
नजदीकी रिश्तेदारों ने झाड़ा पल्ला, परायों ने की मदद, सुल्तान-ए-इंदौर एकता सेवा समिति ने उठाई जिम्मेदारी
इन्दौर। शहर (Indore) में एक बंद पड़े मकान (House) से उठी दुर्गंध (Foul smell) ने जब आसपास के लोगों का ध्यान खींचा तो भीतर का दृश्य हर किसी को झकझोर देने वाला था। मकान के अंदर लगभग 15 दिनों से पति-पत्नी के शव पड़े थे। न कोई रिश्तेदार, न कोई परिचित और न ही अंतिम विदाई देने वाला कोई अपना मौजूद था। यह घटना केवल एक दु:खद समाचार नहीं, बल्कि समाज में बढ़ते अकेलेपन और संवेदनहीनता की कड़वी सच्चाई को उजागर करती है।
मामले की सूचना मिलते ही पुलिस मौके पर पहुंची और जांच के बाद यह स्पष्ट हुआ कि मृत दंपति इस शहर में अकेले रहते थे। दंपति के भाई-बंधु हैं, मगर ये उनसे सभी रिश्ते तोड़ चुके थे तो वे भी इनकी सुध लेने नहीं आए। ऐसे समय में भी जब अधिकांश लोग इस तरह की जिम्मेदारी से पीछे हट जाते हैं, तब सुल्तान-ए-इंदौर एकता सेवा समिति के सदस्य आगे बढक़र मानवता की मिसाल पेश करते हैं। संस्था के मुख्य पदाधिकारियों करीम खान, जय्यू जोशी, फिरोज खान एवं सुरेश मोरे के मार्गदर्शन में समिति के स्वयंसेवकों ने सभी आवश्यक कानूनी प्रक्रियाएं पूरी की। इसके पश्चात सामाजिक और धार्मिक रीति-रिवाजों के अनुसार पति-पत्नी का सम्मानपूर्वक अंतिम संस्कार संपन्न कराया गया। इस घटना ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया कि इंदौर केवल स्वच्छता के लिए ही नहीं, बल्कि संवेदनशीलता, करुणा और इंसानियत के लिए भी पहचाना जाता है।
इंसानियत आज भी जीवित है…सिद्ध हुआ
यह अंतिम संस्कार केवल एक औपचारिकता नहीं था, बल्कि उन दो आत्माओं को दिया गया वह सम्मान था, जो जीवनभर शायद अपनों के अभाव में अकेले रहीं और मृत्यु के बाद भी गुमनामी का शिकार हो गईं। सुल्तान-ए-इंदौर एकता सेवा समिति ने साबित कर दिया कि इंसानियत आज भी जीवित है।
कई वर्षों से विभिन्न सेवा कार्य कर रही संस्था
उल्लेखनीय है कि सुल्तान-ए-इंदौर एकता सेवा समिति कई वर्षों से समाजसेवा के क्षेत्र में सक्रिय है। लावारिस बुजुर्गों, असहायों, बेसहारा लोगों और जरूरतमंदों की मदद से लेकर ठंड में कंबल वितरण, बीमारों की सहायता और मृत्यु के बाद अंतिम संस्कार तक संस्था हर परिस्थिति में मानवता की मशाल जलाए हुए है।
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