नई दिल्ली (New Delhi)। भारत की आजादी (India’s independence) के बाद भी कई रियासतें ऐसी थीं जो कि खुद को स्वतंत्र राज्य मानती थीं। इस मामले में सबसे अड़ियल हैदराबाद के निजाम (Stubborn Nizam of Hyderabad) थे। हैदराबाद को भारत में शामिल करने के लिए सेना का सहारा लेना पड़ा। अंत में 17 सितंबर 1948 को यह भारत का अभिन्न अंग बन गया। सेना के इस अभियान को ‘ऑपरेशन पोलो’ नाम दिया गया। हालांकि अब हैदराबाद के विलय को लेकर भाजपा और बीआरएस में एक विवाद छिड़ा हुआ है। भाजपा इस दिन को ‘राष्ट्रीय मुक्ति दिवस’ के रूप में मनाना चाहती है। वहीं बीआरएस और एआईएमआईएम का कहना है कि इस दिन को ‘राष्ट्रीय एकीकरण दिवस’ के रूप में मनाया जाना चाहिए।
बता दें कि उस वक्त की हैदराबाद रियासत आज के तेलंगाना और कर्नाटक, महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में फैली हुई थी। सातवें निजाम मीर उस्मान अली खान ने भारत में रियासत का विलय करने से इनकार कर दिया। हिंदूवादी संगठनों का कहना है कि निजाम पाकिस्तान की मदद से एक मुस्लिम राज्य बनाना चाहते थे और इस दिन लोगों को मुस्लिम शासक से मुक्ति दिलाई गई थी। इसलिए इसे मुक्ति दिवस के रूप में मनाना चाहिए। साल 2022 में पहली बार केंद्र सरकार ने इसे ‘मुक्ति दिवस’ के रूप में मनाने का ऐलान कर दिया। बीते साल सिकंदराबाद परेड ग्राउंड में गृह मंत्री अमित शाह की उपस्थिति में रैली हुई। इस साल भी शाह तेलंगाना मुक्ति दिवस को मानने पहुंचने वाले हैं।
तेलंगाना के सीएम के चंद्रशेखर राव इस दिवस पर कोई समारोह ही नहीं करते थे। हालांकि इस बार वह भी एनटीआर स्टेडियम में ‘एकीकरण दिवस’ मनाने जा रहे हैं। भाजपा और बीआरएस दोनों ही आगामी विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए इस दिन को पूरी तरह भुनाना चाहते हैं। उस्मानिया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अडापा सत्यनारायण के मुताबिक एकीकरण और मुक्ति में बस तकनीकी अंतर है। वरना हैदराबाद के आम लोगों ने भारत में शामिल होने के लिए अलग से कोई संघर्ष नहीं किया। उन्होंने जागीरदारों, जमींदारों का विरोध जरूर किया। पुलिस ऐक्शन के बाद उन्हें भारत में शामिल होने का मौका मिला। उनका कहना है कि यह किसी से मुक्ति भी नहीं है। हैदराबाद का निजाम अपना स्वतंत्र राज्य चाहते थे लेकिन उन्हें सेना के आगे सरेंडर करना पड़ा।
क्या था ऑपरेशन पोलो
इतिहासकार डॉ. एसएन प्रसाद ने अपनी किताब ‘ऑपरेशन पोलो- द पुलिस ऐक्शन अगेंस्ट हैदराबाद 1948’ में लिखा है कि निजाम ने 26 जून 1947 को एक शाही पत्र जारी किया था जिसमें लिखा था कि वह ना तो भारत के साथ जाना चाहते हैं और ना ही पाकिस्तान के साथ। वह अपना स्वतंत्र राज्य चाहते हैं। बता दें कि अंग्रेजों को समय से ही हैदराबाद का अलग सिक्का, नोट, स्टांप और सेना हुआ करती थी। वह चाहते थे कि हैदराबाद को डोमिनियन स्टेट का दर्जा मिले और हैदराबाद ब्रिटिश कॉमनवेल्थ का सदस्य बने। हालांकि ब्रिटिश सरकार भारत की नई सरकार को नाखुश नहीं करना चहाती थी और ना ही भारत की राजनीति में ज्यादा दखल का विचार कर रही थी। ऐसे में निजाम की अर्जी को अस्वीकार कर दिया गया।
पाकिस्तान से संपर्क साधने लगे निजाम
भारत की तरफ से केएम मुंशी हैदराबाद के निजाम के साथ ठहराव का समझौता करने गए। हालांकि इसके कुछ महीने बाद ही हैदाराबाद में खूब मार काट हुई। वामपंथियों ने निजाम के खिलाफ संघर्ष छेड़ दिया। वे जमीदारों और देशमुखों से मुक्ति चाहते थे। इस दौरान निजाम सरकार बौखला गई और उसने भारत के साथ किए समझौतों का उल्लंघन करना शुरू कर दिया। यहां 2 लाख रजाकारों की सेना थी जिसने गैरमुस्लिम इलाकों में अत्याचार शुरू कर दिया। इनपर उस्मान अली आंखें मूंदे बैठे थे। इसके बाद निजाम ने पाकिस्तान से संपर्क साधा। इस बात को लेकर सरदार पटेल को बहुत दुख हुआ और उन्होंने सख्ती से निपटने का फैसला कर लिया।
कहा जाता है कि पंडित नेहरू नहीं चाहते थे कि बलप्रयोग हो लेकिन हैदराबाद की रियासत का रुख उग्र था। कासिम रिजवी हिंसा का रास्ता चुन रहा था। इसके बाद सरदार पटेल को लगा कि बिना सैन्य कार्रवाई के हैदराबाद हाथ में नहीं आएगा। हैदराबाद में इस मामले में दखल देने के लिए अमेिका और संयुक्त राष्ट्र को भी चिट्ठी लिखी। अमेरिकी राष्ट्रपति ने किसी भी प्रकार के दखल से इनकार कर दिया।
क्यों कहा गया ऑपरेशन पोलो
13 सितंबर 1948 को सेना ने ऑपरेशन पोलो लॉन्च कर दिया। मेजर जनरल जेएन चैधरी के नेतृत्व में 36 हजार जवान हैदराबाद में प्रवेश कर गए। एयरफोर्स ने बीदर और गुलबर्गा में हवाई बमबाजी भी की। हैदराबाद में उस समय सबसे ज्यादा पोलो ग्राउंड थे इसलिए इसे ऑपरेशन पोलो नाम दिया गया। यह चार दिन तक चला। इसके बाद निजाम और रजाकर सेना भाग खड़ी हुई। 108 घंटे के ऑपरेशन के बाद आज के ही दिन निजाम ने हार स्वीकार कर ली और हैदराबाद भारत का अभिन्न अंग बन गया। बताया जाता है कि इस संघर्ष में भारत के 32 लोग मारे गए थे व हीं हैदराबाद के कम से कम 490 मारे गए थे।
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