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मतदाता पुनरीक्षण …तो आधे से ज्यादा बिहारी खो देंगे मताधिकार? जानिए विपक्षी दलों का आरोप

July 09, 2025

पटना। बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Elections) से पहले निर्वाचन आयोग द्वारा कराए जा रहे गहन मतदाता पुनरीक्षण (voter vetting) से बिहार में सियासी पारा चढ़ा हुआ है। इसके विरोध में इंडिया गठबंधन (India Alliance) ने बुधवार (9 जुलाई) को चक्का जाम का आह्वान किया है। इस चक्का जाम आंदोलन में कांग्रेस नेता राहुल गांधी समेत विपक्ष के सभी वरिष्ठ नेता शामिल होंगे। विपक्षी कांग्रेस का आरोप है कि सत्तारूढ़ भाजपा सरकार के निर्देश पर चुनाव आयोग बिहार में वोटबंदी करवा रहा है। विपक्षी दलों ने इसे बड़ी धांधली करार दिया है और कहा है कि इसकी वजह से बड़ी संख्या में लोगों के नाम मतदाता सूची से हटाए जाने की आशंका है।

चुनाव आयोग के इस कदम के विरोध की आवाज सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंची है। कई लोगों और राजनीतिक दलों समेत अन्य संगठनों ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है और इसे असंवैधानिक काम बताया है। कोर्ट से इस पर तत्काल रोक लगाने की मांग की गई है। सुप्रीम कोर्ट इन याचिकाओं पर 10 जुलाई को सुनवाई करेगा।



प्रक्रिया ही अवैध और अव्यावहारिक: ADR
इस बीच, चुनाव निगरानी संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) के सह-संस्थापक और गहम मतदाता पुनरीक्षण के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करने वालों में से एक जगदीप छोकर का कहना है कि यह प्रक्रिया ‘अवैध और अव्यावहारिक’ है। छोकर ने हिन्दुस्तान टाइम्स से बातचीत में कहा कि अगर इस कदम को अभी नहीं रोका गया तो बिहार के आधे से अधिक मतदाता मताधिकार खो देंगे। उन्होंने बताया कि चूंकि बिहार के 30 से 40 फीसदी लोग दूसरे राज्यों में काम धंधे की तलाश में या अन्य वजहों से चले गए हैं, इसलिए, इतने कम समय में उनलोगों द्वारा पुनरीक्षण कार्य में शामिल हो पाना संभव नहीं है।

चुनाव आयोग के तर्क पर भी सवाल
उन्होंने आयोग के उस तर्क पर भी सवाल उठाया है, जिसमें आयोग की तरफ से कहा गया है कि बिहार से बाहर रह रहे प्रवासी बिहारी चुनाव आयोग की बेवसाइट से फॉर्म डाउनलोड कर भर सकते हैं और उसे अपलोड कर सकते हैं। छोकर ने इसे अव्यवहारिक करार दिया है और कहा है कि पंजाब के खेतों और मुंबई के निर्माणस्थलों परकाम करने वाले मजदूरों के लिए यह दुरूह कार्य होगा।

छोकर ने कहा, “चुनाव आयोग ने 24 जून, 2025 को जारी अपनी अधिसूचना में कहा है कि 1 जनवरी, 2003 से पहले मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने वाले लोगों के लिए नागरिकता का अनुमान है। इसका मतलब है कि 1 जनवरी, 2003 के बाद मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने वाले लोगों के लिए नागरिकता का अनुमान नहीं है। इसका यह भी मतलब है कि 1 जनवरी, 2003 से 23 जून, 2025 तक मतदाता सूची में नाम दर्ज कराने वाले लोगों को प्रभावी रूप से मतदाता सूची से हटाया जा चुका है।”

मतदाता सूची से नाम हटाने की तय प्रक्रिया है
बताते हैं कि मतदाता सूची से नाम हटाने के लिए एक निर्धारित कानून हैं। उन्होंने कहा कि निर्वाचक पंजीकरण नियम, 1960 और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के अनुसार अगर चुनाव आयोग मतदाताओं के नाम हटाना चाहता है, तो उसे उस व्यक्ति या व्यक्तियों को नोटिस भेजना होगा। चुनाव आयोग को यह पता लगाना होता है कि उसका नाम क्यों नहीं हटाया जाना चाहिए, इसलिए व्यक्तिगत सुनवाई का प्रावधान भी है।

मतदाता पुनरीक्षण कार्य समस्याग्रस्त
छोकर कहते हैं कि 1 जनवरी, 2003 के बाद जिन लोगों के नाम मतदाता सूची में जोड़े गए थे, उन्हें उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना हटा दिया गया है। यही कारण है कि मतदाता पुनरीक्षण कार्य समस्याग्रस्त और अवैध है। छोकर ने कहा कि चुनाव आयोग को मतदाता सूचियों का सारांश या गहन संशोधन करने का अधिकार है, लेकिन उसके पीछे उचित कारण होने चाहिए। बता दें कि चुनाव आयोग ने तीव्र शहरीकरण, लगातार प्रवास, युवा नागरिकों का मतदान के लिए पात्र होना, मौतों की सूचना न देना और विदेशी अवैध अप्रवासियों के नाम शामिल करना जैसे कारणों को इस पुनरीक्षण अभ्यास का कारण बताया है। छोकर ने कहा कि ये कारण 20-25 साल पुराने हैं। अभी जो कारण बताए गए हैं, वो उचित नहीं हैं।

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