
नई दिल्ली । कतर और तुर्की (Qatar and Turkiye) की मध्यस्थता से अफगानिस्तान और पाकिस्तान (Afghanistan and Pakistan) के बीच तत्काल संघर्ष विराम पर सहमति हो गई है। दोनों देशों ने दोहा में सीजफायर (ceasefire) पर हामी भरी है। इस बीच, तालिबान सरकार के रक्षा मंत्री मुल्ला मोहम्मद याकूब ने दोहा से एक ऑनलाइन प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए स्पष्ट किया कि अफगानिस्तान की संप्रभुता का उल्लंघन या उसकी सुरक्षा में किसी भी प्रकार की हस्तक्षेप की अनुमति नहीं दी जाएगी।
टोलो न्यूज की रिपोर्ट के मुताबिक, दोहा से आयोजित ऑनलाइन प्रेस कॉन्फ्रेंस में तालिबान प्रवक्ता जबीहुल्लाह मुजाहिद ने जोर देकर कहा कि डूरंड रेखा एक काल्पनिक सीमा है और समझौते के किसी भी हिस्से में इस पर चर्चा नहीं हुई। उन्होंने इस मुद्दे को दोनों देशों के बीच का द्विपक्षीय मामला बताते हुए कहा कि यह अंतरराष्ट्रीय मंच पर नहीं उठाया जाना चाहिए। मुजाहिद ने तुर्की में होने वाली आगामी बैठक का जिक्र करते हुए बताया कि वहां वर्तमान समझौते को कैसे लागू किया जाए, इस पर फोकस रहेगा।
एक पत्रकार के सवाल पर कि क्या पाकिस्तान दोबारा हमला करने या समझौते का उल्लंघन न करने की गारंटी देगा, मुजाहिद ने कहा कि पाकिस्तान ने दो अन्य देशों की मौजूदगी में अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की है। रक्षा मंत्री ने आगे चेतावनी दी कि यदि पाकिस्तान द्वारा कोई हमला किया जाता है, तो अफगानिस्तान जवाबी कार्रवाई के लिए बाध्य होगा। उन्होंने याद दिलाया कि पाकिस्तान ने पहले भी अफगानिस्तान के हवाई क्षेत्र का उल्लंघन किया है। टोलो न्यूज के अनुसार, रक्षा मंत्री ने कहा कि अफगानिस्तान के इस्लामी अमीरात ने पाकिस्तान के सैन्य शासन को निर्णायक जवाब दिया है।
मुजाहिद ने आगे स्पष्ट किया कि समझौते के तहत दोनों देशों के बीच व्यापार सामान्य रूप से बहाल हो जाएगा। उन्होंने जोर दिया कि एक स्वतंत्र राष्ट्र के नाते अफगानिस्तान अपने राष्ट्रीय हितों के आधार पर पाकिस्तान सहित सभी देशों के साथ सकारात्मक संबंध बनाए रखेगा। अफगान शरणार्थियों के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि चर्चा में उनकी स्थिति पर विचार किया गया और उनके साथ मानवीय व्यवहार सुनिश्चित करने पर बल दिया गया।
क्या बोला पाकिस्तान?
दूसरी ओर, पाकिस्तान के उप-प्रधानमंत्री एवं विदेश मंत्री इशाक डार ने रविवार को अफगानिस्तान के साथ हुए शांति समझौते की सराहना की, लेकिन हाल के हमलों के लिए अफगानिस्तान पर लगाए गए आरोपों को दोहराया। डार ने आगे जान-माल के नुकसान को रोकने के लिए संयुक्त प्रयासों का आह्वान किया। एक्स पर एक पोस्ट में उन्होंने लिखा कि दोहा में हुए समझौते का स्वागत है। यह सही दिशा में पहला कदम है। कतर और तुर्की द्वारा निभाई गई रचनात्मक भूमिका की मैं तहे दिल से सराहना करता हूं। हम तुर्की की मेजबानी में होने वाली अगली बैठक में एक ठोस और सत्यापन योग्य निगरानी तंत्र की स्थापना की आशा करते हैं, ताकि अफगानिस्तान की धरती से पाकिस्तान की ओर बढ़ रहे आतंकवाद के खतरे से निपटा जा सके। आगे और जानमाल के नुकसान को रोकने के लिए सभी प्रयास करना महत्वपूर्ण है।
डूरंड रेखा क्या है?
डूरंड रेखा 1893 में ब्रिटिश भारत और अफगानिस्तान के बीच निर्धारित एक विवादास्पद सीमा रेखा है, जो हिंदूकुश पर्वत से होकर गुजरती है। इसे ब्रिटिश अधिकारी सर हेनरी मॉर्टिमर डूरंड और अफगान शासक अमीर अब्दुर रहमान खान के बीच हुए समझौते से तय किया गया था। आधुनिक संदर्भ में यह अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच की अंतरराष्ट्रीय सीमा मानी जाती है। यह रेखा 19वीं शताब्दी के ‘ग्रेट गेम’ की विरासत है, जिसमें रूसी और ब्रिटिश साम्राज्यों के बीच प्रतिस्पर्धा के दौरान अफगानिस्तान को ब्रिटिशों ने पूर्वी रूसी विस्तारवाद के खिलाफ एक बफर राज्य के रूप में इस्तेमाल किया।
1893 के समझौते पर सर हेनरी मॉर्टिमर डूरंड और अमीर अब्दुर रहमान (जो 1880 में राजा बने थे, दूसरे अफगान युद्ध के दो साल बाद) के बीच हस्ताक्षर हुए। अब्दुर रहमान के शासनकाल में अंग्रेजों ने अफगान साम्राज्य के कई क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया था। इस सात-खंड वाले समझौते ने भारत के साथ अफगान ‘सीमांत’ पर प्रभाव क्षेत्रों की सीमाएं निर्धारित कीं। इसमें 2670 किलोमीटर लंबी रेखा को मान्यता दी गई, जो चीन की सीमा से लेकर अफगानिस्तान की ईरान से लगी सीमा तक फैली हुई है।
1947 में पाकिस्तान की स्वतंत्रता के साथ यह रेखा उसे विरासत में मिली, लेकिन पश्तून समुदाय ने इसे अस्वीकार कर दिया और अफगानिस्तान ने भी इसे कभी मान्यता नहीं दी। यह सीमा आज भी दोनों देशों के बीच तनाव का प्रमुख कारण बनी हुई है।
©2025 Agnibaan , All Rights Reserved