
– डॉ. वेदप्रताप वैदिक
भारत की आजादी का 75 वां साल शुरु हो रहा है तो हमारे लिए यह सोचने का सही मौका है कि इतने वर्षों में भारत ने क्या पाया और खोया या क्या नहीं पाया ? सबसे पहली बात तो यह है कि हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं। लोकतांत्रिक तो कई देश रहे हैं लेकिन अफ्रीका और एशिया के कई देश ऐसे भी हैं, जहां फौज या किसी गुट या किसी परिवार ने सत्ता पर कब्जा कर लिया है लेकिन भारत का लोकतंत्र अप्रतिहत है। सुरक्षित है। दूसरी बात यह कि भारत के पड़ोस में लगभग सभी देशों के संविधान कई बार बदल चुके लेकिन भारतीयों को गर्व होना चाहिए कि उनका मूल संविधान ज्यों का त्यों है। उसमें लगभग सवा सौ संशोधन जरूर हुए हैं लेकिन यह उसके लचीलेपन और समयानुरूप होने का प्रमाण है।
भारतीय लोकतंत्र की यह भी एक खूबी है कि यह संघात्मक है। इसके कई प्रांतों में कई पार्टियों का शासन चलता रहता है। केंद्र और राज्यों में परस्पर विरोधी पार्टियों का शासन भी कमोबेश सुचारु रुप से चलता रहता है। भारतीय लोकतंत्र की एक बड़ी उपलब्धि यह भी है कि आजादी के बाद पाकिस्तान या कुछ यूरोपीय देशों की तरह इसके टुकड़े नहीं हुए। यह हुआ कि कश्मीर, गोआ, सिक्किम जैसे क्षेत्रों का इसके साथ विलय हो गया। इसके अलावा भारत ने परमाणु बम बनाकर खुद को दुनिया की महाशक्तियों की कतार में बिठा लिया। हमारी सैन्य-शक्ति इतनी बढ़ गई कि अब 1962 को दोहराने की हिम्मत कोई राष्ट्र नहीं कर सकता।
इसमें शक नहीं कि आर्थिक क्षेत्र में भी भारत ने काफी उन्नति की है लेकिन इस उन्नति का समान लाभ हमारे वंचित, उपेक्षित, गरीब, ग्रामीण लोगों को हम नहीं दे पाए। अभी भी देश में अमीरी और गरीबी की खाई बहुत गहरी है। देश के करोड़ों लोगों को रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, चिकित्सा और रोजगार न्यूनतम रूप में भी उपलब्ध नहीं है। हमारे नेता नोट और वोट के प्रति समर्पित हैं। भारत को संपन्न और शक्तिशाली बनाने की दृष्टि का उनमें अभाव है।
गांधीजी जिसे अंतिम आदमी कहते थे, उसके दुख-दर्दों की तरफ उनका ध्यान ही नहीं है। पिछले 74 साल में एक भी सरकार ऐसी नहीं बनी, जो भारत को अंग्रेजों और अंग्रेजी की मानसिक गुलामी से मुक्त करवा देती। पता नहीं भारत नकलची देश की बजाय कब असलची देश बनेगा ? भगवान बुद्ध, महावीर स्वामी और महर्षि दयानंद के सपनों का अखंड आर्यावर्त्त खड़ा करने के सोच को साकार करनेवाला कोई नेता भारत में कभी पैदा होगा या नहीं ?
(लेखक सुप्रसिद्ध पत्रकार और स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
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