
नई दिल्ली: संसद (Parliament) के शीतकालीन सत्र (Winter Session) से पहले विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच खींचातानी तेज हो गई है. विपक्षी दलों (Opposition Parties) ने सरकार से स्पष्ट कहा है कि 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में चल रहे मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) पर सदन में चर्चा होना जरूरी है. तृणमूल कांग्रेस ने बैठक के दौरान साफ चेतावनी दी कि यदि इस मुद्दे पर चर्चा नहीं होगी तो संसद की कार्यवाही सुचारू रूप से नहीं चल पाएगी.
कांग्रेस नेता गौरव गोगोई ने सरकार पर तीखा हमला करते हुए कहा कि सत्ता पक्ष लोकतंत्र और संसदीय परंपराओं को खत्म करने में लगा है. उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार सत्र को केवल 15 बैठकों में सीमित कर रही है, जबकि यह 19 दिनों का होना चाहिए था. गोगोई ने कहा कि हाल में दिल्ली में हुए धमाके सुरक्षा व्यवस्था की विफलता का संकेत हैं और इन मामलों पर भी चर्चा होनी चाहिए. उनके मुताबिक, चुनाव आयोग चुनावों से पहले और बाद में राजनीतिक पक्षपात कर रहा है, इसलिए मतदाता सूची पर भी चर्चा जरूरी है.
उन्होंने कहा कि देश में प्रदूषण बढ़ रहा है, लेकिन उस पर गंभीर चर्चा नहीं हो रही. किसानों को उचित दाम नहीं मिल रहा और श्रमिकों को रोजगार के साथ सुरक्षा भी उपलब्ध नहीं है. प्राकृतिक आपदाओं के बढ़ने के बावजूद केंद्र सरकार की तैयारी कमजोर दिखाई देती है. गोगोई ने विदेश नीति पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि भारत अब अन्य देशों के दबाव में नीतियां बना रहा है और यहां तक कि सस्ते दाम पर तेल मिलने के बावजूद उपभोक्ताओं को राहत नहीं मिल रही.
गोगोई ने कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के युग में संसद में इस विषय पर एक भी गंभीर बहस नहीं हुई है. उन्होंने कहा कि संसद लोकतंत्र का मंदिर है और इसमें किसी एक व्यक्ति की भक्ति नहीं, बल्कि संविधान और लोकतांत्रिक परंपराओं की रक्षा होनी चाहिए. विपक्षी दलों ने साफ कर दिया है कि वे इस मुद्दे पर एकजुट हैं.
इसी बीच सरकार शीतकालीन सत्र में कई अहम विधेयक पेश करने की तैयारी कर रही है. इनमें सबसे प्रमुख ‘परमाणु ऊर्जा विधेयक, 2025’ है, जिसके जरिए असैन्य परमाणु क्षेत्र को निजी कंपनियों के लिए खोलने का प्रस्ताव रखा जाएगा. इसके अलावा सरकार उच्च शिक्षा आयोग विधेयक, राष्ट्रीय राजमार्ग संशोधन विधेयक, कॉरपोरेट कानून संशोधन विधेयक और प्रतिभूति बाजार संहिता विधेयक भी पेश करेगी. यह विधेयक देश में प्रतिभूति बाजार से जुड़े मौजूदा कानूनों को एकीकृत करने का प्रस्ताव रखता है. सरकार मध्यस्थता और सुलह अधिनियम में संशोधन की भी योजना बना रही है.
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