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शुभांशु शुक्ला ने बताई अंतरिक्ष में कितनी आती है मुश्किलें, बोले- बीमार पड़े तो दवा भी नहीं ले सकते

September 20, 2025

नई दिल्ली । अंतरिक्ष यात्रा (space travel) का मानव शरीर (human body) पर क्या दुष्प्रभाव (side effects) पड़ते हैं? इस बात का जवाब दिया है भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला (Indian astronaut Shubhanshu Shukla) ने। उन्होंने बताया कि अंतरिक्ष यात्रा के दौरान उन्हें कई तरह की मुश्किलें झेलनी पड़ीं। इनमें चेहरे पर सूजन, धीमी धड़कन, पीठ में दर्द और भूख न लगना जैसी चीजें शामिल थीं। उन्होंने कहा कि यह ऐसी चीजें हैं जो जो अंतरिक्ष यात्रा की आकर्षक छवि से बहुत दूर है। फिक्की सीएलओ द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में शुक्ला ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) पर जीवन मानव सहनशक्ति की एक कठिन परीक्षा है, जो लचीलेपन, टीम भावना और दृढ़ता के शक्तिशाली सबक प्रदान करता है।

शुभांशु शुक्ला ने कहा कि अब आप सोच सकते हैं कि अंतरिक्ष मिशन शुरू से ही रोमांचक होते हैं। सच कहूं तो होते भी हैं। लेकिन एक बार जब आप सूक्ष्म गुरुत्व में पहुंच जाते हैं, तो आपका शरीर सूक्ष्म गुरुत्व वाले वातावरण में होता है। यह विद्रोह करता है क्योंकि इसने पहले कभी ऐसा वातावरण नहीं देखा होता, सबकुछ बदल जाता है। शुक्ला ने कहा कि रक्त ऊपर की ओर बढ़ता है, आपका सिर फूल जाता है, आपकी हृदय गति धीमी हो जाती है, आपकी रीढ़ लंबी हो जाती है और आपको पीठ में दर्द होता है। आपके शरीर के अंदर आपका पेट भी तैरता रहता है और उसकी सामग्री भी, इसलिए आपको भूख नहीं लगती। ये सभी परिवर्तन उस क्षण होते हैं जब आप अंतरिक्ष में पहुंचते हैं।


भारतीय अंतरिक्ष यात्री ने एक विशेष रूप से कठिन क्षण को याद किया जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ बातचीत से ठीक पहले उन्हें मतली और सिरदर्द की समस्या हो रही थी। शुक्ला ने कहा कि आप दवा भी नहीं ले सकते क्योंकि मतली की दवाएं आपको नींद में डाल देती हैं। इसलिए आपको बुरा लगता है और फिर भी आपको काम करना पड़ता है। उन्होंने बताया कि स्थिति को देखते हुए उनकी टीम के एक सदस्य ने चुपचाप अपना कैमरा और माइक्रोफोन सेट कर दिया। शुक्ला ने कहा कि यह टीम भावना है, शब्दों में नहीं, बल्कि काम में।

शुक्ला ने बताया कि अंतरिक्ष यात्रियों को अनगिनत छोटे-छोटे तरीकों से एक-दूसरे पर निर्भर रहना पड़ता है – जैसे कि ग्लव बॉक्स में लंबे प्रयोगों के दौरान उनके चेहरे के पास पंखा लगाना, या जब वे घंटों तक फंसे रहते हैं तो उन्हें पानी की बोतल देना। उन्होंने कहा कि ये छोटे-छोटे प्रयास दर्शाते हैं कि टीम भावना कितनी महत्वपूर्ण है। शुक्ला ने कहा कि सहयोग वैकल्पिक नहीं है, यह आवश्यक है। आप अंतरिक्ष में अकेले नहीं जाते, आप कई लोगों के कंधों पर सवार होकर जाते हैं।

शुभांशु शुक्ला के मुताबिक शारीरिक असुविधा के अलावा अंतरिक्ष यात्रा का भावनात्मक प्रभाव भी गहरा था। शुक्ला ने पृथ्वी की ओर देखने और भारत को निहारने को एक अत्यंत मार्मिक अनुभव बताया। उन्होंने कहा कि पृथ्वी पर मौजूद सभी स्थानों में से भारत ऊपर से देखने पर सबसे सुंदर लगता है। समुद्र तट और मैदान अलग ही नजर आते हैं… यह सचमुच सारे जहां से अच्छा है… उन क्षणों में घर से जुड़ाव बहुत ही अद्भुत लगता है।

शुक्ला ने कहा कि अंतरिक्ष अभियानों की असली विरासत सिर्फ विज्ञान में ही नहीं, बल्कि प्रतिनिधित्व और प्रेरणा में भी निहित है। उन्होंने बताया कि लखनऊ में मुलाकात करने वाले बच्चों ने बताया कि उन्हें अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) के बारे में तभी पता चला जब वह वहां गए थे। अंतरिक्ष यात्री एवं भारतीय वायुसेना के अधिकारी ने कहा कि उन्होंने मुझसे कहा कि हमें आपकी परवाह थी क्योंकि आप वहां थे। उस पल ने मुझ पर गुरुत्वाकर्षण की तरह गहरा प्रभाव डाला। बोर्डरूम, प्रयोगशालाओं, संसदों और यहां तक कि अंतरिक्ष कैप्सूल में भी आपकी उपस्थिति केवल प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि उत्प्रेरक होती है।

शुक्ला ने अस्वीकृति के बावजूद दृढ़ता के बारे में भी बात की तथा अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री पैगी व्हिटसन की कहानी साझा की, जिन्होंने अंततः चयनित होने से पहले 10 बार अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा में आवेदन किया तथा कई कीर्तिमान स्थापित किए। उन्होंने कहा कि यदि दुनिया नौ बार ‘नहीं’ भी कहे, तो दसवीं बार ‘हां’ कहने से इतिहास बदल सकता है।

शुक्ला ने भारत की महत्वाकांक्षी गगनयान मिशन योजना और 2040 तक चंद्रमा पर उपस्थिति को ऐसे मील के पत्थर बताया जो देश को आगे ले जाएंगे। उन्होंने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि इसके लिए रॉकेट और अंतरिक्ष यान से कहीं अधिक की आवश्यकता होगी। इसके लिए पूरे देश की ऊर्जा की जरूरत होगी।

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