
नई दिल्ली । बीते लोकसभा चुनावों (Lok Sabha elections) के नतीजों के बाद राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) को मजबूत करने में जुटी भारतीय जनता पार्टी (BJP) को अपने सहयोगी दलों के दबाव से जूझना पड़ रहा है। बिहार के विधानसभा चुनावों (Bihar Assembly Elections) के पहले जहां ‘हम’ मुखर हो गया है, वहीं उत्तर प्रदेश में निषाद पार्टी, सुभासपा, अपना दल एवं रालोद अपने ढंग से दबाव बढ़ा रहे हैं। तमिलनाडु में भी अन्नाद्रमुक के विभिन्न धड़ों को जोड़ने की भाजपा की कोशिशों का अन्नाद्रमुक की तरफ से विरोध सामने आ रहा है।
चुनाव विधानसभा का हो या लोकसभा का, गठबंधन की राजनीति में सीटों के बंटवारे को लेकर मोल-भाव होता ही है, लेकिन जब नेतृत्व करने वाला दल कमजोर पड़ता है तो छोटे दलों का दबाव बढ़ने लगता है। भाजपा की राजनीति में 2014 के बाद से दस साल से जहां भाजपा सहयोगी दलों पर हावी रही और उसके नेतृत्व वाला गठबंधन उसके अनुसार चला, वहीं 2024 के लोकसभा चुनावों के नतीजों के बाद स्थितियां बदलने लगी।
भाजपा ने तो नतीजों के अनुसार अपने दल से ज्यादा जोर गठबंधन को मजबूत करने पर दिया और संसद के भीतर व बाहर गठबंधन को आगे रखा। हालांकि, उसके सहयोगी दलों ने इस स्थिति का लाभ उठाने कोशिश करते हुए भाजपा पर दबाव बढ़ाना शुरू कर दिया है। बिहार में विधानसभा चुनाव के पहले हिंदुस्तान आवाम मोर्चा के जीतनराम मांझी तो खुलकर सामने आ गए हैं। जदयू भी खुद को बड़ा भाई बता रहा है। लोजपा (रामविलास) भी लोकसभा सीटों के अनुपात में सीट मांग रही है। रालोमो की भी अपनी मांग है।
अन्नाद्रमुक के सहारे पार्टी
तमिलनाडु में भाजपा अन्नाद्रमुक के सहारे है। उसकी कोशिश है कि जयललिता के निधन के बाद धड़ों में बंटी अन्नाद्रमुक एकजुट हो ताकि अगले साल विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ द्रमुक के गठबंधन को मजबूत चुनौती दी जा सके। हालांकि, अन्नाद्रमुक के नेता ई. पलानीसामी विभिन्न धड़ों के साथ अपने मतभेदों के चलते उनको लेने को तैयार नहीं हैं।
उत्तर प्रदेश में भी भाजपा की सहयोगी निषाद पार्टी मुखर होने लगी है। हाल में दिल्ली में निषाद पार्टी के मंच पर सुभासपा, अपना दल, रालोद के नेता जुटे और उन्होंने भी अपनी सामाजिक स्थिति के अनुसार ज्यादा हिस्सेदारी की मांग की है। हालांकि, राज्य में चुनाव 2027 में हैं, लेकिन सहयोगी दलों ने अपना मोर्चा संभालना शुरू कर दिया है।
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