
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने गुरुवार को उच्च न्यायालयों (High Courts.) और खुद को चेतावनी देते हुए एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की। शीर्ष अदालत ने कहा कि सीबीआई जांच (CBI investigation) का आदेश देना अंतिम उपाय होना चाहिए, न कि नियमित प्रक्रिया। शीर्ष अदालत ने यह स्पष्ट किया कि सीबीआई जांच (CBI investigation) का सहारा तभी लिया जाना चाहिए, जब अन्य सभी विकल्प समाप्त हो जाएं और जांच की निष्पक्षता (Impartiality of investigation.) पर गंभीर सवाल उठ रहे हों।
जस्टिस जे. के. महेश्वरी और जस्टिस विजय बिश्नोई की पीठ ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस आदेश को निरस्त कर दिया, जिसमें उत्तर प्रदेश विधान परिषद के कर्मचारियों की भर्ती में कथित अनियमितताओं की जांच सीबीआई को सौंपी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट ने यह आदेश “संदेह और अनुमानों” के आधार पर पारित किया था। अदालत ने मामले को पुनर्विचार के लिए हाईकोर्ट को वापस भेज दिया।
जस्टिस महेश्वरी ने निर्णय लिखते हुए कहा, “यह सुव्यवस्थित विधि है कि उच्च न्यायालय या यह न्यायालय सीबीआई जांच का आदेश सामान्य रूप से नहीं दे सकते। संविधान के अनुच्छेद 32 और 226 के तहत यह एक असाधारण संवैधानिक शक्ति है, जिसका प्रयोग अत्यंत सावधानी और विवेक के साथ ही किया जाना चाहिए।”
उन्होंने कहा कि केवल इसलिए कि किसी पक्ष को राज्य पुलिस पर संदेह है या उसे निष्पक्ष जांच पर विश्वास नहीं है, सीबीआई जांच का आदेश देना उचित नहीं है। अदालत को यह सुनिश्चित करना होगा कि प्रस्तुत सामग्री प्रथम दृष्टया अपराध का संकेत देती हो और निष्पक्ष जांच के लिए केंद्रीय एजेंसी की आवश्यकता हो, या फिर मामला इतना जटिल या व्यापक हो कि उसमें राष्ट्रीय स्तर के प्रभाव हों।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हालांकि यह तय करने के लिए कोई कठोर नियम नहीं हैं कि कब सीबीआई जांच का आदेश दिया जा सकता है, लेकिन अदालतें यह कदम तब उठा सकती हैं जब मामला राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय महत्व का हो। दिलचस्प बात यह है कि जस्टिस महेश्वरी की ही अध्यक्षता वाली एक अन्य पीठ ने इसी हफ्ते तमिलनाडु के करूर में हुई भगदड़ की घटना की जांच सीबीआई से कराने का अंतरिम आदेश दिया था।
अदालत ने यह भी चेतावनी दी कि ऐसे मामलों में केंद्रीय एजेंसी पर “अनावश्यक बोझ” नहीं डाला जाना चाहिए। जस्टिस महेश्वरी ने कहा, “सीबीआई जांच का आदेश एक अंतिम उपाय के रूप में देखा जाना चाहिए। इसे तभी उचित ठहराया जा सकता है जब अदालत को यह विश्वास हो कि जांच की निष्पक्षता पर गंभीर खतरा है, या प्रक्रिया की अखंडता इतनी प्रभावित हो गई है कि यह न्यायपालिका या जनता के विश्वास को हिला सकती है।”
पीठ ने कहा कि ऐसे असाधारण हालात तब पैदा होते हैं जब जांच एजेंसियों की निष्पक्षता पर गंभीर संदेह हो, उच्च पदस्थ सरकारी अधिकारियों या राजनीतिक रूप से प्रभावशाली व्यक्तियों की संलिप्तता का संकेत मिले, या राज्य पुलिस की भूमिका से जनता में निष्पक्ष जांच की क्षमता को लेकर संदेह उत्पन्न हो। इस फैसले के साथ, सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर यह स्पष्ट कर दिया कि सीबीआई जैसी केंद्रीय एजेंसियों को जांच सौंपना सामान्य प्रथा नहीं बल्कि अत्यधिक अपवाद की स्थिति होनी चाहिए, ताकि न्यायिक प्रक्रिया में संतुलन और संस्थागत मर्यादा बनी रहे।
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