
नई दिल्ली । अरुणाचल प्रदेश (Arunachal Pradesh) के तवांग जिले (Tawang district) में वर्ष 2012 से 2023 के बीच मुख्यमंत्री पेमा खांडू (Chief Minister Pema Khandu) के परिवार से जुड़ी चार फर्मों को कुल 146 सरकारी कार्य-ठेके (work contracts) दिए गए। इनकी कीमत 383.74 करोड़ रुपये है। यह जानकारी राज्य सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में दायर एक हलफनामे में सामने आई है। इनमें से 59 ठेके सीधे वर्क ऑर्डर के जरिए दिए गए, यानी बिना किसी टेंडर प्रक्रिया के। इनमें से कम से कम 11 वर्क ऑर्डर 50 लाख रुपये की उस लिमिट से ज्यादा थे जो 2020 में बिना टेंडर के दिए जाने वाले कॉन्ट्रैक्ट के लिए तय की गई थी। इसका मकसद राज्य में लोकल प्रोफेशनल्स और एंटरप्रेन्योर्स को बढ़ावा देना था।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, ये कॉन्ट्रैक्ट सड़कें, पुल, नाले, सिंचाई चैनल, पावर लाइनें, रिटेनिंग वॉल, कम्युनिटी हॉल, कल्चरल सेंटर, रिहायशी क्वार्टर, ऑफिस और कमर्शियल बिल्डिंग, टूरिज्म फैसिलिटी, एक वॉर मेमोरियल वगैरह के कंस्ट्रक्शन या मेंटेनेंस के लिए थे।
कौन-कौन सी कंपनियों को मिले ठेके?
हलफनामे के अनुसार, जिन चार कंपनियों को ठेके मिले, वे मुख्यमंत्री खांडू के परिवार के सदस्यों की हैं-
मेसर्स फ्रंटियर एसोसिएट्स और मेसर्स ब्रांड ईगल्स – मालिक: त्सेरिंग डोल्मा (मुख्यमंत्री की पत्नी)
मेसर्स आरडी कंस्ट्रक्शन – मालिक: ताशी खांडू (मुख्यमंत्री के भाई)
मेसर्स एलायंस ट्रेडिंग कंपनी – मालिक: नीमा द्रेमा (मुख्यमंत्री के भाई व तवांग के विधायक त्सेरिंग ताशी की पत्नी)
केवल तवांग जिले में इन फर्मों को दिए गए ठेके इस प्रकार हैं:
फ्रंटियर एसोसिएट्स और मेसर्स ब्रांड ईगल्स: 42 ठेके, 209.6 करोड़ रुपये
आरडी कंस्ट्रक्शन: 13 ठेके, 29.1 करोड़ रुपये
एलायंस ट्रेडिंग कंपनी: 91 ठेके, 145.04 करोड़ रुपये
कुल 59 ठेके बिना टेंडर के जारी किए गए।
किस प्रकार के कामों के लिए मिले ठेके?
इन ठेकों में शामिल थे- सड़क, पुल, नालियां, सिंचाई चैनल, बिजली लाइनें, रिटेनिंग वॉल, सामुदायिक भवन, सांस्कृतिक केंद्र, सरकारी रिहायशी क्वार्टर, कार्यालय भवन, पर्यटन सुविधाएं, युद्ध स्मारक सहित कई निर्माण और रखरखाव से जुड़े कार्य।
पीआईएल और सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप
सेव मॉन रीजन फेडरेशन और वॉलंटरी अरुणाचल सेना नामक दो संगठनों ने पिछले वर्ष एक जनहित याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि सरकारी ठेकों को मुख्यमंत्री के परिवार से जुड़ी कंपनियों को ‘प्राथमिकता’ दी गई है। याचिकाकर्ताओं ने CBI या SIT जांच की मांग की है। इसके बाद, मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से विस्तृत सूची मांगी थी। अब 2 दिसंबर को कोर्ट ने कहा कि प्रस्तुत की गई जानकारी पूरी/अप-टू-डेट नहीं है। कोर्ट ने निर्देश दिया कि 2015 से 2025 की अवधि के सभी 28 जिलों का पूरा ब्योरा 8 हफ्तों में उपलब्ध कराया जाए। बेंच ने टिप्पणी करते हुए कहा कि सीएम के परिवार को इतने ठेके मिलना एक उल्लेखनीय संयोग है।
राज्य सरकार का पक्ष
हलफनामे में राज्य ने यह माना कि कई वर्क ऑर्डर सीधे जारी किए गए, लेकिन इसकी वजह राज्य की स्थानीय परिस्थितियों को बताया। सरकार का तर्क है कि गांवों में भूमि मुफ्त उपलब्ध कराई जाती है। ग्रामीण लोग अपने प्रतिनिधियों द्वारा सुझाए गए ‘विश्वसनीय’ ठेकेदारों को प्राथमिकता देते हैं। तकनीकी विशेषज्ञता वाले ‘जटिल कार्यों’ में टेंडर प्रणाली का पालन किया जाता है। 95% ठेके टेंडर प्रक्रिया से दिए गए, इसलिए पक्षपात का आरोप सही नहीं।
कानून और नियम क्या कहते हैं?
2015 में राज्य ने स्थानीय उद्यमियों को प्रोत्साहन देने के लिए कानून बनाया। 2020 में बदलाव कर यह नियम बनाया गया कि 50 लाख रुपये तक के ऐसे कार्य, जिनमें विशेष तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता नहीं, उन्हें बिना टेंडर दिए जा सकते हैं। लेकिन हलफनामे के अनुसार, 11 ठेकों की कीमत 50 लाख से अधिक थी, जैसे- 2018 में तवांग में सरकारी कॉलेज स्थापित करने का ठेका जिसकी कीमत 2 करोड़ रुपये थे उसे बिना टेंडर के दिया गया। मामले की अगली सुनवाई 3 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट में होगी।
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