
न्यूयॉर्क। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (United Nations Security Council.- UNSC) की एक हालिया बैठक में पाकिस्तान (Pakistan) ने इस्लाम और मुसलमानों को “कलंकित” किए जाने की कड़ी आलोचना की है। यूएन पर अपनी खीज निकालते हुए पाकिस्तान (Pakistan) ने इस बात का रोना रोया कि आखिर उसकी लिस्ट में कोई “गैर-मुस्लिम आतंकी” का नाम शामिल क्यों नहीं है। पाकिस्तान के संयुक्त राष्ट्र में स्थायी प्रतिनिधि राजदूत असीम इफ्तिखार अहमद (Asim Iftikhar Ahmed) ने कहा कि यह “समझ से परे है” है कि सुरक्षा परिषद की आतंकवादी सूची में केवल मुस्लिमों के नाम शामिल हैं, जबकि गैर-मुस्लिम आतंकवादी और हिंसक उग्रवादी जांच से बच निकलते हैं।
20 अगस्त को “आतंकवादी कृत्यों से अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को खतरा” विषय पर आयोजित UNSC की बैठक में राजदूत इफ्तिखार ने वैश्विक स्तर पर उभरते दक्षिणपंथी उग्रवाद और फासीवादी आंदोलनों पर ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने कहा, “यह देखा जा रहा है कि गैर-मुस्लिमों के कृत्यों को आतंकवाद के बजाय अक्सर हिंसक अपराध के रूप में देखा जाता है।” उन्होंने मौजूदा स्थिति को संयुक्त राष्ट्र और UNSC के उस रुख के खिलाफ बताया, जिसमें कहा गया है कि आतंकवाद एक वैश्विक समस्या है और इसे किसी धर्म, राष्ट्रीयता, सभ्यता या जातीय समूह से जोड़ा नहीं जाना चाहिए।
पाकिस्तान की चिंता और तर्क
पाकिस्तान ने UNSC की आतंकवादी सूची में गैर-मुस्लिम नामों की अनुपस्थिति को एक गंभीर पक्षपात बताया। राजदूत इफ्तिखार ने कहा कि इस्लाम और मुसलमानों के खिलाफ बदनामी को समाप्त करने के लिए प्रतिबंध व्यवस्थाओं में बदलाव की आवश्यकता है ताकि नए और उभरते खतरों को शामिल किया जा सके। उन्होंने कहा, “कई देशों और क्षेत्रों में दक्षिणपंथी, उग्रवादी और फासीवादी आंदोलनों में वृद्धि देखी जा रही है, जो आतंकवादी हिंसा को बढ़ावा दे रहे हैं। फिर भी, इन गैर-मुस्लिम कृत्यों को आतंकवाद के रूप में नहीं देखा जाता।”
आतंकवाद पर पाक का दोहरा रुख
यूएन की बैठक में पाकिस्तान ने आतंकवाद के सभी प्रारूपों की निंदा है। लेकिन पूरी दुनिया जानती है कि पाकिस्तान खुद आतंकी पालने वाले देशों में सबसे आगे है। पाक राजदूत इफ्तिखार ने बताया कि पाकिस्तान ने आतंक के खिलाफ लड़ाई में 80,000 लोगों की जान गंवाई है और उसकी अर्थव्यवस्था को सैकड़ों अरब डॉलर का नुकसान हुआ है। गौरतलब है कि पाकिस्तान का आतंकवाद पर दोहरा रुख लंबे समय से वैश्विक समुदाय के लिए चिंता का विषय रहा है। एक ओर, पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई का दावा करता है, वहीं दूसरी ओर, वह खुद आतंकी संगठनों को पनाह देता है और उन्हें समर्थन प्रदान करता है।
तालिबान, लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठनों को कथित तौर पर पाकिस्तान की धरती पर सुरक्षित ठिकाने और संसाधन मिलते हैं, जिनका उपयोग वे भारत और अफगानिस्तान जैसे पड़ोसी देशों के खिलाफ हमलों के लिए करते हैं। इस दोहरे व्यवहार ने न केवल क्षेत्रीय स्थिरता को खतरे में डाला है, बल्कि पाकिस्तान की विश्वसनीयता को भी गंभीर रूप से प्रभावित किया है, जिसके कारण कई देश इसे आतंकवाद के प्रायोजक के रूप में देखते हैं।
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