
इंदौर, संजीव मालवीय। जैसा कि हर बार होता आया है, भाजपा की रायशुमारी में एक बार फिर बड़े नेताओं की चली और छोटे नेताओं से राय तो ली, लेकिन राय को फेल बता दिया गया और जो नेता रायशुमारी में पास हो गए थे, उन्हें बड़े नेताओं, विधायक, मंत्रियों के दबाव में फेल कर दिया। ये बात अब निकलकर सामने आ रही है, जब लगभग 75 प्रतिशत जिलों के नाम तय कर दिए गए हैं। कुछ जगह रायशुमारी में अव्वल रहने के बाद दावेदार अध्यक्ष पद की कुर्सी से दूर रह गए। हालांकि भाजपा इसे सामाजिक, राजनीतिक गणित बता रही है। इस बार कहा जा रहा था कि रायशुमारी में अव्वल आने वाले नाम को ही अध्यक्ष बनाया जाएगा, चाहे किसी का भी दबाव हो, लेकिन जब मंडल अध्यक्षों की रायशुमारी हुई और अध्यक्ष दूसरे बनकर आए तो पता चल गया था कि इसमें भी विधायकों और बड़े नेताओं की ही चली और बड़ी संख्या में कई जिलों में उनके समर्थकों को मंडल अध्यक्ष बनाया गया है।
बाद में जब जिलाध्यक्ष पद के लिए रायशुमारी होने वाली थी, तब भी संगठन द्वारा चुनाव अधिकारियों को स्पष्ट रूप से समझाया गया कि बड़े नेताओं के दबाव में निर्वाचन नहीं करवाएं। निर्वाचन के बाद जब प्रदेश संगठन कार्यालय में लिफाफे खोले गए तो कई जगह ऐसे नामों को रायशुमारी में पाया गया, जो सामाजिक, जातिगत समीकरणों में फिट नहीं बैठते हैं। उदाहरण के लिए कुछ जिलों में सामान्य जाति के विधायकों की संख्या ज्यादा है तो वहां अध्यक्ष सामान्य वर्ग से ही देने की मांग उठी। वहीं अजा या पिछड़ा वर्ग के इलाकों में उस जाति के ही जनप्रतिनिधि होने के कारण भी समस्या आएगी। सूत्रों का कहना है कि वहां फिर दूसरी जाति के जिला अध्यक्ष को चुनने की बात आई या फिर जिनका काम अच्छा है या फिर किसी बड़े नेता ने उनकी पैरवी की है उन्हें चुन लिया गया। इससे रायशुमारी धरी की धरी रह गई। ऐसे कई उदाहरण 47 जिलाध्यक्षों की घोषणा में आए हैं।
हालांकि इस बारे में खुलकर किसी भी दावेदार ने आपत्ति नहीं जताई है। अंदरूनी सूत्रों का तो यह भी कहना है कि विवाद न हो इसके लिए पहले ही अध्यक्ष चुनने वाले मंडल प्रतिनिधियों और अध्यक्षों से रायशुमारी के कोरे फार्म पर साइन भी करवाए गए हैं। ये फार्म प्रदेश कार्यालय को भिजवा दिए गए और यहां तक कि जो चुनाव प्रभारी थे उनके हस्ताक्षर की भी कॉपी कर ली गई, ताकि जब किसी जिले की घोषणा करना पड़े तो अलग-अलग नहीं करना पड़े। इससे वे दावेदार खुश हैं, जो अपने नेताओं की परिक्रमा करके अध्यक्ष बन गए और वे नाराज हैं, जो रायशुमारी में अव्वल होने के बाद भी अपने आपको ठगा-सा महसूस कर रहे हैं। वैसे 50 के बजाय 73 प्रतिशत जिला अध्यक्ष घोषित किए जा चुके हैं, जो प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव के लिए काफी है।
इंदौर में पिछली बार ऐसा ही हुआ था
जब पिछली बार इंदौर में रायशुमारी की गई थी, तब स्व. उमेश शर्मा का नाम रायशुमारी में उभरकर सामने आया था। तब शर्मा प्रदेश के प्रवक्ता हुआ करते थे। वाक्चातुर्य में माहिर शर्मा का अध्यक्ष बनना लगभग तय था, लेकिन पार्टी ने गौरव रणदिवे को अध्यक्ष बना दिया। उस समय गौरव को तत्कालीन संगठन मंत्री सुहास भगत का साथ मिला था और वे पॉवर में आ गए। ऐसा ही कुछ संतोष वर्मा के समय भी हुआ था। वे भी दावेदारों की दौड़ में अव्वल थे, लेकिन पार्टी ने उस समय शंकर लालवानी को अध्यक्ष बना दिया था।
झाबुआ में भानू भूरिया तीसरी बार अध्यक्ष
संभाग के झाबुआ जिले की ही बात कर ली जाए तो यहां से भानू भूरिया को फिर अध्यक्ष बनाया गया है। वे तीसरी बार अध्यक्ष बने हैं। पहली बार में उन्हें अध्यक्ष बनाया गया और विधानसभा का टिकट दे दिया तो उन्होंने इस्तीफा दे दिया था, लेकिन चुनाव हारने के बाद पार्टी ने दूसरी बार संगठन संभालने का मौका दिया और अब तीसरी बार उन्हें फिर रिपीट कर दिया गया है।
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