करना पड़ा। मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बने रहने के लिए, बनर्जी को छह महीने के भीतर उपचुनाव लड़ना होगा और राज्य विधानसभा का सदस्य बनना होगा।

ममता के लिए क्यों अहम है नंदीग्राम?
नंदीग्राम पुरबा मेदिनीपुर में स्थित एक छोटा सा शहर है। साल 2007 में वामदल की सरकार द्वारा औद्योगिक उद्देश्यों के लिए भूमि अधिग्रहण के खिलाफ इस क्षेत्र में हिंसक आंदोलन हुआ था। जिसेक बाद पुलिस फायरिंग में 14 लोगों की मौत हो गई और इसके परिणामस्वरूप मार्क्सवादी सरकार के खिलाफ बड़े पैमाने पर विद्रोह हुआ। इसके बाद बनर्जी ने नंदीग्राम को वामपंथियों के खिलाफ अपनी तीन दशक पुरानी भयंकर लड़ाई के प्रतीक के रूप में बदल दिया। नतीजा यह हुआ कि 2011 में 34 साल पुरानी मार्क्सवादी सरकार को जनता ने नकार दिया और टीएमसी ने जीत दर्ज की।

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