img-fluid

‘हम भी इंसान हैं हम से भी…,’ सुप्रीम कोर्ट के जज ने बताया कैसे फैसला सुनाने में हो गई थी गलती

May 20, 2025

नई दिल्‍ली । सुप्रीम कोर्ट(Supreme Court) के जज जस्टिस अभय एस ओका(Judge Justice Abhay S Oka) ने कहा कि अदालत में फैसला(Decision in court) करते समय भी गलती हो सकती है। उन्होंने कहा कि जज भी इंसान ही होते हैं और उनसे गलती हो जाना स्वाभाविक है। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि बॉम्बे हाई कोर्ट के जज रहते हुए उनसे भी गलती हुई थी। साल 2016 में घरेलू हिंसा के एक मामले में उनसे सही बात समझने में गलती हो गई। जस्टिस ओका ने कहा कि जजों के लिए लगातार सीखने का सिलसिला चलता रहता है।

जस्टिस ओका ने कहा कि यह मानते हुए कि सीआरपीसी की धारा 482 के तहत घरेलू हिंसा कानून की धारा 12 (1) के तहत दी गई याचिका को भी खारिज किया जा सकता है। हालांकि यह कानून कहता है कि कोई भी महिला भुगतान, मुआवजा या फिर अन्य राहत के लिए मजिस्ट्रेट का रुख कर सकती है। जस्टिस ओका और जस्टिस उज्जल भुयान की बेच ने इस मामले में फैसला सुनाया था। वहीं जस्टिस ओका का विचार एकदम अलग था।


सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हाई कोर्ट को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि घरेलू हिंसा के खिलाफ कानून महिलाओं को न्याय देने के लिए बनाया गया है। ऐसे में धारा 482 के तहत अगर अर्जी खारिज करने की बात आती है तो हाई कोर्ट को गहनता से विचार करना चाहिए। जब तक यह नहीं स्पष्ट होता है कि केवल कानून का गलत इस्तेमाल किया जा रहा है या फिर केस पूरी तरह से गलत है, इस तरह की याचिका को खारिज नहीं करना चाहिए।

बेंच की तरफ से फैसला लिखने वाले जस्टिस ओका ने कहा, इस फैसले के साथ यह बताना जरूरी है कि मैं 27 अक्टूबर 2016 को बॉम्बे हाई कोर्ट के एक फैसले में भी शामिल था जिसमें कहा गया था कि घरेलू हिंसा के कानून के सेक्शन 12 (1) के मामले में सीआरपीसी की धारा 482 के तहत मुकदमा खारिज करने का प्रावधान नहीं है। उन्होंने कहा, मेरी इस बात पर हाई कोर्ट की पूरी बेंच सहमत नहीं थी। ऐसे में हमारा कर्तव्य था कि हम अपनी गलती को सुधारें।

जस्टिस ओका ने कहा कि उन्हें अपना फैसला सुधारना पड़ गया। उन्होंने कहा कि यह कहना कि घरेलू हिंसा के मामले में धारा 482 के तहत मुकदमा खारिज करने का प्रावधान ही नहीं है, एक तरह से गलत था। ऐसे में यह लगता था कि मामला केवल सिविल नेचर का ही होगा। हालांकि परिस्थिति के अनुसार धारा 482 के तहत फैसला किया जा सकता था। यह विचार सुप्रीम कोर्ट की बात से भी अलग था। सुप्रीम कोर्ट ने यह कहा था कि यह कानून महिलाओं को न्याय देने के लिए हैं। ऐसे में हाई कोर्ट का फैसला पूरी तरह से सही साबित नहीं होता था। इसमें सुधार किया गया।

जस्टिस ओका ने कहा कि पिछले तीन वर्षों में हजारों न्यायिक निर्णयों का देश की कई भाषाओं में अनुवाद किया गया है। टीएमसी लॉ कॉलेज की ओर से जारी एक विज्ञप्ति में उनके हवाले से कहा गया, “पिछले 30 वर्षों से महाराष्ट्र में जिला अदालत तक में मराठी में काम किया जा रहा है।” जस्टिस ओका ने कहा कि नयी प्रौद्योगिकी ने कानूनी अध्ययन में क्रांति ला दी है।

उन्होंने कहा, “आज उपलब्ध सुविधाओं के साथ, कानून का अध्ययन करना, शोध करना, इसका अर्थ समझना और कम समय में कई निर्णयों को समझना बहुत आसान हो गया है। छात्रों को इनका प्रभावी ढंग से उपयोग करना चाहिए।”

Share:

  • भारत-पाकिस्‍तान तनाव के बाद अटारी-वाघा बॉर्डर पर फिर शुरू होगी रिट्रीट सेरेमनी, जानें

    Tue May 20 , 2025
    नई दिल्‍ली । भारत(India) और पाकिस्तान(Pakistan) के बीच हुए सीजफायर(ceasefire) के बाद अब पंजाब के अमृतसर(Amritsar) स्थित अटारी-वाघा बॉर्डर, फिरोजपुर के हुसैनीवाला और सादकी बॉर्डर पर बंद रिट्रीट सेरेमनी कल से दोबारा शुरू होगी। जानकारी के मुताबिक सीजफायर के बाद बॉर्डर पर शांति को देखते हुए रिट्रीट सेरेमनी को दोबारा शुरू करने पर सहमति बनी […]
    सम्बंधित ख़बरें
    लेटेस्ट
    खरी-खरी
    का राशिफल
    जीवनशैली
    मनोरंजन
    अभी-अभी
  • Archives

  • ©2025 Agnibaan , All Rights Reserved