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महिला जज के खिलाफ भ्रष्‍टाचार मामले में CBI ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, बरी करने को दी चुनौती

September 10, 2025

नई दिल्‍ली । केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय (Punjab and Haryana High Court) की पूर्व न्यायाधीश जस्टिस निर्मल यादव (Justice Nirmal Yadav) को बरी किए जाने के खिलाफ हाईकोर्ट (High Court) का दरवाजा खटखटाया है। इससे पहले चंडीगढ़ की एक अदालत ने जस्टिस निर्मल यादव को 2008 में दर्ज करप्शन के एक मामले में बरी कर दिया था। अब इस फैसले को चुनौती देते हुए CBI जज के खिलाफ पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट पहुंची है। इसके बाद हाईकोर्ट ने निर्मल यादव और तीन अन्य को नोटिस जारी किया है और सीबीआई की अपील पर सुनवाई के लिए 15 दिसंबर की तारीख तय की है।

बता दें कि चंडीगढ़ की निचली अदालत ने बीते मार्च में फैसला सुनाते हुए कहा था कि जस्टिस यादव को भ्रष्टाचार के मामले में फंसाने के लिए CBI ने उनके खिलाफ झूठे सबूत गढ़े हैं। जस्टिस निर्मल यादव, जो उस समय हाईकोर्ट की जज और पूर्व न्यायिक अधिकारी थीं, के विरुद्ध मामला अगस्त 2008 में शुरू हुआ था, जब हाईकोर्ट की ही एक अन्य जज जस्टिस निर्मलजीत कौर के आवास पर 15 लाख रुपए से भरा एक बैग मिला था।


जस्टिस कौर के चपरासी ने इस मामले की सूचना चंडीगढ़ पुलिस को दी, जिसके बाद एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी। बाद में मामला सीबीआई को सौंप दिया गया, जिसने शुरू में मामले में एक क्लोजर रिपोर्ट दायर की, जिसे खारिज कर दिया गया। इसके बाद सीबीआई ने 2011 में अभियुक्तों के विरुद्ध आरोप पत्र दायर किया। इसके मुताबिक हरियाणा के पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता संजीव बंसल के एक क्लर्क द्वारा पहुंचाए गए यह पैसे जस्टिस निर्मल यादव के लिए थे, लेकिन दोनों जजों के नाम एक जैसे होने के कारण यह गलती से जस्टिस निर्मलजीत कौर के घर पर पहुंच गए। यह आरोप लगाया गया था कि जस्टिस निर्मल यादव ने यह पैसे एक संपत्ति विवाद मामले में फैसले के बदले में लिए थे।

हालांकि निचली अदालत ने CBI की दलीलों को खारिज कर दिया था। बीते 29 मार्च को दिए गए फैसले में विशेष न्यायाधीश (सीबीआई) अलका मलिक ने कहा कि सीबीआई को झूठ और मान्यताओं पर आधारित गवाह की गवाही पेश करने के बजाय मामले में अपनी प्रारंभिक क्लोजर रिपोर्ट पर कायम रहना चाहिए था। इस मामले के सभी आरोपियों को बरी भी कर दिया गया था। वहीं अपील में सीबीआई ने तर्क दिया है कि यह फैसला गलत है क्योंकि निचली अदालत ने कड़ियों के बीच संबंधों को स्वीकार करने के बावजूद उन्हें काल्पनिक तर्क बताते हुए खारिज कर दिया है।

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