
इंदौर। अग्रिबाण (Agnibaan) ने फर्जी रजिस्ट्री (Fake registry) कांड का भंडाफोड़ किया। उसके बाद महानिरीक्षक कार्यालय भोपाल (Bhopal) से लेकर इंदौर (Indore) के पंजीयन विभाग में खलबली मच गई। इससे जुड़े दस्तावेजों की अब फोरेंसिक जांच की सिफारिश जांच समिति ने भी की है। कलेक्टर द्वारा गठित की गई 5 जिला पंजीयक अफसरों की जांच समिति ने जहां रिकॉर्ड रूम में रखी पुरानी रजिस्ट्रियों के दस्तावेजों में छेड़छाड़ के प्रमाण पाए, तो अधिकांश अंगूष्ठ पंजी कटी-फटी या उनके पृष्ठ गायब मिले। वहीं रिकॉर्ड रूम प्रभारी मर्दनसिंह रावत को अभी महानिरीक्षक पंजीयन ने निलंबित किया। उसके 9 साल के कार्यकाल के दौरान ही सबसे अधिक गड़बडिय़ां पाई गईं। कई जमीनों के साथ-साथ भूखंडों की भी फर्जी रजिस्ट्रियां उजागर हुई हैं, जिसके मामले में विभिन्न थानों में एफआईआर भी दर्ज कराई गई। इसमें नगर निगम के कर्मचारियों की भी मिलीभगत सामने आई, जिन्होंने इन फर्जी रजिस्ट्रियों के आधार पर न सिर्फ नामांतरण किए, बल्कि सम्पत्ति कर के नए खाते भी खोल डाले। अब रिकॉर्ड रूम में उपलब्ध अंगूष्ठ पंजियों को स्कैन कराकर सॉफ्ट कॉपी में रखने की अनुशंसा भी की गई है।
कलेक्टर आशीष सिंह ने फर्जी रजिस्ट्रियों की शिकायत मिलने पर विभाग के ही 5 अफसरों की समिति संदेहास्पद दस्तावेजों की जांच के लिए गठित की, जिसमें इंदौर-4 के जिला पंजीयक चक्रपाणी मिश्रा, इंदौर-1 के वरिष्ठ उपपंजीयक प्रदीप निगम, इंदौर-2 की चंचल जैन, इंदौर-3 के वरिष्ठ उपपंजीयक प्रशांत पाराशर और देपालपुर की वरिष्ठ उपपंजीयक नीता तंवर को शामिल किया गया। समिति ने मुंबई निवासी हस्तीमल पिता गुलाबचंद चोकसी द्वारा की गई शिकायत की भी जांच-पड़ताल की, जिसमें आवेदक ने अपने स्वामित्व और आधिपत्य के इंदौर स्थित भूखंड क्रमांक 68, शिवविलास पैलेस को कूटरचित और फर्जी दस्तावेजों के आधार पर किसी जीतन पिता नेवाल पांडे को बिक जाने की शिकायत की और उसके नाम पर नगर निगम ने नामांतरण खाता भी खोल डाला, जबकि हस्तीमल के मुताबिक उन्होंने अपना भूखंड किसी को बेचा ही नहीं। कूटरचित दस्तावेज के जरिए भूखंड की अवैध रजिस्ट्री बनाने के मामले में संबंंधित दोषियों के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज करवाई है। मजे की बात यह है कि जो फर्जी वसीयतनामा लगाया गया उसमें भी मृत्यु के तीन साल बाद वसीयतनामा बनना पाया गया। शिकायतकर्ता के मुताबिक उनके पिता गुलाबचंद का स्वर्गवास 08.03.1974 को हो गया था और वसीयत 20.05.1976 की पाई गई। उन्होंने आवेदन के साथ मृत्यु प्रमाण-पत्र की छायाप्रति भी संलग्न की। इसी तरह इस भूखंड के अलावा नैनोद, चौहानखेड़ी, बिहाडिय़ा, गोकन्या, पीपल्याहाना, मूसाखेड़ी, पालाखेड़ी, बुड़ानिया, छोटा बांगड़दा, बिचौली हप्सी सहित खजराना की जमीनों की भी कई फर्जी रजिस्ट्रियां तैयार कर ली गईं, जिनमें अधिकांश दस्तावेजों में जहां लगाई गई सीलों में अंतर पाया गया, वहीं अंगूष्ठ पंजी भी फटी मिली। जब कुछ लोगों ने नकल आवेदन लगाए तो संदिग्ध दस्तावेज प्राप्त होने पर उसकी शिकायत की गई। कई रजिस्ट्रियों पर क्रेता के नाम पर व्हाइटनर लगाकर नए क्रेता के नाम हाथ से लिख दिए गए। इसी तरह कई दस्तावेजों की बाइंडिंग संदेहास्पद और टूटी हुई पाई गई। यह भी उल्लेखनीय है कि पंजीयन विभाग में इस तरह की गड़बडिय़ों की जब जांच-पड़ताल शुरू हुई और वरिष्ठ जिला पंजीयक दीपककुमार शर्मा ने इस फर्जीवाड़े को न सिर्फ सख्ती से रोका, बल्कि इससे संबंधित दस्तावेजों को भी शासन-प्रशासन तक भिजवाया, ताकि बिना दबाव-प्रभाव के जांच हो सके। चूंकि इस पूरे मामले में फर्जी रजिस्ट्रियों को करने वाला ताकतवर रैकेट शामिल है, जिसने दबाव-प्रभाव बनाते हुए पिछले दिनों वरिष्ठ जिला पंजीयक शर्मा का इंदौर से देवास तबादला भी करवा दिया। सूत्रों का कहना है कि इस पूरे मामले में विभाग के ही कुछ अफसरों की चूंकि मिलीभगत रही और वे नहीं चाहते कि जांच की आंच उन तक पहुंचे, जिसके चलते उक्त तबादला करवाया। इसमें भी बड़े भारी लेन-देन की चर्चा है। हालांकि अब महानिरीक्षक पंजीयन से लेकर शासन-प्रशासन के समक्ष यह बात भी स्पष्ट हो गई कि उक्त तबादला फर्जी रजिस्ट्रियों की जांच रोकने की नीयत से ही करवाया गया। यहां तक कि पिछले दिनों इंदौर आए मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को भी एक जनप्रतिनिधि ने इसकी जानकारी दी और कहा कि योग्य अफसर का गलत तबादला हो गया है। अब मुख्यमंत्री कल भी इंदौर में हैं और उनकी जानकारी में भी फर्जी रजिस्ट्रियों का यह मामला लाया जाएगा।
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