
इंदौर, राजेश ज्वेल। विगत कई वर्षों से इंदौर एयरपोर्ट को अंतर्राष्ट्रीय स्तर का बनाने के साथ कई तरह की सुविधाएं देने के दावे किए जाते रहे हैं। अभी दो दिन पहले सांसद की अध्यक्षता में एयरपोर्ट पर ही जो बैठक हुई उसमें भी हवा-हवाई घोषणाएं की गई, जिसमें एयरपोर्ट पर सालाना यात्रियों की क्षमता 40 लाख से बढ़ाकर पहले चरण में 1 करोड़ और दूसरे चरण में ढाई करोड़ तक ले जाने की बात कही और इसके लिए 89 एकड़ अतिरिक्त जमीन की आवश्यकता भी बताई गई। जबकि मैदानी हकीकत यह है कि एयरपोर्ट के पास इतनी जमीन सरकारी तो उपलब्ध है ही नहीं और जो निजी जमीनें हैं उन पर भी कॉलोनियां कट गई, मकान बन गए। ऐसे में एयरपोर्ट विस्तार के लिए कहां से मिलेगी इतनी जमीन। 7 साल पहले सुप्रीम कोर्ट में लडक़र जो उषा राजे ट्रस्ट की जो 20.48 एकड़ जमीन शासन-प्रशासन ने जीती थी और उसे एयरपोर्ट अथॉरिटी को सौंपा, उसका ही आज तक इस्तेमाल नहीं किया जा सका है।
इंदौर एयरपोर्ट पर अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों की तो बात ही अगर ना की जाए तो घरेलू उड़ान के यात्रियों को ही मूलभूत सुविधाएं भी ढंग से नहीं मिल पाती। आवारा कुत्ते, चूहों, गंदगी से लेकर पार्किंग की भीषण समस्या विगत कई वर्षों से यथावत है। यहां तक कि इंदौर मेट्रो, जो कि एयरपोर्ट से भी अंडरग्राउंड होना है, उसको लेकर भी अभी तक स्थिति स्पष्ट नहीं हो सकी, जिसके चलते मेट्रो कॉर्पोरेशन अंडरग्राउंड का काम शुरू नहीं कर पाया और दूसरी तरफ अथॉरिटी घोषित मल्टीलेवल पार्किंग भी नहीं बना पा रही है। हर कुछ महीनों में सांसद शंकर लालवानी इंदौर एयरपोर्ट के साथ-साथ प्रशासन के अधिकारियों को बुलाकर बैठक लेते हैं और उसके फोटो-खबरें मीडिया में परोस दी जाती है। मगर मैदानी काम कुछ नहीं होते।
अभी भी सांसद ने दिल्ली से एयरपोर्ट अथॉरिटी इंडिया के वरिष्ठ अधिकारी शरद कुमार और अनुराग मिश्रा को इंदौर बुलाया और कलेक्टर शिवम वर्मा के साथ अन्य अधिकारी और सलाहकार समिति के सदस्य मौजूद रहे। इस मीटिंग में दावा किया गया कि यात्रियों के दबाव, पार्किंग, सुरक्षा जांच सहित तमाम सुविधाओं में इजाफा होता और सिंहस्थ-2028 के मद्देनजर भी नया टर्मिनल भवन, रन-वे विस्तार और अन्य सुविधाएं विकसित की जाएंगी, जिसके चलते यात्रियों की संख्या अगले कुछ ही वर्षों तक ढाई करोड़ तक सालाना पहुंचेगी और इसके लिए अतिरिक्त 89 एकड़ जमीन की आवश्यकता होगी, जबकि एयरपोर्ट के आसपास अब इतनी जमीन खाली ही नहीं। सरकारी जमीन तो 20.48 एकड़ पहले ही आवंटित की जा चुकी है और अब मौके पर कोई सरकारी जमीन भी नहीं बची है।
कलेक्टर शिवम वर्मा से जब अग्रिबाण ने यह पूछा गया कि एयरपोर्ट अथॉरिटी ने जो 89 एकड़ जमीन मांगी है, वह कहां पर उपलब्ध है। इस पर कलेक्टर ने स्पष्ट कहा कि उन्होंने बैठक में भी यह बात अथॉरिटी को कही थी कि मौके पर अब सरकारी जमीन उपलब्ध नहीं है और उन्हें निजी जमीनें मुआवजा देकर खरीदना पड़ेगी। कलेक्टर ने भी स्वीकार किया कि एयरपोर्ट के आसपास कॉलोनियां विकसित हो गई, कई मकान भी बन गए। ऐसे में 89 एकड़ जमीन खाली उपलब्ध होना ही फिलहाल तो संभव नजर नहीं आता। अलबत्ता कलेक्टर का यह अवश्य कहना है कि हम एयरपोर्ट अथॉरिटी को जमीन अधिग्रहण में मदद करेंगे। मगर मुआवजे की राशि उन्हें ही खर्च करना पड़ेगी।
एयरपोर्ट अथॉरिटी को 7 साल पहले प्रशासन ने 20.48 एकड़ जमीन का कब्जा सौंप दिया था। उस पर बाउण्ड्रीवॉल बनाने से लेकर मल्टीलेवल पार्किंग कॉम्प्लेक्स सहित अन्य सुविधाएं विकसित की जाना थी। मगर अभी भी इस जमीन का इस्तेमाल नहीं हो सका है। यहां तक कि रनवे रिपेयरिंग का जो काम अभी पूरा हो जाना था, उसमें 2 से 3 माह का समय और लगेगा। इसका कारण यह पता चला कि गलत एजेंसी को ठेका दे दिया गया है, जिसके कारण अभी रात की फ्लाइटें साढ़े 10 बजे के बाद उतर ही नहीं पाती है और आए दिन फ्लाइट निरस्त होने के कारणहवाई यात्रियों को मुसीबत उठाना पड़ती है। उधर, कुछ वर्ष पूर्व इंदौर एयरपोर्ट को अंतर्राष्ट्रीय घोषित किया जा चुका है और दुबई फ्लाइट शुरू की गई, जो बाद में बंद हुई और अब इंदौर-शारजहां ही चल रही है। बीते 4-5 सालों से सिंगापुर, बैंकॉक सहित अन्य अंतरर्राष्ट्रीय उड़ानें शुरू करने के दावे भी शुरू किए जाते रहे, जो अभी तक बोगस ही निकले हैं।
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