
नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की 5 जजों के संविधान पीठ (Constitution Bench) ने गुरुवार को कहा कि अदालत राज्यपाल (Governor) को विधानसभा (Assembly) से पारित विधेयक (Bill) पर निर्णय लेने का आदेश दे सकती है, लेकिन यह आदेश नहीं दे सकती कि निर्णय कैसे लेना है। संविधान पीठ ने यह टिप्पणी तब की, जब केंद्र की ओर से कहा गया कि हर विधेयक विशिष्ट तथ्य और परिस्थितियों पर आधारित होता है, इसलिए अदालत हर मामले के लिए समान समय सीमा तय नहीं कर सकती।
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अगुवाई वाली पांच जजों की संविधान पीठ के समक्ष यह भी कहा कि शीर्ष कोर्ट राज्यपाल द्वारा विधायी प्रक्रिया के तहत किए किसी कार्य के लिए परमादेश जारी नहीं कर सकता। इस पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि अदालत राज्यपाल को संविधान के अनुच्छेद-200 के तहत किसी विशेष तरीके से निर्णय लेने को नहीं कह सकती, लेकिन अदालत राज्यपाल को निर्णय लेने का आदेश दे सकती है। विधेयक पर निर्णय लेने के लिए अदालत राज्यपाल को परमादेश भी जारी कर सकती है।
संविधान पीठ ने राष्ट्रपति द्वारा भेजे संदर्भ पर फैसला सुरक्षित रख लिया। बहस के दौरान केंद्र अलावा उत्तर प्रदेश, हरियाणा, ओडिशा सहित अधिकांश भाजपा शासित राज्यों ने राष्ट्रपति द्वारा शीर्ष अदालत को भेजे गए संदर्भ का समर्थन किया। दूसरी तरफ तमिलनाडु, केरल, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक और झारखंड सहित कांग्रेस और अन्य दलों द्वारा शासित राज्यों ने विरोध किया। पीठ में जस्टिस विक्रम नाथ, पी.एस. नरसिम्हा और ए.एस. चंदुरकर भी शामिल हैं।
अनिश्चित काल तक विधेयक नहीं रोक सकते राज्यपाल
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि राज्यपाल पारित विधेयकों को अनिश्चित काल तक नहीं रोक सकते। मेहता ने कहा कि इसके बावजूद अदालत राज्यपाल द्वारा विधेयक पर निर्णय लेने के लिए एक समान आदेश पारित कर निश्चित समय-सीमा निर्धारित नहीं कर सकते।
विधेयक के विषय पर निर्भर करेगा
मेहता ने कहा कि हम ऐसी चरम स्थिति को नहीं ले रहे हैं जहां विधेयकों पर लगातार विचार-विमर्श हो सकता है, लेकिन कोई निश्चित समय-सीमा भी नहीं हो सकती। यह सब विधेयक के विषय पर निर्भर करता है।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि यदि लोकतंत्र का एक अंग अपने कर्तव्यों के निर्वहन में विफल रहता है, तो क्या अदालत शक्तिहीन होकर निष्क्रिय बैठने को मजबूर हो जाएगी? कोई भी प्राधिकार कानून से ऊपर नहीं है।
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