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कम नींद लेने से बढ़ सकता है हार्ट अटैक का खतरा

September 15, 2025

नई दिल्ली। दुनियाभर(Whole world) में पिछले कुछ सालों से हार्ट अटैक के कई ऐसे मामले देखने को मिले हैं जिससे मेडिकल साइंस के जानकार भी हैरत में हैं। कई नौजवान और स्वस्थ लोग भी हार्ट अटैक(heart attack) के ऐसे शिकार हुए कि लोगों को इसकी उम्मीद नहीं थी। इसी कड़ी में अमेरिका (America) स्थित अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन ने एक रिपोर्ट में कहा है कि कम नींद या इसकी कमी अब आधिकारिक तौर पर हृदय (Heart) और उससे जुड़े रोगों के लिए एक जोखिम कारक है।

कम नींद लेना हार्ट अटैक को दावत देने जैसा
दरअसल, अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन (American Heart Association) ने नींद से जोड़ते हुए ऐसे सात कारकों का उल्लेख किया है जिनमें शारीरिक गतिविधि, निकोटीन जोखिम, आहार, वजन, रक्त ग्लूकोज, कोलेस्ट्रॉल और रक्तचाप शामिल हैं। यह ऐसे कारक हैं जो हृदय रोग के लिए किसी भी व्यक्ति का मूल्यांकन करते हैं। इसी कड़ी में बताया गया कि कम नींद लेना हार्ट अटैक को भी एक प्रकार से दावत देने जैसा है।



छह घंटे से कम सोना बेहद खतरनाक
अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन की अधिकारिक वेबसाइट पर इस रिपोर्ट के बारे में विस्तृत तरीके से बताया है। शोध से पता चला है कि जो लोग रात में छह घंटे से कम सोते हैं, उनमें मोटापा, उच्च रक्तचाप, टाइप 2 मधुमेह और खराब मानसिक और संज्ञानात्मक स्वास्थ्य (Health) का खतरा बढ़ जाता है। एसोसिएशन के अध्यक्ष डोनाल्ड एम लॉयड जोन्स ने कहा कि नींद समग्र स्वास्थ्य को प्रभावित करती है और स्वस्थ नींद पैटर्न वाले लोग वजन रक्तचाप(weight blood pressure) या जैसी चीजों से बच जाते हैं।

वहीं अपनी एक रिपोर्ट में इंडियन एक्सप्रेस ने मुंबई के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ ब्रायन पिंटो के हवाले से बताया कि ने कहा कि दशकों से मैंने देखा है कि जो लोग दिन में कम से कम सात घंटे नहीं सोते हैं, उन्हें दिल का दौरा पड़ने का खतरा अधिक होता है। मरीजों को उनकी स्टॉक सलाह सात घंटे से अधिक लेकिन दिन में आठ घंटे से कम सोना है।

ध्वनि प्रदूषण भी जल्द इसी सूची में शामिल होगा!
चौंकाने वाली बात यह भी है कि डॉ पिंटो ने कहा कि जिस तरह नींद को हृदय स्वास्थ्य के लिए एक महत्वपूर्ण कारक के रूप में मान्यता दी गई है, ध्वनि प्रदूषण को भी जल्द ही इसी सूची में शामिल किया जाएगा। रिपोर्ट्स के मुताबिक भारत सहित अधिकांश देशों में हृदय रोग मृत्यु का नंबर एक कारण है।

कुछ साल पहले ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज अध्ययन ने अनुमान लगाया था कि भारत में प्रति 1,00,000 जनसंख्या पर हृदय रोगों ने 272 लोगों की जान ले ली है जबकि वैश्विक औसत प्रति 1,00,000 जनसंख्या पर 235 है।

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