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अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी से मरने वालों का केंद्र के पास ही रिकॉर्ड नहीं

July 23, 2021

नई दिल्ली। केंद्र सरकार (central government) ने दूसरी लहर में ऑक्सीजन की कमी (lack of oxygen) से एक भी मौत न होने का मामला राज्य सरकारों (state governments) पर छोड़ दिया है। सदन में कहा गया कि राज्यों से इस बारे में कोई जानकारी नहीं मिली (No information was received from the states about this) है लेकिन मरने वालों की संख्या केंद्र सरकार के अधीन देश के बड़े सरकारी चिकित्सीय संस्थानों के पास भी नहीं है। आरटीआई से पता चला कि इन अस्पतालों ने ऑक्सीजन की कमी या फिर पर्याप्त बिस्तर न होने से साफ इनकार तक कर दिया।

इन अस्पतालों में एम्स दिल्ली, एम्स भुवनेश्वर, एम्स भोपाल, एम्स रायपुर, एम्स पटना और एम्स जोधपुर भी शामिल हैं। इनके अलावा चंडीगढ़ पीजीआई, सफदरजंग अस्पताल, राम मनोहर लोहिया (RML) अस्पताल, लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज, नेशनल सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (NCDC) और शिलांग स्थित पूर्वोत्तर इंदिरा गांधी क्षेत्रीय एवं आयुर्विज्ञान संस्थान भी हैं जो केंद्र सरकार के अधीन हैं और इनके यहां ऑक्सीजन की कमी या फिर बिस्तरों की संख्या कम पड़ने की वजह से किसी मरीज की मौत होने की जानकारी नहीं है।


कोरोना महामारी की दूसरी लहर का पीक निकलने के बाद उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद निवासी अनिकेत गौरव ने जब केंद्र सरकार के देश भर में मौजूद चिकित्सीय संस्थान और दिल्ली सरकार व उसके पांच बड़े अस्पतालों से यह जानकारी मांगी तो सभी अस्पतालों ने जानकारी दी है कि उनके पास ऑक्सीजन की कमी से किसी की मौत होने, वेंटिलेटर की कमी से किसी की जान जाने या फिर अस्पताल में बिस्तर कम पड़ने का कोई लिखित ब्यौरा मौजूद नहीं है।

अनिकेत गौरव का कहना है कि इस आरटीआई के बाद यह स्पष्ट है कि न सिर्फ राज्य, बल्कि केंद्र सरकार ने भी ऑक्सीजन की कमी या फिर स्वास्थ्य सेवाओं के अभाव के चलते मरने वालों की रिपोर्टिंग को लेकर कोई आदेश जारी नहीं किया था।

कोरोना महामारी की शुरुआत से केंद्र सरकार के नेशनल सेंटर फॉर डिजीस कंट्रोल (एनसीडीसी) हर राज्य के हालात और वहां के सभी आंकड़े एकत्रित करने की जिम्मेदारी संभाल रहा है। जांच, मरीज, संदिग्ध, मौत, कंटेनमेंट जोन, मृत्युदर, होम आइसोलेशन इत्यादि जानकारी उनके पास मौजूद है लेकिन आरटीआई में एनसीडीसी ने ऑक्सीजन या संसाधनों की कमी के चलते मौत को शामिल नहीं किया है।

ऑक्सीजन आपूर्ति को किसी ने सरकारी कागजों पर नहीं किया दर्ज
अनिकेत गौरव का कहना है कि ऑक्सीजन की कमी से किसी की मौत सीधे तौर पर साबित नहीं की जा सकती है लेकिन ऑक्सीजन कब कम हुई और कब खत्म या फिर कब नया स्टॉक आया, इसका पूरा ब्यौरा सरकारी अस्पतालों के कागजात में रहता है। आरटीआई में मिले जवाब से साफ है कि इन अस्पतालों ने ऑक्सीजन आपूर्ति को कभी सरकारी कागजों पर दर्ज नहीं किया।

बिना रिकॉर्ड के नहीं हो सकेगा ऑडिट
दिल्ली में केजरीवाल सरकार डेथ ऑडिट करवाना चाहती थी जिसके लिए गठित समिति को उपराज्यपाल ने भंग कर दिया था लेकिन आरटीआई के जरिए दिल्ली स्वास्थ्य विभाग, संजय गांधी मेडिकल कॉलेज, सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र, दीन दयाल उपाध्याय अस्पताल, आचार्य भिक्षु अस्पताल और बाबा भीमराव अंबेडकर मेडिकल कॉलेज ने अपने यहां किसी भी रिकॉर्ड से साफ इनकार किया है।

ऐसे में बड़ा सवाल है कि आखिर दिल्ली सरकार अब डेथ ऑडिट भी करवाना चाहे तो बगैर रिकॉर्ड के किस आधार पर तय करेगी कि अप्रैल से मई के बीच अस्पतालों में कितने लोगों को ऑक्सीजन नहीं मिली जिसकी वजह से मल्टी ऑर्गन फेल होने से उसकी मौत हुई।

एम्स का दावा-ऑक्सीजन नहीं हुई कम
दूसरी लहर के दौरान देश के सबसे बड़े चिकित्सीय संस्थान दिल्ली एम्स में कभी ऑक्सीजन की कमी नहीं रही। एम्स प्रबंधन ने कहा कि उनके यहां वेंटिलेटर या बिस्तर की कमी नहीं थी। सभी को उपचार मिला, न ही कभी ऑक्सीजन की कमी रही। इसलिए उनके यहां ऑक्सीजन की कमी से किसी की भी मौत नहीं हुई। जबकि एम्स ने 24 अप्रैल को ऑक्सीजन की कमी के चलते नए मरीजों को भर्ती करना बंद कर दिया था।

उस दौरान एम्स ने नए कोविड मरीजों को भर्ती नहीं किया था। इतना ही नहीं जब फ्रांस सरकार से अनुदान में ऑक्सीजन संयंत्र मिले तो देश में सबसे पहले एम्स ने पांच मई को इसे अपने मुख्य अस्पताल में स्थापित करवाया।

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