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लम्पी बीमारी की वैक्सीन को मिली मंजूरी, लाखों मवेशियों की बच सकेगी जान

February 11, 2025

डेस्क: भारत में लम्पी डिजीज का कहर अभी तक जारी है. इस बीमारी के कारण लाखों मवेशियों की मौत हो चुकी हैं. आज भी बहुत से मवेशी इस बीमारी की गिरफ्त में हैं, लेकिन इस बीमारी की रोकथाम के लिए भारत बायोटेक समूह की कंपनी बायोवेट ने बायोलम्पिवैक्सिन वैक्सीन तैयार किया है. भारत में बनी पहली वैक्सीन बायोलम्पिवैक्सिन को सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल संगठन से लाइसेंस मिल गया है. मान्यता मिलने के बाद अब यह टीका जल्द ही मार्केट में उपलब्ध हो जाएगा.

केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन से लाइसेंस मिलने के बाद पशु चिकित्सा स्वास्थ्य सेवा में आत्मनिर्भर भारत की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम है. इससे पहले भारत विदेशी टीकों पर निर्भर रहता था, लेकिन स्वदेशी टीका बनने के बाद भारत का आयतित टीकों पर से निर्भरता कम होगा.

इस नए स्वदेशी लाइव-एटेन्यूएटेड मार्कर वैक्सीन को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद-राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र (ICAR-NRCE), हिसार के एलएसडी वायरस ने वैक्सीन स्ट्रेन का उपयोग करके विकसित किया है. इस तकनीक का 2022 में बेंगलुरु स्थित बायोवेट सहित कम से कम चार वैक्सीन निर्माताओं को दिया गया था.


वैक्सीन निर्माता बायोवेट ने एक बयान में कहा कि बायोलम्पिवैक्सिन भारत की पहली एलएसडी वैक्सीन है. यह दुनिया की सबसे सुरक्षित और पहली संक्रमित को टीका लगाए गए जानवरों से अलग करने वाली (डीआईवीए) मार्कर वैक्सीन है. वैक्सीन की क्वालिटी, सुरक्षा और असर को कई पैमाने पर परखा गया है. ICAR-NRCE और भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (IVRI) में बड़े पैमाने पर परीक्षण किया है.

बायोवेट ने अपने एक बयान में कहा कि यह वैक्सीन रोग निगरानी और उन्मूलन कार्यक्रमों के लिए पशु चिकित्सा के लिए एक गेम-चेंजर साबित होगा. एक्सपर्ट्स और फील्ड वर्कर अब यह पता लगा सकते हैं कि किसी जानवर को बायोलम्पिवैक्सिन लगाया जा सकता है.

कंपनी ने कहा कि बायोलम्पिवैक्सिन बहुत जल्द ही मार्केट में आएगा. बायोवेट की मल्लूर यूनिट में तैयार होने वाली यह वैक्सीन सालाना 500 मिलियन खुराक का उत्पादन कर सकती है. लम्पी वायरस एक ट्रांसबाउंड्री पशु रोग है जिसने मवेशियों के स्वास्थ्य और डेयरी उद्योग को प्रभावित किया है.

लम्पी स्किन डिजीज गाय और भैंसों में होने वाली एक संक्रामक बीमारी है. यह मच्छरों, मक्खियों, टिक्स (छोटे कीड़े) और संक्रमित जानवरों के संपर्क में आने से फैलती है. इससे मवेशियों के शरीर पर गठ बन जाते हैं और तेज बुखार आते हैं. इस बीमारी की वजह से लाखों मवेशियों की जान जा चुकी है और हजारों मवेशियां आज भी इस बीमारी से जूझ रही हैं.

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