ढाका। बांग्लादेश (Bangladesh) में जारी राजनीतिक संक्रमण के बीच खुफिया रिपोर्टें एक चिंताजनक तस्वीर पेश कर रही हैं। पंद्रह वर्षों से अधिक समय बाद पहली बार पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) की छाया ढाका के राजनीतिक और सुरक्षा परिदृश्य पर पड़ती दिख रही है। शेख हसीना सरकार के अगस्त 2024 में पतन के बाद जिस कूटनीतिक ‘थॉ’ की शुरुआत हुई थी, वह अब एक संगठित रणनीतिक वापसी में बदलती प्रतीत हो रही है और इसी ने भारत की चिंता बढ़ा दी है।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, क्षेत्रीय सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा अलार्म कथित तौर पर पाकिस्तानी उच्चायोग के भीतर एक समर्पित ISI स्पेशल सेल की स्थापना को माना जा रहा है। अक्टूबर 2025 के अंत में सामने आई रिपोर्टों के मुताबिक, इस यूनिट में एक ब्रिगेडियर, दो कर्नल, चार मेजर समेत थल, नौसेना और वायुसेना से जुड़े कई अधिकारी तैनात हैं।
खुफिया एजेंसियों का दावा है कि ISI का मुख्य एजेंडा बांग्लादेशी युवाओं का कट्टरपंथीकरण और जमात-ए-इस्लामी व इनकलाब मंच जैसे संगठनों के जरिए धार्मिक उग्रवाद को बढ़ावा देना है। पाकिस्तान का लक्ष्य एक हाइब्रिड रेजीम खड़ा करना, जो भारतीय हितों के प्रति स्वाभाविक रूप से शत्रुतापूर्ण हो।
18 दिसंबर को छात्र नेता शरीफ उस्मान हादी की मौत के बाद भड़की अशांति को कई पर्यवेक्षक “मैनेज्ड क्राइसिस” बता रहे हैं। ढाका में भारतीय उच्चायोग और चट्टोग्राम में सहायक उच्चायोग पर हमले, मीडिया दफ्तरों को जलाना और सड़कों पर भय का माहौल, इन सबको फरवरी 12 के चुनावों को टालने और सड़कों पर कट्टर तत्वों की पकड़ मजबूत करने की रणनीति से जोड़ा जा रहा है।
भारत की प्रतिक्रिया
इन तमाम पहलुओं पर भारत ने चुप्पी नहीं साधी है। 19 नवंबर 2025 को कोलंबो सिक्योरिटी कॉन्क्लेव समिट के दौरान NSA अजित डोभाल ने कथित तौर पर ढाका में ISI सेल का मुद्दा सीधे अपने बांग्लादेशी समकक्ष के सामने उठाया। भारत जहां बांग्लादेश की जनता के साथ खड़ा रहने की बात करता है, वहीं ढाका के सत्ता गलियारों में बढ़ता पाकिस्तानी झुकाव अब ‘पड़ोसी फर्स्ट’ नीति और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए सीधी चुनौती के रूप में देखा जा रहा है।
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