
मालवा की परंपरा, पहनावा और खानपान भी दिखना चाहिए
इंदौर। प्रदेश के नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय (Kailash Vijayvargiya) ने कहा है कि लालबाग (Lalbaug) के मैदान में आयोजित किए गए मालवा उत्सव ( Malwa festival) में उत्सव तो बहुत है, लेकिन मालवा नहीं है। इस उत्सव में अगले वर्ष से मालवा की परंपरा, पहनावा और खानपान भी दिखना चाहिए।
कल रात को विजयवर्गीय मालवा उत्सव में भाग लेने के लिए पहुंचे थे। वहां उन्होंने कार्यक्रम के आयोजक सांसद शंकर लालवानी के साथ पूरे आयोजन को देखा। इसके बाद में आयोजन के सांस्कृतिक कार्यक्रम के मंच से उपस्थितजनों को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि पहले जब हम छोटे थे तो अपने पिताजी के साथ क्लाथ मार्केट और दूसरे मार्केट में जाते थे। वहां पर व्यापारी मालवी वेशभूषा पहने हुए होते थे। उनके सिर पर मालवी पगड़ी लगी हुई होती थी। वे शेरवानी जैसा वस्त्र धारण किए हुए होते थे। सारे व्यापारी इतने सजे-धजे होते थे कि नजर आता था। अब कहीं भी चले जाओ वह मालवा की वेशभूषा नजर नहीं आती है। मालवी पगड़ी को तो लोग भूल ही गए हैं और उस पगड़ी को बांधने वाले भी नजर नहीं आते हैं। उन्होंने कहा कि इस मालवा उत्सव में उत्सव तो बहुत हो रहा है, लेकिन मालवा कहीं भी नहीं है। मालवा का जो खानपान है उसके भी स्टाल नहीं लगे हुए हैं। मालवा की दाल-बाटी, दूध-जलेबी, दूध-रबड़ी जैसे स्टाल लगाए जाना चाहिए। यहां पर एक तरफ केवल मालवा के व्यंजन के स्टाल रखना चाहिए। हमारे मालवा की भाषा को भी लोग भूल गए हैं। उसे लोगों को याद दिलाने के लिए भी मालवा उत्सव में कोशिश की जाना चाहिए। मालवी गीतों की प्रतियोगिता का आयोजन होना चाहिए। उन्होंने कहा कि हम अपनी संस्कृति से दूर होते जा रहे हैं। जब हमने गुड़ी पड़वा पर नववर्ष का कार्यक्रम आयोजित करना शुरू किया तो बहुत से लोगों ने आकर पूछा कि यह गुड़ी पड़वा क्या है, जो इतना बड़ा कार्यक्रम कर रहे हो। एक समय था जब पूरे देश में काल की गणना उज्जैन में होती थी। आज भी नई पीढ़ी के लोग हमारी संस्कृति के जो महीने हैं सावन, भादव आदि उसके बारे में नहीं जानते हैं।