
कोच्चि । केरल हाईकोर्ट (Kerala High Court) ने बुधवार को केंद्र सरकार पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि वायनाड (Wayanad) में 2024 में आए भूस्खलन (landslide) के पीड़ितों के प्रति केंद्र ने “लगभग विफलता” दिखाई है। अदालत ने कहा कि केंद्र सरकार ने अपने संवैधानिक अधिकारों का उपयोग करते हुए इन पीड़ितों के ऋण माफ करने की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया, जो बेहद “दुर्भाग्यपूर्ण” और “हताशाजनक” है।
न्यायमूर्ति ए. के. जयशंकरन नांबियार और न्यायमूर्ति जोबिन सेबेस्टियन की खंडपीठ ने यह टिप्पणी करते हुए बैंकों को निर्देश दिया कि वे वायनाड भूस्खलन पीड़ितों के खिलाफ किसी भी ऋण वसूली कार्रवाई को अगली सुनवाई तक रोक दें। यह जनहित याचिका अदालत ने स्वयं संज्ञान लेकर दायर की थी, ताकि राज्य में आपदा प्रबंधन और रोकथाम की स्थिति में सुधार किया जा सके।
‘शायलॉक जैसी वसूली पद्धतियां स्वीकार्य नहीं’
अदालत ने कहा कि वह “शायलॉकियन तरीकों” (निर्दयी वसूली के तौर-तरीकों) से बैंकों द्वारा की जा रही कार्रवाई को स्वीकार नहीं कर सकती। पीठ ने कहा कि केंद्र का यह तर्क अस्वीकार्य है कि वह ऋण माफी के मामले में शक्तिहीन है, क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 73 के तहत केंद्र के पास व्यापक अधिकार मौजूद हैं।
‘केंद्र की संवैधानिक जिम्मेदारी थी पीड़ितों की रक्षा करना’
अदालत ने कहा कि जब केंद्र स्वयं इन भूस्खलनों को “गंभीर आपदा” की श्रेणी में रखता है, तो उसे यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पीड़ितों का जीवन और गरिमा सुरक्षित रहे। पीठ ने कहा, “यह तब और भी अधिक स्पष्ट हो जाता है जब हमें आज एक समाचार रिपोर्ट से पता चलता है कि केंद्र सरकार ने 2024 के दौरान बाढ़ और भूस्खलन से प्रभावित होने वाले असम और गुजरात राज्यों को अतिरिक्त केंद्रीय सहायता के रूप में 707 करोड़ रुपये की सहायता को मंजूरी दी है।” कोर्ट ने कहा, “वायनाड पीड़ितों के लिए ऋण माफी के रूप में मांगी गई मौद्रिक राहत इस राशि का एक छोटा सा हिस्सा है।”
‘संघीय ढांचे में भेदभाव की अनुमति नहीं’
अदालत ने कहा कि भारत के संघीय ढांचे के सिद्धांत किसी भी राज्य के नागरिकों के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार की अनुमति नहीं देते। पीठ ने कहा, “राजनीतिक मतभेद संविधान द्वारा प्रदत्त मूल अधिकारों की रक्षा को प्रभावित नहीं कर सकते। यहां सवाल वायनाड के पीड़ितों के सम्मानजनक जीवन के अधिकार का है।”
‘ऋण वसूली, पीड़ितों की गरिमा का अपमान’
पीठ ने कहा कि जिन किसानों और नागरिकों ने कृषि या उससे संबंधित उद्देश्यों के लिए ऋण लिया था और जिनकी संपत्ति अब भूस्खलन में नष्ट हो चुकी है, उनसे ऋण वसूली की मांग करना “उनकी गरिमा का अपमान” है। अदालत ने कहा, “ऐसी स्थिति में शक्ति का प्रयोग न करना केंद्र सरकार की नैतिक और संवैधानिक जिम्मेदारी से विमुख होने के समान है।”
बैंकों को नोटिस, जवाब तलब
अदालत ने एसबीआई, केनरा बैंक, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, पंजाब नेशनल बैंक और बैंक ऑफ बड़ौदा सहित 12 बैंकों को पक्षकार बनाते हुए निर्देश दिया कि वे अगली सुनवाई तक वसूली कार्रवाई न करें। बैंकों से कहा गया है कि वे यह बताएं कि क्या वे इन ऋणों को पूर्ण या आंशिक रूप से माफ करने के लिए तैयार हैं। यदि नहीं, तो उन्हें ऋण समझौते के प्रावधानों के आधार पर स्पष्ट औचित्य प्रस्तुत करना होगा।
अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 29 अक्टूबर को निर्धारित की है। उल्लेखनीय है कि 30 जुलाई 2024 को वायनाड जिले के मुंडक्काई और चूरालमाला क्षेत्रों में आए भीषण भूस्खलन ने पूरे इलाकों को लगभग तबाह कर दिया था। इस आपदा में 200 से अधिक लोगों की जान गई, सैकड़ों घायल हुए और 32 लोग अब भी लापता हैं।
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