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ईरान-इजरायल जंग बढ़ी तो भारत को भी लगेगा झटका, हो सकता है 1.21 लाख करोड़ का नुकसान!

June 20, 2025

नई दिल्‍ली. ईरान-इजरायल (Iran-Israel) के बीच जंग (War) का आठवां दिन है. दोनों देशों के बीच जंग अब घातक मोड़ पर पहुंच चुका है. इजरायल ने ईरान के हमले के बाद कल रातभर मिसाइलें दागीं. बढ़ते जंग को देखते हुए होर्मुज जलडमरूमध्‍य (Strait of Hormuz) में तनाव और ज्‍यादा बढ़ गया है. इस बीच, क्रेडिट रेटिंग एजेंसी ICRA ने चेतावनी दी है कि इस रुकावट से तेल और गैसी की आपूर्ति में किसी भी तरह की निरंतर बाधा भारत की अर्थव्‍यवस्‍था पर भारी दबाव डाल सकती है.

रेटिंग एजेंसी का कहना है कि इस तनाव के बढ़ने से तेल आयात में वृद्धि होगी, चालू खाता घाटा (CAD) बढ़ेगा और निजी क्षेत्र के निवेश में देरी होगी. होर्मुज जलडमरूमध्य (Strait of Hormuz) एक रणनीतिक व्‍यापार मार्ग है, जिसके माध्‍यम से ग्‍लोबल ऑयल और LNG का करीब 20 फीसदी प्रवाह होता है. ICRA के मुताबिक, भारत के कच्‍चे तेल के आयात का करीब 45 से 50 फीसदी और इसके प्राकृतिक गैस आयात का 60 फीसदी इस गलियारे से होकर गुजरता है.


जंग शुरू होते ही तेल की कीमतें बढ़ीं
रिपोर्ट में कहा गया है कि ईराक, सऊदी अरब, कुवैत और UAE से कच्चे तेल का आयात इसी रास्‍ते से होकर गुजरता है और भारत लगभग 45-50% कच्‍चा तेल इन्‍हीं देशों से आयात करता है. 13 जून को इजरायल के ईरानी सैन्‍य और एनर्जी स्‍थलों पर हमले के बाद संघर्ष शुरू हुआ. इसके बाद से ही तेल की कीमतें तेजी से बढ़ रही हैं और 64 से 65 डॉलर प्रति बैरल से बढ़कर 74 से 75 डॉलर प्रति बैरल हो गईं, जो आपूर्ति में व्‍यवधान की आशंका को दर्शाता है.

भारत को हो सकता है तगड़ा नुकसान
आईसीआरए का अनुमान है कि औसत कच्चे तेल की कीमत में 10 डॉलर प्रति बैरल की बढ़ोतरी से भारत के शुद्ध तेल आयात बिल में एक वित्तीय वर्ष में 13-14 बिलियन डॉलर (करीब 1.21 लाख करोड़ रुपये) की वृद्धि हो सकती है और सीएडी GDP के 0.3% तक बढ़ सकता है. एजेंसी ने कहा, ‘संघर्ष में निरंतर वृद्धि से कच्चे तेल की कीमतों के हमारे अनुमानों और परिणामस्वरूप शुद्ध तेल आयात और चालू खाता घाटे के लिए जोखिम बढ़ सकता है.’

कच्‍चे तेल के दाम में हो सकता है और इजाफा
जबकि ICRA को उम्मीद है कि वित्त वर्ष 2026 में कच्चे तेल की कीमतें औसतन 70-80 डॉलर प्रति बैरल रहेंगी, यह चेतावनी देता है कि क्षेत्र में लंबे समय तक संघर्ष कीमतों को और बढ़ा सकता है. रिपोर्ट में कहा गया है, ‘अगर कीमतें मौजूदा स्तरों पर बनी रहती हैं, तो इससे भारत के सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि (GDP Growth) के पूर्वानुमान में कोई महत्वपूर्ण बदलाव नहीं होगा, जो वर्तमान में वित्त वर्ष के लिए 6.2% पर आंका गया है. हालांकि मौजूदा स्तरों से निरंतर वृद्धि भारतीय उद्योग जगत पर असर डालेगी.’

अपस्ट्रीम तेल कंपनियों को कच्चे तेल की ऊंची कीमतों से लाभ होगा, लेकिन डाउनस्ट्रीम क्षेत्र के लिए तस्वीर अधिक जटिल है. आईसीआरए ने कहा कि कच्चे तेल और गैस की कीमतों में वृद्धि अपस्ट्रीम कंपनियों के लाभ के लिए सकारात्मक होगी, भले ही डाउनस्ट्रीम कंपनियों के मार्केटिंग मार्जिन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़े. उन्होंने कहा कि ऊंची कीमतों के कारण एलपीजी अंडर-रिकवरी में वृद्धि की संभावना है.

तेल का 80 फीसदी हिस्‍सा एशिया में होता है खपत
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जलडमरूमध्य को पार करने के लिए सीमित विकल्प हैं. सऊदी अरब और यूएई के पास लगभग 2.5-3.0 एमबीडी की अधिशेष क्षमता वाली पाइपलाइनें हैं, जिससे संघर्ष बढ़ने की स्थिति में महत्वपूर्ण आपूर्ति जोखिम में पड़ सकती है. होर्मुज जलडमरूमध्य से गुजरने वाले 20 मिलियन बैरल प्रतिदिन (एमबीडी) तेल का 80% से अधिक हिस्सा एशिया में खपत होता है, जिसमें भारत, चीन, जापान और दक्षिण कोरिया का हिस्सा लगभग 65% है.

ईरान कितना करता है तेल का उत्‍पादन?
हालांकि ईरानी तेल ढांचे को हुए नुकसान की पूरी सीमा स्पष्ट नहीं है, लेकिन रिफाइनरियों, भंडारण केंद्रों और ऊर्जा परिसंपत्तियों पर हमले की खबरें आई हैं. ईरान लगभग 3.3 एमबीडी का उत्पादन करता है, जिसमें से 1.8-2.0 एमबीडी निर्यात किया जाता है, जिसका अर्थ है कि कोई भी निरंतर रुकावट वैश्विक आपूर्ति असंतुलन को और गहरा कर सकता है.

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