
नई दिल्ली । भारत सरकार(Government of India) ने सिंधु जल संधि(Indus Water Treaty) को स्थगित करने के बाद जम्मू-कश्मीर (Jammu and Kashmir)में चिनाब नदी(Chenab River) पर स्थित सलाल और बगलिहार बांधों की मासिक फ्लशिंग शुरू करने की योजना बनाई है। यह निर्णय पहलगाम आतंकी हमले के बाद लिया गया, जिसमें 26 पर्यटकों की मौत हो गई थी। इस कदम को भारत की ओर से पाकिस्तान के खिलाफ एक रणनीतिक जवाब के रूप में देखा जा रहा है। केंद्रीय जल आयोग ने सिफारिश की है कि चिनाब नदी पर बने सलाल (690 मेगावाट) और बगलिहार (900 मेगावाट) बांधों की फ्लशिंग अब हर महीने नियमित रूप से की जाए।
क्या है फ्लशिंग और क्यों है जरूरी?
फ्लशिंग का मतलब है बांध के जलाशयों में जमा रेत, गाद और मिट्टी को तेज जलधारा के माध्यम से बाहर निकालना। यह गाद जलाशयों की क्षमता को कम करती है और टरबाइनों की कार्यक्षमता घटाती है, जिससे बिजली उत्पादन प्रभावित होता है। नियमित फ्लशिंग से जलाशयों की संग्रहण क्षमता बहाल होती है और बिजली उत्पादन में स्थिरता आती है।
पहली बार निकाली गई 7.5 मिलियन क्यूबिक मीटर गाद
एक रिपोर्ट के अनुसार, मई की शुरुआत में शुरू की गई इस फ्लशिंग प्रक्रिया के दौरान सलाल और बगलीहार जलाशयों से 7.5 मिलियन क्यूबिक मीटर से अधिक गाद निकाली गई। यह पहली बार है जब सलाल और बगलीहार में इस प्रकार की सफाई की गई हो। बता दें कि जहां सलाल बांध का निर्माण वर्ष 1987 में हुआ था, तो वहीं बगलीहार का निर्माण 2008-09 में हुआ था।
पाकिस्तान की आपत्ति और भारत का रुख
सिंधु जल संधि के तहत पाकिस्तान अतीत में फ्लशिंग गतिविधियों पर बार-बार आपत्ति जताता रहा है। पाकिस्तान का तर्क है कि फ्लशिंग के दौरान पानी छोड़े जाने से नीचे के इलाकों में बहाव बढ़ सकता है, जबकि जलाशय को फिर से भरने की प्रक्रिया से बाद में छोड़े जाने वाले पानी की मात्रा कम हो सकती है। लेकिन अब, भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि संधि के स्थगन के बाद न तो पाकिस्तान को कोई जल संबंधित सूचना साझा की जाएगी और न ही फ्लशिंग से पहले उसे सूचित किया जाएगा।
नई परियोजनाएं होंगी तेजी से आगे बढ़ाई जाएंगी
सरकारी सूत्रों के अनुसार, भारत अब उन जलविद्युत परियोजनाओं को तेजी से पूरा करेगा, जिन्हें पाकिस्तान की आपत्तियों के चलते रोका गया था। इनमें- पकल डुल (1000 मेगावाट), किरु (624 मेगावाट), क्वार (540 मेगावाट) और रैटल (850 मेगावाट) प्रमुख हैं। ये सभी परियोजनाएं चिनाब नदी पर स्थित हैं।
IWT की वर्तमान स्थिति
सिंधु जल संधि भारत और पाकिस्तान के बीच 19 सितंबर 1960 को 9 वर्षों की बातचीत के बाद हुई थी। इसके तहत भारत को सतलुज, ब्यास और रावी नदियों (पूर्वी नदियों) का संपूर्ण उपयोग का अधिकार मिला था, जबकि पाकिस्तान को सिंधु, झेलम और चिनाब (पश्चिमी नदियों) का जल मिलता रहा है।
अब गिड़गिड़ा रहा पाकिस्तान
भारत ने 24 अप्रैल को पाकिस्तान को एक पत्र भेजकर सूचित किया कि जब तक पाकिस्तान “आतंकवाद को समर्थन देना पूरी तरह और विश्वसनीय रूप से नहीं छोड़ता”, तब तक यह संधि स्थगित रहेगी। पाकिस्तान ने हाल ही में इस पर जवाब भेजते हुए भारत की चिंताओं पर चर्चा की इच्छा जाहिर की है और मई में बैठक का प्रस्ताव दिया है। यह उल्लेखनीय है कि इससे पहले जनवरी 2023 और सितंबर 2024 में भारत ने संधि की समीक्षा और संशोधन की मांग की थी, लेकिन पाकिस्तान ने स्पष्ट सहमति नहीं दी थी। अब जब भारत ने संधि को तत्काल प्रभाव से स्थगित किया है, तो पाकिस्तान ने पहली बार चर्चा की मंशा दिखाई है।
सलाल और बगलिहार जैसे रन-ऑफ-द-रिवर बांधों में पानी को लंबे समय तक रोकने की क्षमता सीमित है। हालांकि, मासिक फ्लशिंग और नई परियोजनाओं से भारत को पानी के समय और मात्रा को नियंत्रित करने की क्षमता मिलेगी, जो पाकिस्तान की कृषि और जलविद्युत पर निर्भरता को प्रभावित कर सकता है। हालांकि भारत को पानी को पूरी तरह रोकने के लिए और अधिक बांधों और जलाशयों की आवश्यकता होगी।
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