
तियानजिन । नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली (Nepal Prime Minister KP Sharma Oli) ने शनिवार को चीन (China) के तियानजिन में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Chinese President Xi Jinping) के साथ द्विपक्षीय बैठक की। इस बैठक के दौरान ओली ने लिपुलेख दर्रे के रास्ते भारत और चीन के बीच व्यापारिक समझौते पर कड़ा विरोध दर्ज कराया। लिपुलेख भारत का हिस्सा है जिस पर नेपाल अपना दावा करता आ रहा है। ओली ने भारत-चीन के बीच हुए इस समझौते को अपनी संप्रभुता के लिए चुनौती करार देते हुए कहा कि लिपुलेख, नेपाल का अभिन्न हिस्सा है और बिना नेपाल की सहमति के कोई भी निर्णय स्वीकार्य नहीं है।
प्रधानमंत्री ओली शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए 30 अगस्त से 3 सितंबर तक चीन की पांच दिवसीय यात्रा पर हैं। तियानजिन में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ उनकी बैठक तियानजिन स्टेट गेस्ट हाउस में हुई। नेपाल के विदेश सचिव अमृत बहादुर राय ने बताया कि पीएम ओली ने स्पष्ट रूप से लिपुलेख को व्यापारिक मार्ग के रूप में उपयोग करने के भारत-चीन समझौते पर नेपाल की आपत्ति जताई। उन्होंने 1816 की सुगौली संधि का हवाला देते हुए कहा कि महाकाली नदी के पूर्व में स्थित सभी क्षेत्र नेपाल की संप्रभु भूमि हैं। ओली ने यह भी विश्वास जताया कि चीन इस मामले में नेपाल के रुख का समर्थन करेगा।
लिपुलेख विवाद समझिए
लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा क्षेत्र लंबे समय से भारत और नेपाल के बीच विवाद का विषय रहा है। नेपाल का दावा है कि सुगौली संधि के अनुसार, महाकाली नदी के पूर्व का क्षेत्र उसका है, जबकि भारत का कहना है कि यह क्षेत्र उसकी सीमा के अंतर्गत आता है। हाल ही में, 19 अगस्त को भारत और चीन ने नई दिल्ली में 24वें दौर की विशेष प्रतिनिधि वार्ता के दौरान लिपुलेख दर्रे सहित तीन पारंपरिक सीमा व्यापार मार्गों को फिर से खोलने का फैसला किया। इस समझौते ने नेपाल में तीखी प्रतिक्रिया को जन्म दिया, क्योंकि नेपाल का मानना है कि यह उसकी संप्रभुता का उल्लंघन है।
नेपाल के विदेश मंत्रालय ने 20 अगस्त को एक बयान जारी कर इस समझौते पर आपत्ति जताई थी, जिसमें कहा गया कि नेपाल का आधिकारिक नक्शा लिम्पियाधुरा, लिपुलेख और कालापानी को नेपाल का अभिन्न हिस्सा दर्शाता है। दूसरी ओर, भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने नेपाल के दावों को खारिज करते हुए कहा कि लिपुलेख के रास्ते भारत-चीन व्यापार 1954 से चला आ रहा है और हाल के वर्षों में कोविड और अन्य कारणों से यह बाधित हुआ था, जिसे अब फिर से शुरू किया गया है।
इस समझौते के बाद नेपाल की संसद में सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों ने एकजुट होकर इसका विरोध किया। नेपाली कांग्रेस के महासचिव गगन थापा ने इसे “अस्वीकार्य” और “आपत्तिजनक” करार दिया, जबकि सत्तारूढ़ सीपीएन-यूएमएल के मुख्य व्हिप महेश बरतौला ने कहा कि नेपाल भले ही आकार में छोटा हो, लेकिन अपनी संप्रभुता और स्वाभिमान के मामले में कोई समझौता नहीं करेगा। सीपीएन-माओवादी केंद्र के मुख्य सचेतक हितराज पांडे ने भी इस समझौते को नेपाल के हितों के खिलाफ बताया।
भारत के साथ साइडलाइन बैठक की संभावना
एससीओ शिखर सम्मेलन से इतर नेपाली पीएम ओली की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ भी बैठक करने की संभावना है। हालांकि उनके ताजा कदम से इस बैठक पर संकट के बादल छा गए हैं। अब कल यानी रविवार को ही स्पष्ट होगा कि ओली और मोदी के बीच बैठक होती है या नहीं।
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