
ऐसे बीमार की दवा क्या है
जो बताता नहीं हुआ क्या है
कौन सुनता है इस ज़माने में
किस से कहिए कि इल्तिजा क्या है।
अगर मैं ये कहूं के ये दौर अपनी सेहत का सबसे ज़्यादा खय़ाल रखने का है…तो इसमे कुछ गलत न होगा। आजकल तो साब किसी अच्छे खासे चलते फिरते इंसान की कबी बी फाइल निपट जाती हेगी। सोशल मीडिया पे आये दिन हमे ऐसी खबरें मिलती हैं। फिर भाई लोग लिखते हैं… अरे कल ही तो मिला था…भोत उम्दा इंसान था यार। कोरोना काल मे भोत सारे सहाफियों (पत्रकारों) को वक्त ने हमसे छीन लिया। ये सारी अफसोसनाक घटनाएं हम सहाफियों के लिए इबरत होना चाहिए। नोकरी के टाइट शेड्यूल और टेंशन के बीच कुछ वक्त अपनी सेहत की बेहतरी के लिए भी देने की ज़रूरत है। बाकी एक भोत अहम मसले की तरफ ध्यान देने की ज़रूरत ये है साब के वक्त कह के नईं आता मियां… सो कम से कम जनसंपर्क की सरकारी स्वास्थ्य बीमा योजना का फार्म तो पत्रकारों को भर ही देना चाहिए। कोई साल डेढ़ साल में भोपाल सहित पूरे सूबे में भोत सारे ऐसे सहाफी भी सामने आए जिनकी मौत कैंसर या दिल के दौरे से हुई।
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