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कब किया जाएगा गणपति विसर्जन? जानें शुभ मुहूर्त, महत्व और इससे जुड़ी परंपराएं

September 03, 2025

नई दिल्ली. गणेश चतुर्थी (Ganesh Chaturthi) का पर्व भगवान गणेश (Lord Ganesha) के जन्म का प्रतीक है. यह पर्व 10 दिनों तक चलता है. इस दौरान भक्त गणपति बप्पा की प्रतिमा को अपने घर में स्थापित करके उनकी पूजा-अर्चना करते हैं. इस महापर्व का समापन गणेश विसर्जन के साथ होता है. गणेश विसर्जन (Ganpati Visarjan) के दिन भगवान गणेश की प्रतिमा को पूरे सम्मान और धूमधाम के साथ विसर्जित किया जाता है, तो आइए जानते हैं गणेश विसर्जन की तिथि, शुभ मुहूर्त, महत्व और इससे जुड़ी परंपराएं.

गणपति विसर्जन 2025 की तिथि 
इस बार गणेश विसर्जन 6 सितंबर को होगा. इसी दिन अनंत चतुर्दशी भी मनाई जाती है. लेकिन कुछ साधक अपनी परंपराओं के अनुसार 1.5, 3, 5 या 7 दिनों के बाद भी गणपति का विसर्जन करते हैं.


गणपति विसर्जन का तरीका
गणपति विसर्जन के दिन सुबह से उपवास रखना जरूरी है. अगर आप उपवास ना रख पाएं तो फलाहार करें. घर में स्थापित गणेश की प्रतिमा का विधिवत पूजन करें. पूजन में नारियल, शमी पत्र और दूब जरूर अर्पित करें. प्रतिमा को विसर्जन के लिए ले जाते समय भगवान गणेश को समर्पित अक्षत घर में जरूर बिखेर दें.

गणेश का विसर्जन नंगे पैर ही करें. बता दें कि विसर्जन के लिए मिट्टी की प्रतिमा सर्वश्रेष्ठ है. इसलिए प्लास्टिक की मूर्ती को स्थापित न करें. विसर्जन के बाद हाथ जोड़कर श्री गणेश से कल्याण और मंगल की कामना करें.

विसर्जन के समय करें विशेष उपाय
एक भोजपत्र या पीला कागज लें. अष्टगंध कि स्याही या नई लाल स्याही की कलम भी लें. भोजपत्र या पीले कागज पर सबसे ऊपर स्वस्तिक बनाएं. उसके बाद स्वस्तिक के नीचे ‘ऊं गं गणपतये नमः’ लिखें. इसके बाद अपनी सारी समस्याएं लिखें. लिखावट में काट छांट न करें. कागज के पीछे कुछ ना लिखें. समस्याओं के अंत में अपना नाम लिखें . इसके बाद गणेश मंत्र लिखें. सबसे आखिर में स्वस्तिक बनाएं. कागज को मोड़ कर रक्षा सूत्र से बांध लें. इस कागज को गणेश जी को समर्पित करें. इस कागज को भी गणेश जी की प्रतिमा के साथ ही विसर्जित करें. माना जाता है कि ऐसा करने से जीवन की सभी समस्याओं से मुक्ति मिलती है.

अनंत चतुर्दशी का महत्व
इस दिन मोक्ष की प्राप्ति के लिए भगवान विष्णु की भी पूजा की जाती है. इसके लिए अनंत चतुर्दशी का व्रत रखा जाता है. बंधन का प्रतीक सूत्र हाथ में बांधा जाता है. व्रत के पारायण के समय इसको खोल दिया जाता है. इस व्रत में नमक का सेवन नहीं करते हैं. पारायण में मीठी चीजें जैसे सेवईं या खीर खाते हैं. मान्यता है कि इस दिन गजेन्द्र मोक्ष का पाठ करने से जीवन की तमाम परेशानियां दूर होती हैं.

अनंत चतुर्दशी पर प्रसन्न होंगे
इस व्रत में सूत या रेशम के धागे को कुमकुम से रंगकर उसमें चौदह गांठे लगाई जाती हैं. इसके बाद उसे विधि-विधान से पूजा के बाद कलाई पर बांधा जाता है. कलाई पर बांधे गए इस धागे को ही अनंत कहा जाता है. भगवान विष्णु का रूप माने जाने वाले इस धागे को रक्षासूत्र भी कहा जाता है. ये 14 गांठे भगवान श्री हरि के 14 लोकों की प्रतीक मानी गई हैं. यह अनंत धागा भगवान विष्णु को प्रसन्न करने वाला तथा अनंत फल देता है.

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