
अहमदाबाद। पूर्व इसरो अध्यक्ष सोमनाथ ने भारत की अंतरिक्ष परियोजनाओं की लागत-कुशलता को उजागर करते हुए कहा कि अमेरिका की तुलना में भारत निसार मिशन पर पांच गुना कम खर्च कर रहा है। निसार (नासा-इसरो सिंथेटिक एपर्चर रडार) नासा और इसरो का संयुक्त मिशन है, जो पूरी पृथ्वी का नक्शा तैयार करेगा और जलवायु परिवर्तन, बर्फ की परतों, समुद्री स्तर, भूजल और प्राकृतिक आपदाओं से जुड़े अहम आंकड़े प्रदान करेगा।
पूर्व इसरो प्रमुख सोमनाथ ने बताया कि भारत में कम लागत में मिशन तैयार करने के पीछे कई कारण हैं। जिसमें अधिक सिमुलेशन (कंप्यूटर मॉडलिंग) और कम हार्डवेयर परीक्षण, जिससे खर्च कम होता है। दूसरा उपकरणों का पुन: उपयोग, जिससे लागत घटती है। तीसरा भारतीय उद्योग जगत का योगदान, जो उच्च स्तरीय तकनीक को किफायती बनाता है। हालांकि, उन्होंने यह भी बताया कि रॉकेट बनाने के लिए जरूरी एल्युमिनियम यूरोप से आता है, इलेक्ट्रॉनिक चिप्स आयात करनी पड़ती हैं, और स्टील भले ही भारत में बनता हो, लेकिन कई आवश्यक सामग्रियां विदेशों से आती हैं।
सोमनाथ ने कहा कि भारत अंतरिक्ष क्षेत्र में आगे है, लेकिन वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में भारत की हिस्सेदारी अभी सिर्फ दो फीसदी है, जिसे 10 फीसदी तक बढ़ाने की जरूरत है। इसके लिए निजी कंपनियों को अंतरिक्ष क्षेत्र में आगे आना होगा। उन्होंने कहा, ‘पहले हमें लगता था कि अंतरिक्ष क्षेत्र को केवल सरकार के नियंत्रण में रखना चाहिए, लेकिन अब यह सोच बदल रही है। निजी कंपनियों को इसमें निवेश करने और बिजनेस के अवसर तलाशने की जरूरत है।’ उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि सरकार को स्पेस एक्सप्लोरेशन (अंतरिक्ष अन्वेषण) और स्पेस स्टेशन निर्माण जैसी परियोजनाओं में अधिक निवेश करना चाहिए, ताकि बाद में यह तकनीक निजी क्षेत्र को सौंपकर व्यवसायिक रूप से सफल बनाई जा सके।
एस. सोमनाथ के अनुसार, अगले 5 सालों में यदि सही रणनीति अपनाई जाए, तो भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में हिस्सेदारी दो फीसदी से बढ़कर 10 फीसदी हो सकती है, जिससे देश को वैश्विक स्तर पर और भी अधिक मजबूती मिलेगी।
©2025 Agnibaan , All Rights Reserved