
मुंबई। महाराष्ट्र (Maharashtra) में 15 जनवरी को होने वाले नगर निकाय चुनावों (Municipal Elections) में मुंबई महानगर क्षेत्र (Mumbai Metropolitan Region) के मतदाता (Voters) इस बार जाति, भाषा और पहचान की राजनीति से आगे बढ़कर पानी, प्रदूषण, घर, यातायात और सार्वजनिक सेवाओं जैसे रोजमर्रा के मुद्दों पर जवाब चाहते हैं। राज्य की 29 नगर निगमों में से नौ नगर निगम एमएमआर से हैं; मुंबई, नवी मुंबई, ठाणे, कल्याण-डोंबिवली, वसई-विरार, भिवंडी, मीरा-भायंदर, उल्हासनगर और पनवेल। इन सभी शहरों में तेज शहरीकरण ने नागरिक सुविधाओं पर भारी दबाव डाल दिया है।
जहां एक ओर ‘मराठी मानूस’, जाति और धर्म जैसे मुद्दे चुनावी बहस में हैं, वहीं दूसरी ओर बुनियादी सुविधाओं की अभाव में जी रहे लोगों की चिंता बढ़ा दी है। इसी को देखते हुए राजनीतिक दल और उम्मीदवार अपने चुनावी वादों में बदलाव कर रहे हैं।
हाल ही में राज्य सरकार ने एमएमआर में 20000 से ज्यादा बिना अधिभोग प्रमाणपत्र वाली इमारतों को नियमित करने के लिए एक माफी योजना की घोषणा की। इसके अलावा मुंबई की पुरानी ‘पगड़ी’ इमारतों के पुनर्विकास के लिए नया नियम भी लाया गया है। सरकार कोस्टल रोड, अटल सेतु और मेट्रो परियोजनाओं को अपनी बड़ी उपलब्धि बता रही है, वहीं विपक्ष का आरोप है कि लोकल ट्रेन और बस सेवाएं लगातार खराब हुई हैं, और मेट्रो परियोजनाओं में देरी आम लोगों की परेशानी बढ़ा रही है।
हवा की खराब गुणवत्ता अब सीधा चुनावी मुद्दा बन चुकी है, खासकर उन इलाकों में जहां उद्योग और रिहायशी इलाके साथ-साथ हैं। नवी मुंबई में युवाओं ने निर्माण से उठती धूल, पुराने वाहनों से निकलता धुआं और घटते हरित क्षेत्र को प्रदूषण की बड़ी वजह बताया है। हाल ही में उन्होंने शांत मानव श्रृंखला बनाकर नेताओं से साफ हवा का वादा मांगा।
एमएमआर के कई इलाकों में पानी की कटौती, कम दबाव, पुरानी पाइपलाइन और अपर्याप्त भंडारण बड़ी समस्या हैं, जबकि क्षेत्र में भरपूर बारिश होती है। कचरा प्रबंधन भी गंभीर चुनौती है; डंपिंग ग्राउंड भर चुके हैं, कचरा अलग-अलग करने की व्यवस्था अधूरी है और नालों की सफाई न होने से बार-बार जलभराव होता है।
मुंबई का 2025-26 का बजट करीब 75,000 करोड़ रुपये है, फिर भी शहर को जाम और नागरिक सुविधाओं की कमी से जूझना पड़ रहा है। वहीं वसई-विरार, उल्हासनगर और भिवंडी जैसे शहरों में आबादी तेजी से बढ़ी है, लेकिन सड़क, पानी, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी सुविधाएं उसी गति से नहीं बढ़ीं। इसका नतीजा है, महंगी जिंदगी और घटती जीवन गुणवत्ता।
तेज शहरीकरण के कारण पूरे एमएमआर में घर और किराए महंगे हो गए हैं। मुंबई पहले से ही देश के सबसे महंगे शहरों में है, और अब उसके उपनगरों में भी आम आदमी के लिए घर लेना मुश्किल होता जा रहा है। इसी वजह से किफायती आवास, झुग्गी पुनर्विकास और जोनिंग जैसे मुद्दे चुनावी चर्चा के केंद्र में हैं।
लोकल ट्रेन की भीड़, लंबा सफर, आखिरी मील की कनेक्टिविटी की कमी और बरसात में गड्ढों से भरी सड़कें, ये समस्याएं ठाणे, कल्याण-डोंबिवली और पनवेल से जुड़े इलाकों में मतदाताओं के मूड को सीधे प्रभावित कर रही हैं। हालांकि मेट्रो और रेलवे विस्तार की योजनाएं हैं, लेकिन लोग तुरंत सुधार चाहते हैं, जो अब तक कई जगह नजर नहीं आ रहा। युवा और कामकाजी वर्ग रोजगार, स्किल डेवलपमेंट और स्थानीय नौकरी के अवसरों पर भी ध्यान दे रहा है। एमएमआर देश का आर्थिक केंद्र जरूर है, लेकिन हर इलाके में अच्छी नौकरी उपलब्ध नहीं है, यह भी एक चुनावी सवाल बन चुका है। मतदाता अब बेहतर नगरपालिका स्कूलों, अस्पतालों और डिस्पेंसरी की मांग कर रहे हैं। महामारी के बाद से सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं पर लोगों की उम्मीदें और बढ़ी हैं।
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