
नई दिल्ली । उत्तराखंड (Uttarakhand)के नैनीताल जिले(Nainital district) में अनोखा मामला सामने आया है। यहां धारी गांव (बेतालघाट) में तीन सगे भाइयों(three real brothers) की जिंदगी सूरज की रोशनी पर चलती है। शाम ढलते ही इनकी आंखें देखना बंद कर देती हैं और अंधेरा इनका सबसे बड़ा दुश्मन बन जाता है। इतना ही नहीं इनके हाथ-पैरों में 13-13 अंगुलियां हैं।
इस दुर्लभ आनुवंशिक बीमारी का नाम ‘लॉरेंस मून बेडिल सिंड्रोम’ है। इन भाइयों की परेशानियां यहीं खत्म नहीं होतीं। हाथ-पैरों में अतिरिक्त उंगलियां, तेज भूख जीवन को कठिन बना रही है। 34 वर्षीय बालम जंतवाल, 29 वर्षीय गौरव और 25 वर्षीय कपिल की शाम ढलते आंखों की रोशनी चली जाती है।
हाथ-पैरों में 13-13 अंगुली
बालम के दोनों हाथों में 13 व पैरों में 12, गौरव के हाथों व पैरों में 13-13 और कपिल के हाथों व पैरों में 12-12 उंगलियां हैं। इन भाइयों में से हर भाई एक बार में लगभग 15 रोटियां और इसी हिसाब से सब्जी और चावल खा लेता है। दिहाड़ी मजदूरी से चलने वाला परिवार खाने के बढ़ते खर्च से आर्थिक दबाव झेल रहा है।
क्या है लॉरेंस मून बेडिल सिंड्रोम
मेडिकल कॉलेज हल्द्वानी के प्राचार्य डॉ. जीएस तितियाल लॉरेंस मून बेडिल सिंड्रोम ऐसी बीमारी है, जिसमें आंखों की रॉड कोशिका काम नहीं करती है। इसके चलते रात को दिखाई नहीं देता। इस अनुवांशिक बीमारी का ठोस इलाज नहीं है।
तीनों का बचपन में ही हो चुका है दिल का इलाज
मां सावित्री बताती हैं कि बचपन में बच्चों का इलाज कराया गया था। बालम के दिल में 8 मिमी का छेद मिला था, जिसके इलाज में काफी पैसे खर्च हुए। दूसरे बेटों में भी इसी तरह की समस्याएं दिखीं। लगातार चिंता और बढ़ते बोझ ने उनके पति को तोड़ दिया और दो वर्ष पहले उनका निधन हो गया। परिवार को हर महीने मिलने वाली 1,500 रुपये की दिव्यांग पेंशन बेहद कम साबित हो रही है।
संघर्ष कर रहे तीनों भाई
सबसे बड़ा भाई बालम बकरियां चराने का काम करता है। गौरव एक निजी स्टोन क्रशर में दिहाड़ी मजदूर है, जबकि कपिल एक छोटे होटल में काम करता है। रात होते ही ये अकेले कोई काम नहीं कर पाते हैं।
कई तरह की होती समस्या
सीएचसी गरमपानी के डॉ. गौरव कैड़ा ने बताया कि तीनों भाई अनुवांशिक बीमारी से जूझ रहे हैं। इस बीमारी में अतिरिक्त उंगलियां, हार्मोनल समस्याएं, मोटापा और त्वचा संबंधी परेशानियां होती हैं।
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