
नई दिल्ली । अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (US President Donald Trump) द्वारा भारत (India) पर लगाए गए 50% के भारी शुल्क देश के निर्यात (Export) को काफी नुकसान पहुंचाएंगे। जानकारों का मानना है कि ट्रंप (Trump) की यह नई चुनौती भारत के सामने अगला ‘1991’ वाला पल है। पेश है इन शुल्कों के परिणामों और उनके प्रभाव को कम करने के लिए सरकार के पास मौजूद विकल्पों पर एक नजर डालती मिंट की रिपोर्ट।
टैरिफ से भारत को कितना नुकसान पहुंचेगा
वर्ष 2024-25 में, भारत ने अमेरिका को 86.5 अरब डॉलर मूल्य का निर्यात किया। नए टैरिफ से अमेरिका को भारत के कुल निर्यात का 67% हिस्सा प्रभावित होगा, फिलहाल केवल दवाइयों और इलेक्ट्रॉनिक्स को ही इससे छूट दी गई है। दूसरे शब्दों में, भारत का 58 अरब डॉलर मूल्य का निर्यात खतरे में है। इससे भारत की आर्थिक वृद्धि में बड़ी गिरावट आने की आशंका है।
गोल्डमैन सैक्स और मॉर्गन स्टेनली, दोनों ने अनुमान लगाया है कि अगर शुल्क लागू रहे तो 2025-26 की वृद्धि दर में 60 आधार अंकों की गिरावट आएगी। वर्ष 2024-25 में भारत के कुल निर्यात (वस्तु और सेवा क्षेत्र) के 825 अरब डॉलर से अधिक होने की संभावना अब बहुत कम दिखती है।
अन्य देशों को निर्यात से भरपाई की संभावना
भारत अन्य देशों के निर्यात कर सकता है, लेकिन यह कहना आसान है, करना मुश्किल। निर्यात बाजार अत्यधिक प्रतिस्पर्धी है और भारत के कुछ प्रतिस्पर्धियों को टैरिफ लाभ प्राप्त है। भारतीय निर्यात को आकर्षक बनाने के लिए, सरकार को ऑस्ट्रेलिया या संयुक्त अरब अमीरात के साथ किए गए अनुकूल द्विपक्षीय व्यापार समझौतों की तरह समझौते करने होंगे।
निर्यात बढ़ाने के लिए हाल ही में संपन्न भारत-यूके आर्थिक और व्यापार समझौते को शीघ्र लागू किया जाना चाहिए। अच्छी खबर यह है कि सरकार पहले से ही ओमान, चिली, पेरू, न्यूजीलैंड और यूरोपीय संघ के साथ व्यापार समझौते करने के लिए बातचीत कर रही है और इन पर शीघ्र हस्ताक्षर किए जाने चाहिए।
क्या हम अमेरिकी बाजार को अलविदा कर दें
बिल्कुल नहीं। अमेरिका एक महत्वपूर्ण बाजार है। सरकार दोनों पक्षों के लिए लाभकारी द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर पहुंचने के लिए अमेरिका के साथ संपर्क बनाए हुए है। लेकिन, इसकी अपनी सीमाए हैं। भारत कुछ क्षेत्रों, खासकर कृषि, को खोलने का इच्छुक नहीं है। एक संप्रभु राष्ट्र होने के नाते, वह अपने व्यापारिक साझेदार चुनने की स्वतंत्रता चाहता है। हालांकि, एक अच्छा सौदा अभी भी संभव है।
सरकार के पास और क्या विकल्प हैं
विशेषज्ञ सुझाव दे रहे हैं कि जीएसटी दरों को तर्कसंगत बनाने का समय आ गया है, जिसकी लंबे समय से प्रतीक्षा थी। चूंकि भारतीय बाजार विशाल है, इसलिए कम जीएसटी दरें घरेलू खपत को पुनर्जीवित कर सकती हैं, जिससे अमेरिका को कम निर्यात की काफी हद तक भरपाई हो सकती है। इससे अर्थव्यवस्था में नई ऊर्जा का संचार होगा और निजी निवेश को बढ़ावा मिलेगा। मांग को बढ़ाने के लिए पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कमी का भी सुझाव दिया जा रहा है।
क्या सुधारों के अगले दौर का समय आ गया
हां। कुछ अर्थशास्त्रियों ने इसे भारत का अगला ‘1991 का क्षण’ कहा है, जब भारत ने अपनी बंद अर्थव्यवस्था को उदार बनाया था। ट्रंप के टैरिफ को समस्या मानने के बजाय, वे चाहते हैं कि सरकार स्थानीय व्यवसायों को और अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए सुधारों का अगला दौर शुरू करे। इस साल के आर्थिक सर्वेक्षण में एक क्षेत्र पर जोर दिया गया है, विनियमन। श्रम और भूमि सुधार लंबे समय से लंबित हैं। अगर इन्हें लागू किया जाता है, तो व्यापार करने में आसानी बढ़ेगी और इससे देश में पूंजी प्रवाह बढ़ेगा।
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