
नई दिल्ली । ऑपरेशन सिंदूर(Operation Sindoor) पर विवादित पोस्ट(controversial post) के मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट(Bombay High Court) ने सख्त टिप्पणी (strict remarks)की है। कोर्ट ने कहा कि छात्रा पढ़ने में अच्छी है, केवल इस आधार पर केस रद्द नहीं किया जा सकता। चीफ जस्टिस चंद्रशेखर और जस्टिस गौतम अखंड की बेंच ने कहा कि सिर्फ इसलिए कि आरोपी एक मेधावी छात्रा है और उसने अपनी परीक्षाएं अच्छे अंकों से उत्तीर्ण की है, इसका मतलब यह नहीं है कि उसके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी रद्द की जा सकती है। 19 वर्षीय छात्रा ने ऑपरेशन सिंदूर के खिलाफ पोस्ट की थी।
हाई कोर्ट ने आगे कहा कि केवल पोस्ट हटा लेना और माफी मांग लेना ही काफी नहीं है। अदालत पुणे की एक छात्रा द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही जिसमें ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत-पाकिस्तान शत्रुता पर सोशल मीडिया पर पोस्ट करने के लिए मई में उसके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने का अनुरोध किया गया था। उसे गिरफ्तार किया गया था लेकिन बाद में उच्च न्यायालय से जमानत मिलने के बाद उसे रिहा कर दिया गया था।
शुक्रवार को छात्रा के वकील ने अदालत को बताया कि जमानत मिलने के बाद, वह परीक्षा में शामिल हुई और उसे अच्छे अंक मिले। हालांकि, बेंच ने कहा कि इसलिए कि वह एक मेधावी छात्रा है, प्राथमिकी रद्द करने का आधार नहीं हो सकता। छात्रा के वकील ने दलील दी कि पोस्ट के पीछे उसकी कोई बुरी मंशा नहीं थी और उसने तुरंत इसे हटा दिया और माफी मांग ली। हालांकि, अदालत ने कहा कि (पोस्ट को) हटाने से मामला और भी गंभीर और जटिल हो गया है।
पीठ ने मामले की अगली सुनवाई दो हफ्ते बाद निर्धारित की और सरकारी वकील मनखुवर देशमुख को ‘केस डायरी’ पेश करने का निर्देश दिया। छात्रा ने 7 मई को, इंस्टाग्राम पर ‘रिफॉर्मिस्तान’ नाम के एक अकाउंट से एक पोस्ट को रीपोस्ट किया था, जिसमें भारत सरकार की आलोचना की गई थी। दो घंटे के भीतर, छात्रा को अपनी गलती का एहसास हुआ और कई धमकियां मिलने के बाद उसने पोस्ट हटा दिया।
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