
रायपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट (Chhattisgarh High Court) ने हाल ही में ‘मिशनरी प्रेरित धर्मांतरण’ (‘Missionary-inspired conversions’) पर कई अहम टिप्पणियां की हैं। हाई कोर्ट ने कहा कि बड़ी संख्या में आदिवासियों के धर्मांतरण (Tribals Conversion) से तनाव, सामाजिक बहिष्कार और कई बार हिंसा की स्थिति उत्पन्न हो रही है। उच्च न्यायालय ने ये टिप्पणियां उन याचिकाओं के एक समूह पर सुनवाई करते हुए कीं, जिनमें विभिन्न गांवों में ईसाइयों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाए जाने का आरोप लगाया गया था। अदालत को बताया गया कि कांकेर जिले के कम से कम आठ गांवों में ऐसे होर्डिंग लगाए गए हैं, जिन पर लिखा है कि गांव में पादरियों और ‘धर्मांतरण कर चुके ईसाइयों’ प्रवेश नहीं कर सकते।
बार एंड बेंच की एक रिपोर्ट के मुताबिक, चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बिभु दत्त गुरु ने कहा कि गरीब और अशिक्षित आदिवासियों और ग्रामीण आबादी को धर्मांतरण के लिए प्रेरित किए जाने से एक खास विवाद उत्पन्न हो गया है। यह कहते हुए कि संविधान किसी भी धर्म को मानने की गारंटी देता है, अदालत ने इसके जबरदस्ती, प्रलोभन या धोखे से इसके दुरुपयोग का जिक्र किया। अदालत ने कहा कि सामूहिक और प्रेरित धर्मांतरण से ना सिर्फ सामाजिक सौहार्द प्रभावित होता है, बल्कि स्वदेशी समुदायों की सांस्कृतिक पहचान को भी चुनौती देता है। अदालत ने कहा कि समय के साथ मिशनरी गतिविधियां भारत में धर्मांतरण का प्लैटफॉर्म बन गईं।
अदालत ने कहा, ‘आर्थिक और सामाजिक रूप से वंचित समूहों, विशेष रूप से अनुसूचित जनजातियों और अनुसूचित जातियों, में बेहतर जीवनयापन, शिक्षा और समानता के वादे के साथ धर्मांतरण कराया जा रहा है। जिसे कभी सेवा के रूप में देखा जाता था, कई मामलों में धार्मिक विस्तार का उपकरण बन गया है। समस्या तब उत्पन्न होती है जब धर्म परिवर्तन व्यक्तिगत आस्था का विषय न रहकर प्रलोभन, हेरफेर या असुरक्षा के दोहन का परिणाम बन जाता है। दूरदराज के आदिवासी क्षेत्रों में मिशनरीज पर अक्सर आरोप लगता है कि अशिक्षित और गरीब परिवारों को धर्मांतरण के बदले आर्थिक सहायता, मुफ्त शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाओं या रोजगार की पेशकश की जाती है। ऐसे कृत्य स्वैच्छिक आस्था की भावना को विकृत करते हैं और सांस्कृतिक दबाव के समान होते हैं। इस प्रक्रिया ने आदिवासी समुदायों के भीतर गहरी सामाजिक विभाजन रेखाएं भी पैदा की हैं।’
आदिवासी समुदाय में धर्मांतरण के दुष्परिणामों पर टिप्पणी करते हुए अदालत ने कहा, ‘धर्मांतरण इस प्राकृतिक संबंध को बाधित करता है। आदिवासी मान्यताओं के क्षरण की वजह से देशी भाषाओं, प्रथाओं और प्रथागत कानूनों का नुकसान होता है। इससे भी बढ़कर नए धर्मांतरित लोगों को वास्तविक समुदाय से बहिष्कार का सामना करना पड़ता है, जिससे सामाजिक अलगाव और विखंडन पैदा होता है।’
अदालत ने कहा, ‘कुछ मिशनरी समूहों द्वारा किए जा रहे तथाकथित ‘प्रलोभन के माध्यम से धर्म परिवर्तन’ केवल धार्मिक चिंता का विषय नहीं है, बल्कि यह भारत की आदिवासी समुदायों की एकता और सांस्कृतिक निरंतरता के लिए एक सामाजिक खतरा है। इसका समाधान असहिष्णुता में नहीं, बल्कि इस बात को सुनिश्चित करने में निहित है कि आस्था दृढ़ विश्वास का विषय बने, बाध्यता का नहीं।’
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