
नई दिल्ली: 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगा मामले (Delhi Riots Case) में प्रमुख आरोपियों में शामिल छात्र नेता उमर खालिद (Umar Khalid) और शरजील इमाम (Sharjeel Imam) की जमानत याचिका (Bail Plea) पर दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने मंगलवार को फैसला सुरक्षित रख लिया है. ये मामला सिर्फ एक दंगे का नहीं बल्कि देश की सुरक्षा और छवि से जुड़ा गंभीर आरोप बन चुका है. सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (Tushar Mehta) ने कोर्ट में दलील दी कि यह दंगे ‘आकस्मिक नहीं बल्कि सुनियोजित’ थे और इनका मकसद भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को खराब करना था.
तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि उमर और शरजील ने जानबूझकर ऐसी तारीख चुनी जब भारत पर वैश्विक नजरें थीं और नागरिकता संशोधन कानून को लेकर माहौल संवेदनशील था. उन्होंने कहा कि यह साजिश थी जिसमें दंगों को एक खास रणनीति के तहत अंजाम दिया गया ताकि दुनिया के सामने भारत को अस्थिर असहनशील और विभाजित दिखाया जा सके. उन्होंने कहा, “अगर कोई राष्ट्रविरोधी स्तर पर इस तरह की हरकत करता है तो उसे जमानत का कोई अधिकार नहीं है.”
एसजी मेहता ने दावा किया कि दिल्ली पुलिस ने अब तक इस मामले में सबसे सटीक और वैज्ञानिक जांच की है. धारा 164 के तहत 58 गवाहों के बयान दर्ज किए गए हैं. इससे केस को मजबूत आधार मिला है. उन्होंने कोर्ट से अपील की कि ऐसे संगीन मामले में ‘सामान्य जमानत’ की दृष्टि से विचार न किया जाए.
उमर खालिद और शरजील इमाम की तरफ से वकीलों ने तर्क दिया कि दोनों लंबे समय से जेल में बंद हैं और केस में उन्हें राजनीतिक रूप से निशाना बनाया गया है. उन्होंने जमानत की मांग करते हुए कहा कि उनके खिलाफ कोई सीधा हिंसक साक्ष्य नहीं है. हालांकि सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है.
अब इस पर अदालत का निर्णय आने वाले दिनों में सुनाया जाएगा जो यह तय करेगा कि क्या दोनों को जेल से राहत मिलेगी या देशद्रोह और UAPA जैसी गंभीर धाराओं के चलते हिरासत बरकरार रखी जाएगी. यह फैसला अभिव्यक्ति की आजादी और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच संतुलन की दिशा में एक महत्वपूर्ण संकेत बन सकता है.
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