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‘वनी’ परंपरा : पाकिस्तान में मां-बाप खुद मासूम बच्चियों का बूढ़ों से करा देते हैं ‘निकाह’

April 09, 2025

इस्‍लामाबाद। कुछ रस्में (Rituals) इंसानों के ऊपर इतना दबाव डाल देती हैं कि उन्हें ना चाहकर भी वो कदम उठाना पड़ता है जो उन्हें खुद भी मुनासिब नहीं लगता. हमारे पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान (Pakistan) में भी एक ऐसी परंपरा है जिसके बारे में सुनकर इंसानों की रूह कांप जाती है. इस रस्म के तहत मासूम बच्चियों को दुश्मनों के हवाले कर दिया जाता है. या यूं कहें कि मां-बाप खुद अपनी मासूम बच्चियों को ‘जहन्नुम’ में धकेल देते हैं. इस परंपरा का नाम ‘वनी’ है, जो पाकिस्तान के देहाती इलाकों में आज भी देखने को मिल जाती है.

पाकिस्तान के कुछ कबीलों में आज भी एक ऐसी रस्म है जिसमें कम उम्र की लड़कियों को बतौर ‘हरजाना’ अपने विरोधी कबीले को सौंप दी जाती हैं. या यह भी कह सकते हैं कि मां-बाप खुद अपनी उन बच्चियों को गुलाम बनाकर दूसरे कबीलों के हवाले कर देते हैं जिनके सपनों की कोपलें अभी फूटी भी नहीं होतीं. इन मासूम बच्चियों को दूसरे के कबीले में सिर्फ इसलिए गुलाम बनाकर भेज दिया जाता है क्योंकि वो लोग अपनी पुरानी चली आ रही दुश्मनी भुलाना चाहते हैं.

दुश्मनी के बदले बेटी देते हैं
जी हां, ये कबीले अपनी दुश्मनी को खत्म करन के बदले बेटियों को दूसरे कबीले के हवाले कर देते हैं. ताकि दो दुश्मन खानदानों में सुलह हो सके. अक्सर देखा गया है कि ये रस्म तब अदा की जाती है जब एक खानदान दूसरे खानदान के सदस्य का कत्ल कर देता है, अब इस कत्ल के बाद पैदा होने वाली दुश्मनी को खत्म करने के लिए यह रस्म अदा की जाती है. जुल्म की इंतिहा तो ये है कि इन मासूम बच्चियों का निकाह बुजुर्ग लोगों से कर दिया जाता है.



10 साल की बच्ची से 84 साल के बुजुर्ग का निकाह
कुछ वक्त पहले पाकिस्तान के ‘लाड़काना’ में एक ऐसी घटना सामने आई थी, जहां दो खानदानों के बीच दुश्मनी को खत्म करने के लिए मां-बाप ने खुद अपनी दो बेटियों (एक की उम्र चाल, दूसरी की 10 साल) को दूसरे खानदान के हवाले कर दिया था. जिसके बाद 10 वर्षीय बच्ची का निकाह एक 84 साल के बुजुर्ग से किया गया था. इससे भी बड़ी बात तो यह है कि ये फैसले कोई छुप-छुपाकर नहीं लिए जाते, बल्कि सरे आम ‘जिरगा’ (पंचायत) बुलाकर लिए जाते हैं.

क्या कर रही हैं अदालतें और सरकार?
इस तरह की रस्मों के खिलाफ समय-समय पर कुछ लोगों ने आवाजें उठाई हैं लेकिन अभी तक इनका मुकम्मल खात्मा नहीं हो पाया है. अदालतों की तरफ से सख्त आदेश और सरकार की तरफ से भी कुछ कदम उठाए जाने के बावजूद ये रस्में खत्म होने का नाम नहीं ले रही हैं.

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