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सुप्रीम कोर्ट का फैसला, हिंदू विवाह अधिनियम के तहत शादी अमान्य होने पर मिल सकता है गुजारा भत्ता

February 13, 2025

नई दिल्‍ली । सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बुधवार को एक फैसला सुनाया, जिसमें कहा कि अगर हिंदू विवाह अधिनियम (HMA) 1955 के तहत किसी विवाह (Marriage) को अमान्य घोषित कर देने के बावजूद दोनों पक्षों में से कोई भी व्यक्ति अंतरिम भरण-पोषण और स्थायी गुजारा भत्ता का दावा कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने बंबई हाईकोर्ट (Bombay High Court) के एक फैसले में अवैध पत्नी जैसे शब्दों के इस्तेमाल पर भी आपत्ति जताई। इसे महिलाओं के खिलाफ भेदभावपूर्ण और ही बहुत अनुचित बताया।

न्यायमूर्ति ए. एस. ओका, आहसानुद्दीन अमानुल्ला और ऑगस्टिन जॉर्ज मसिह की बेंच ने कहा, “यदि किसी विवाह को 1955 अधिनियम की धारा 11 के तहत अमान्य घोषित कर दिया गया है, तो उस विवाह में शामिल दोनों पक्षों में से किसी को भी अधिनियम की धारा 25 के तहत स्थायी गुजारा भत्ता या भरण-पोषण का दावा करने का अधिकार है।”

कोर्ट ने यह भी कहा कि यह हमेशा मामले के तथ्यों और पक्षों के आचरण पर निर्भर करेगा कि स्थायी गुजारा भत्ता दिया जा सकता है या नहीं। धारा 25 के तहत राहत देना हमेशा न्यायिक विवेक पर निर्भर है।


हिंदू विवाह अधिनियम के तहत अंतरिम भरण-पोषण के सवाल पर फैसले में कहा गया, “यहां तक कि यदि कोई अदालत दोनों के विवाह को अमान्य करने या रद्द करने योग्य मानती है, तब भी 1955 अधिनियम के तहत चल रहे मामले के अंतिम निपटारे तक अदालत अंतरिम भरण-पोषण दे सकती है।”

इसमें यह भी कहा गया कि धारा 24 के तहत अंतरिम राहत का निर्णय करते समय अदालत हमेशा उस पार्टी के आचरण को ध्यान में रखेगी, जो राहत की मांग कर रही है। क्योंकि राहत देना हमेशा न्यायिक विवेक पर निर्भर है।

सुप्रीम कोर्ट ने अवैध पत्नी जैसे शब्दों के इस्तेमाल पर आपत्ति जताते हुए कहा, “किसी विवाह को शून्य घोषित किए जाने पर पत्नी को अवैध कहना बहुत अनुचित है। इससे संबंधित महिला की गरिमा पर असर पड़ता है। दुर्भाग्य से बंबई हाईकोर्ट ने ‘अवैध पत्नी’ जैसे शब्दों का प्रयोग किया।”

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