नई दिल्ली। भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) भूषण रामकृष्ण गवई ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा SC/ST के भीतर क्रीमी लेयर सिद्धांत (creamy layer theory) को लागू करने की मान्यता देना बतौर न्यायाधीश उनके करियर के सबसे महत्वपूर्ण क्षणों में से एक रहा है। उन्होंने इसे सामाजिक न्याय को परिष्कृत करने की दिशा में एक निर्णायक कदम बताया। उन्होंने कहा, “उच्च पद पर बैठे SC/ST जाति के अधिकारियों के बच्चों को उन्हीं लाभों का पात्र मानना आरक्षण की मूल भावना को कमजोर करता है। वह इसी का लाभ लेकर इस पद पर पहुंचे हैं।” CJI गवई ने टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए एक इंटरव्यू में यह बातें कही हैं।
यह टिप्पणी उस जनहित याचिका (PIL) पर सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के बाद आई है जिसमें SC/ST समुदाय के भीतर उप-वर्गीकरण (sub-categorisation) को मंजूरी दी गई है ताकि आरक्षण का लाभ वंचितों तक सही रूप में पहुंच सके।
14 मई को 52वें सीजेआई नियुक्त किए गए गवई ने न्यायिक अतिक्रमण के खिलाफ भी चेतावनी दी। उन्होंने कहा, “न्यायिक सक्रियता बनी रहेगी, लेकिन इसे न्यायिक दुस्साहस या न्यायिक आतंकवाद नहीं बनना चाहिए। संसद कानून बनाती है, कार्यपालिका उन्हें लागू करती है और न्यायपालिका संवैधानिक अनुपालन सुनिश्चित करती है। अतिक्रमण इस संतुलन को बिगाड़ता है। संविधान केवल एक कानूनी दस्तावेज नहीं है, यह सामाजिक परिवर्तन का एक साधन है।”
दूसरे दलित और पहले बौद्ध CJI
CJI गवई ने रिटायरमें के बाद किसी भी सरकारी पद को अस्वीकार करने की बात स्पष्ट रूप से कही है। उन्होंने कहा, “यह मेरे व्यक्तिगत सिद्धांत की बात है।” उनका मुख्य ध्यान सुप्रीम कोर्ट में लंबित 81,000 मामलों को कम करने और ग्रामीण न्यायालयों के बुनियादी ढांचे को बेहतर बनाने पर है। आपको बता दें कि वह दूसरे दलित और पहले बौद्ध मु्ख्य न्यायाधीश हैं।
उन्होंने लगभग 300 निर्णय लिखे हैं, जिनमें अनुच्छेद 370, चुनावी बॉन्ड और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर ऐतिहासिक फैसले शामिल हैं। गवई पांच न्यायाधीशों की पीठ का हिस्सा थे, जिसने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का समर्थन किया। इसे अंबेडकर के “एक राष्ट्र, एक संविधान” के दृष्टिकोण के अनुरूप बताया। गवई ने चुनावी बॉन्ड योजना को भी रद्द करने में मदद की, इसे राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता के साथ असंगत बताया।
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