नई दिल्ली। निचली अदालतों में मृत्युदंड की सजा (death penalty in lower courts) दिलाने वाले सरकारी वकीलों को इनाम देने या प्रोत्साहन देने की मध्य प्रदेश सरकार की नीति उच्चतम न्यायालय (Supreme court) की जांच के दायरे में आ गई है। कोर्ट ने राज्य सरकार से अगली सुनवाई पर इससे संबंधित दस्तावेज पेश करने को कहा है।
न्यायमूर्ति यूयू ललित की अध्यक्षता वाली पीठ ने अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल की इस दलील पर गौर किया कि अभियोजकों को पुरस्कृत करने की इस तरह की प्रथा को शुरूआत में ही समाप्त कर दिया जाना चाहिए। अटॉर्नी जनरल मौत की सजा का फैसला करने के लिए डेटा और सूचना के संग्रह में शामिल प्रक्रिया की जांच और संस्थागत बनाने के लिए दर्ज एक स्वत: संज्ञान मामले में शीर्ष अदालत की सहायता कर रहा है।
जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस एस रवींद्रन भट और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने स्वत: संज्ञान लेकर वीभत्स आपराधिक मामलों में, जिनमें मृत्युदंड की सजा शामिल है, साक्ष्य जुटाने की प्रक्रिया की जांच और उन्हें व्यवस्थित करने संबंधी मामले की सुनवाई शुक्रवार को शुरू की। इस संबंध में कोर्ट ने तब संज्ञान लिया, जब याचिकाकर्ता इमरान ने ट्रायल कोर्ट द्वारा सुनाई गई मृत्युदंड की सजा और एमपी हाईकोर्ट द्वारा उसे बरकरार रखने के खिलाफ चुनौती दी।
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