
कौन कहता है मौत आई तो मर जाऊंगा
मैं तो दरिया हूं समंदर में उतर जाऊंगा
प्रशांत कुमार को हमसे बिछड़े हुए बीस बरस गुजर गए। 23 जून 2002 में 39 बरस की उमर में उस दौर का वो नौजवान सहाफी हैदराबाद में एक सड़क हादसे में चल बसा था। प्रशांत ने सबके साथ निबाह किया, बाकी जिंदगी ने उसके संग वफा नहीं की। सन 1988 मैं दैनिक जागरण से अपनी सहाफत (पत्रकारिता) का सफर शुरु करने वाले प्रशांत ने 1989 में दैनिक भास्कर में लपक आमद दर्ज कराई थी। एडिटर महेश श्रीवास्तव प्रशांत को भास्कर में लाए थे।
अस्सी की दहाई के आखिर का ये वो वखत था जब भोपाल में नवभारत का सर्कलेशन भास्कर से ज्यादा था। रमेश अग्रवाल साब का ख्वाब था की भास्कर एक नंबर अखबार बने। लिहाजा एडिटर जनाब महेश श्रीवास्तव ने जरा फायरी किस्म के रिपोर्टरों को अपॉइंट करना शुरु किया। सितंबर अठ्ठासी में रविंद्र जैन सिटी टीम में आए। चंद महीने बाद प्रशांत कुमार भी इस टीम में जुड़ गए। ये नाचीज आरिफ मिर्जा भी पहले से वहां था। मरहूम जगत पाठक साब हमारे सिटी चीफ थे। राजेश चंचल क्राइम देखते थे। महेशजी प्रशांत और रविंद्र जैन को अपनी बेल जोड़ी कहते थे। इस जोड़ी ने साल भर में एक्सक्लूसिव और सनसनीखेज खबरों के ढेर लगा दिए। जैसा कि रमेशजी का ख्वाब था भास्कर ने नवभारत को पछाड़ दिया। इस जोड़ी ने भास्कर को जो मजबूती दी उसकी मिसाल आज भी दी जाती है। ये वो दौर था जब बुजुर्ग सहाफी श्याम सुंदर ब्योहार और गोवर्धनदास मेहता का सानिध्य इस टीम को मिलता था।
भास्कर में दस बरस के वक्फे में प्रशांत रिपोर्टर से सिटी चीफ और पॉलिटिकल कोरेस्पोंडेंट के ओहदे तलक पहुंचा। पत्रकारों की नई जमात प्रशांत के तर्ज़े हुनर और प्रोफेशनल स्पीड से शायद ही वाकिफ हो। कम वक्त में इस पत्रकार ने जित्ता नाम कमाया उत्त्ता लोग बरसों काम करके बी नईं कमा पाते। प्रशांत की खबरों की समझ और सोर्स गजब के थे। इससे अलहदा अपनी ज़ाती जिंदगी में वो भोत मस्तमौला, यारबाज और दिलफेंक इंसान था। उसका सेंस ऑफ ह्यूमर कमाल था। भाई जिस महफिल में बैठता वहां ठहाके लगते ही रहते। 1999 मैं उसका दिल भास्कर से उचटने लगा था। नई मंजिल नए काम की उमंग में प्रशांत ने ई-टीवी हैदराबाद में नई पारी शुरु करी। वो वहां उम्दा काम दिखा रहा था। बीस जून 2002 की शाम दफ्तर से लौटते हुए सड़क हादसे में वो शदीद जख्मी हुआ और दो दिन बाद दुनियाए फानी से कूच कर गया। 23 जून को ट्रेन से उसका शव हबीबगंज स्टेशन पर लाया गया तो उसके अहलेखाना और दोस्तों में आंसुओं का सैलाब बह निकला था। यकीनन आज वो होता तो टीवी न्यूज की दुनिया का बड़ा नाम होता। उफ…उसके साथ गुजारा वक्त उस दौर के सभी सहाफियों को बड़ी शिद्दत से याद आता है। लंबा अरसा बीत चुका है। अरेरा कालोनी के जिस घर में उसके ठहाके गूंजते थे वहां अब कोई और रहता है। प्रशांत की बेगम दिल्ली शिफ्ट हो गईं हैं। वालिद जीसी सक्सेना और चचा का इंतकाल हो चुका है। बिटिया टुकटुक शादी के बाद हैदराबाद में है। प्रशांत की वालेदा अपनी बेटियों के पास अमेरिका में हैं। याद आते हो दोस्त…तुम्हें पुरनम आंखों से खिराजे अकीदत।
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