
वाशिंगटन। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के साउथ एशिया इंस्टीट्यूट द्वारा आयोजित ‘पाकिस्तान सम्मेलन को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। छात्रों ने इस आयोजन की आलोचना करते हुए कहा कि इससे राज्य प्रायोजित आतंकवाद को वैधता मिल सकती है, खासकर उस समय जब जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हाल ही में एक दर्दनाक आतंकी हमला हुआ, जिसे छात्रों ने धार्मिक आधार पर किया गया नरसंहार बताया।
पाकिस्तान सम्मेलन को लेकर हावर्ड यूनिवर्सिटी की छात्रा सुरभि तोमर ने अपनी नाराजगी जताई। एक न्यूज एजेंसी से बात करते हुए उन्होंने कहा कि पहलगाम में जो हुआ वह एक धर्म-आधारित लक्षित हत्या थी। ऐसे समय में जब हार्वर्ड ऐसे लोगों को बुलाता है, जिन्होंने वैचारिक रूप से ऐसे हमलों को जायज़ ठहराया है, तो यह खतरा होता है कि हमारे कैंपस में आतंक समर्थक विचारों को वैधता मिल जाए।
उन्होंने कहा कि यह आयोजन पहले से तय था और यह घटना संयोगवश उसी समय के आसपास हुई, लेकिन फिर भी इस तरह के वक्ताओं को बुलाना उचित नहीं है। उन्होंने बताया कि छात्रों ने अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो से मांग की है कि ऐसे अधिकारियों को वीजा न दिया जाए जो आतंक से जुड़े विचारों का समर्थन करते हों। इसके साथ ही सुरभि ने आगे कहा कि धार्मिक कारणों से हुए हमले के बाद चुप रहना गलत है। हमने 65 देशों के छात्रों से समर्थन पाया। उन्होंने कहा कि हमने पीड़ितों की गवाही पढ़ी और नैतिक जिम्मेदारी समझते हुए बोलने का फैसला लिया।
इसके अलावा एक अन्य छात्रा रश्मिनी कोपरकर ने भी निराशा जताई। साथ ही कहा कि इस आयोजन में भाग लेने वाले मेहमानों ने पहलगाम हमले की न तो निंदा की और न ही कोई संवेदना दिखाई। उन्होंने कहा कि हम अपेक्षा कर रहे थे कि कार्यक्रम में शामिल अधिकारी संवेदनशीलता दिखाएंगे और हमले की निंदा करेंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कई मेहमान ऐसे देशों से आए थे जो वर्षों से आतंकवाद को बढ़ावा देते रहे हैं।
बढ़ते विवाद के बीच हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के साउथ एशिया इंस्टीट्यूट ने एक आधिकारिक बयान जारी कर आयोजन का बचाव किया। संस्थान ने कहा कि ‘पाकिस्तान सम्मेलन’ छात्रों और उनके फैकल्टी सलाहकार द्वारा स्वतंत्र रूप से आयोजित की गई थी और इसमें किसी दाता से सलाह नहीं ली गई थी। साथ ही बयान में यह भी कहा गया कि हम पहलगाम हमले से प्रभावित भारत के नागरिकों के साथ दुख साझा करते हैं और गहरी संवेदना प्रकट करते हैं।
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