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इंदौर मेट्रो के अंडरग्राउंड रुट का बदलाव पड़ेगा 2 हजार करोड़ तक महंगा

December 16, 2025

  • जिस कम्पनी को एलिवेटेड का ठेका दिया उसे भी चुकाना पड़ेगा तगड़ा हर्जाना, साढ़े ३ किलोमीटर के नए रुट के लिए सर्वे के साथ फिर से करना पड़ेगी टेंडर प्रक्रिया भी, उसके बाद दिल्ली से लेना पड़ेगी मंजूरी
  • – ७ हजार ५०० करोड़ का प्रोजेक्ट अब १२ हजार करोड़ पार करेगा
  • – २२.६२ किलोमीटर एलिवेटेड और ८.०९ किलोमीटर अंडरग्राउंड रुट किया था तय
  • – रोबोट से एमजी रोड तक ५४३ करोड़ में दिया है ठेका
  • – हिन्दुस्तान कंस्ट्रक्शन और टाटा प्रोजेक्ट को २१९१ में दिया अंडरग्राउंड का ठेका
  • – अब साढ़े ३ किलोमीटर के अंडरग्राउंड रुट की बढ़ जाएगी लागत
  • – १६०० करोड़ का लोन एडीबी से भी हो चुका है मंजूर, शेष राशि केन्द्र और राज्य चुकाएंगे
  • – एलिवेटेड कॉरिडोर की ठेकेदार फर्म वसूल करेगी नुकसान का हर्जाना

इंदौर। मेट्रो प्रोजेक्ट लेटलतीफी का तो शिकार हो ही गया है, वहीं अब 2 हजार करोड़ रुपए से अधिक की लागत भी बढ़ जाएगी। खजराना से ही अंडरग्राउंड करने का जो निर्णय अभी लिया गया उसके चलते लगभग साढ़े 3 किलोमीटर के इस नए रुट का सर्वे करने के साथ टेंडर की प्रक्रिया भी नए सिरे से करना पड़ेगी। साढ़े 7 हजार करोड़ का इंदौर मेट्रो का प्रोजेक्ट अब 12 हजार करोड़ की लागत पार कर चुका है और रोबोट चौराहा से एमजी रोड तक एलिवेटेड कॉरिडोर का जो ठेका यूआरसी कंस्ट्रक्शन कम्पनी को 543 करोड़ रुपए में सौंपा है, जिसमें उसे साढ़े 5 किलोमीटर में निर्माण करना था, अब सिर्फ 2 किलोमीटर में ही निर्माण होगा, जिसके चलते कम्पनी तगड़ा हर्जाना भी वसूल करेगी।

इंदौर मेट्रो प्रोजेक्ट में बदलाव ऊपरी तौर पर भले ही आसान लगता है, मगर मैदानी स्तर पर अभी कई पड़ाव पार करना होंगे। सबसे पहले तो बढ़ी हुई लागत का मैदानी आंकलन होगा। अभी तो सिर्फ 900 करोड़ के अतिरिक्त खर्च का अनुमान लगाया गया है, जबकि पूर्व में विशेषज्ञों ने ही 1600 करोड़ रुपए की लागत बढऩे की बात कही थी और यह भी सालभर पुरानी बात है, उसके बाद कॉस्टिंग रोजाना ही बढ़ रही है। इंदौर मेट्रो का मूल प्रोजेक्ट लगभग 32 का है, जिसमें साढ़े 8 किलोमीटर ही अंडरग्राउंड और 22 किलोमीटर से अधिक एलिवेटेड कॉरिडोर निर्मित किया जाना है। इसमें भी 11 किलोमीटर के एलिवेटेड कॉरिडोर का ठेका सबसे पहले गांधी नगर से लेकर रोबोट चौराहा तक दिया गया था और यह काम लगभग पूर्ण भी हो गया है। उसके बाद रोबोट चौराहा से खजराना, बंगाली, पलासिया चौराहा होते हुए एमजी रोड तक भी साढ़े 5 किलोमीटर के एलिवेटेड कॉरिडोर का ठेका आरवीएनएल की सब कॉन्ट्रैक्टर कम्पनी यूआरसी कंस्ट्रक्शन को 543 करोड़ में सौंपा गया और कम्पनी ने रोबोट से खजराना तक काम भी कर दिया है, उसके बाद उसे अनुमति नहीं मिली।


अब चूंकि खजराना से ही मेट्रो को अंडरग्राउंड करने का निर्णय मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने समीक्षा बैठक में लिया, जिसके चलते अब साढ़े 3 किलोमीटर का एलिवेटेड कॉरिडोर उक्त कम्पनी नहीं बना पाएगी। चूंकि कम्पनी ने ना सिर्फ काम शुरू किया, बल्कि साढ़े 5 किलोमीटर के हिसाब से अपनी तैयारी शुरू कर दी। नतीजतन आर्बीट्रेशन में कम्पनी तगड़े जुर्माने का दावा करेगी और उसे मेट्रो कॉर्पोरेशन को चुकाना भी पड़ेगा, जो इतना आसान नहीं है, क्योंकि उसमें ऑडिट आपत्ति से लेकर कई तरह की जांच-पड़ताल भी होगी। दूसरी तरफ अंडरग्राउंड रुट का ठेका हिन्दुस्तान कंस्ट्रक्शन और टाटा प्रोजेक्ट को 2191 करोड़ में साढ़े 8 किलोमीटर के लिए दिया है। टेंडर शर्त के मुताबिक अधिकतम 25 फीसदी काम ही उसी ठेके के तहत कराया जा सकता है। मगर चूंकि नियम के तहत अधिकतम 2 किलोमीटर का ही काम हो सकता है, जबकि मौके पर साढ़े 3 किलोमीटर का अंडरग्राउंड रुट बढ़ गया है। ऐसे में नए सिरे से सर्वे और टेंडर की प्रक्रिया भी करना पड़ेगी। कैबिनेट में खर्च होने वाली अतिरिक्त वित्तीय मंजूरी लेने के साथ उसका प्रस्ताव केन्द्र सरकार यानी दिल्ली को भेजना होगा और उसके साथ एशियन विकास बैंक की भी मंजूरी लगेगी, जिसने मेट्रो प्रोजेक्ट के लिए लोन दिया है। कुल मिलाकर यह पूरी प्रक्रिया इतनी आसान नहीं है, जैसी बताई और दिखाई जा रही है।

पुराने अंडरग्राउंड रुट में फिलहाल कोई परिवर्तन नहीं…
एक तरफ खजराना से ही मेट्रो को अंडरग्राउंड करने की मांग जनप्रतिनिधियों द्वारा लगातार की जा रही थी, जिसे मुख्यमंत्री ने मंजूर कर लिया। दूसरी तरफ एमजी रोड से लेकर राजवाड़ा, बड़ा गणपति और अन्य क्षेत्रों में भी रहवासियों-दुकानदारों का विरोध है कि उनके निर्माण टूटेंगे, जिसके चलते अंडरग्राउंड रुट को बदला जाए। मगर फिलहाल जो पुराना साढ़े 8 किलोमीटर का अंडरग्राउंड रुट मंजूर किया गया है उसमें फिलहाल कोई परिवर्तन नहीं है और ना ही इस संबंध में अभी रविवार को हुई समीक्षा बैठक में चर्चा हुई। हालांकि हाईकोर्ट में एक जनहित याचिका भी लम्बित है, जिसमें हेरिटेज बिल्डिंगों की नुकसानी से लेकर अंडरग्राउंड वॉटर सहित अन्य मुद्दे उठाए गए हैं। मगर तकनीकी रूप से ये सब बातें हवाहवाई है, क्योंकि दुनियाभर में बीते 50 सालों से अधिक समय से मेट्रो अंडरग्राउंड चल रही है और वहां की किसी भी हेरिटेज बिल्डिंग या अन्य इमारतों को कोई नुकसान हुआ और ना ही अंडरग्राउंड वॉटर की समस्या आई।

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